Jee Ram Ji Law : जी राम जी पर बड़ा दांव…! गांव से दिल्ली तक कांग्रेस की अगली लड़ाई

Jee Ram Ji Law

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कांग्रेस ने संकेत दे दिए हैं कि आने वाले दिनों में केंद्र सरकार के जी राम जी कानून (Jee Ram Ji Law) को लेकर देश की राजनीति में एक नया और व्यापक संघर्ष आकार लेने वाला है। पार्टी इस बार केवल राजनीतिक विरोध तक सीमित नहीं रहना चाहती,

बल्कि गांव-गरीब और किसान-मजदूर को आंदोलन की धुरी बनाकर एक ऐसे सामाजिक जनांदोलन की रूपरेखा तैयार कर रही है, जिसकी गूंज संसद से ज्यादा सड़कों, पंचायतों और खेत-खलिहानों में सुनाई देगी। रणनीति साफ है, तीन कृषि कानूनों की वापसी के आंदोलन की तर्ज पर सरकार को जनदबाव में लाना।

कांग्रेस नेतृत्व का मानना है कि मनरेगा की जगह लाए गए नए जी राम जी कानून का असर केवल नीतिगत बदलाव भर नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण भारत की सामाजिक-आर्थिक संरचना को गहरे स्तर पर प्रभावित करने वाला कदम है। इसी कारण पार्टी अपने आंदोलन को विशुद्ध राजनीतिक रंग देने से बचते हुए इसमें मजदूर संगठनों, किसान यूनियनों, पंचायत प्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों को जोड़ने की तैयारी कर रही है। संकेत मिल रहे हैं कि नए साल की शुरुआत के साथ ही देशभर में विरोध प्रदर्शनों, सभाओं और पदयात्राओं का सिलसिला तेज होगा।

कांग्रेस के भीतर इस बात पर खास मंथन हुआ है कि विरोध का स्वरूप ऐसा हो, जिसमें ग्रामीण गरीब की आवाज केंद्र में रहे। पार्टी के रणनीतिकार मानते हैं कि अगर आंदोलन का नैरेटिव केवल संसद या राजनीतिक मंचों तक सीमित रहा, तो उसका असर सीमित हो सकता है। इसलिए गांव-गरीब, किसान-मजदूर और ग्रामीण महिलाओं को आंदोलन की मुख्य ताकत बनाने पर जोर दिया जा रहा है। यही वजह है कि कांग्रेस कार्यसमिति की 27 दिसंबर को होने वाली बैठक को बेहद अहम माना जा रहा है, जहां आंदोलन की रूपरेखा, कार्यक्रम और टाइमलाइन को अंतिम मंजूरी दी जाएगी।

इससे पहले लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने संसद के शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन ही साफ कर दिया था कि कांग्रेस इस मुद्दे पर पीछे हटने वाली नहीं है। उन्होंने कहा था कि मनरेगा दुनिया के सबसे सफल गरीबी उन्मूलन और सशक्तीकरण कार्यक्रमों में से एक रहा है और सरकार ग्रामीण गरीबों की आखिरी उम्मीद को खत्म नहीं कर सकती। राहुल गांधी ने यह भी संकेत दिया कि यह लड़ाई केवल कांग्रेस की नहीं, बल्कि मजदूरों, पंचायतों और राज्यों के साथ मिलकर लड़ी जाने वाली साझा लड़ाई होगी।

संसद के बाद अब सड़क की रणनीति

संसद के भीतर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, प्रियंका गांधी वाड्रा और अन्य नेताओं द्वारा जी राम जी विधेयक का तीखा विरोध दर्ज कराने के बाद अब पार्टी ने सदन के बाहर संघर्ष तेज करने का फैसला किया है। इसी कड़ी में सोनिया गांधी ने हाल ही में एक लेख के जरिए सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि जी राम जी कानून के जरिए केंद्र सरकार राज्यों को कमजोर कर सत्ता का अत्यधिक केंद्रीकरण कर रही है। सोनिया गांधी के मुताबिक मनरेगा को खत्म करने का असर ग्रामीण भारत के करोड़ों परिवारों पर विनाशकारी साबित हो सकता है।

अपने लेख में उन्होंने यह भी याद दिलाया कि मनरेगा ने महात्मा गांधी के सर्वोदय के विचार को जमीन पर उतारने का काम किया और काम करने के संवैधानिक अधिकार को वास्तविक रूप दिया। उनका कहना था कि आज पहले से कहीं ज्यादा जरूरी है कि नागरिक एकजुट होकर उन अधिकारों की रक्षा करें, जो समाज के सबसे कमजोर वर्ग को सुरक्षा प्रदान करते हैं। उन्होंने नए कानून को नौकरशाही प्रविधानों का संग्रह बताते हुए कहा कि इससे रोजगार गारंटी की आत्मा ही खत्म हो जाएगी।

राहुल गांधी का सीधा हमला

सोनिया गांधी के लेख को साझा करते हुए राहुल गांधी ने सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि न जनसंवाद हुआ, न संसद में पर्याप्त चर्चा और न ही राज्यों की सहमति ली गई। राहुल गांधी के अनुसार सरकार ने मनरेगा ही नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर भी बुलडोजर चला दिया है। उन्होंने इसे विकास नहीं, बल्कि विनाश करार देते हुए कहा कि इसकी कीमत करोड़ों मेहनतकश भारतीयों को अपनी रोजी-रोटी गंवाकर चुकानी पड़ेगी।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भी साफ किया है कि पार्टी जी राम जी कानून के खिलाफ एक संगठित और सार्वजनिक अभियान की घोषणा करेगी। उनके मुताबिक यह आंदोलन केवल विरोध प्रदर्शन तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसमें संवाद, जनसभाएं और सामाजिक भागीदारी को केंद्र में रखा जाएगा।

27 दिसंबर को कांग्रेस की होगी बड़ी बैठक

कांग्रेस कार्यसमिति की 27 दिसंबर की बैठक में आंदोलन कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया जाएगा। आंदोलन का मॉडल कृषि कानूनों की वापसी के दौरान हुए जनांदोलन जैसा होगा। गांव-गरीब और किसान-मजदूर को आंदोलन की केंद्रीय धुरी बनाया जाएगा।

नए साल से देशव्यापी विरोध कार्यक्रमों की शुरुआत के संकेत। कुल मिलाकर, जी राम जी कानून को लेकर कांग्रेस ने लंबी और निर्णायक लड़ाई की तैयारी कर ली है। सवाल अब यह नहीं है कि आंदोलन होगा या नहीं, बल्कि यह है कि यह संघर्ष कितना व्यापक रूप लेता है और सरकार पर कितना दबाव बना पाता है।