कारखाने रोजगार नहीं मौत बांट रहे हैं, हवा में घुल रहा जहर
नवप्रदेश संवाददाता
जांजगीर चांपा। जिले में औद्योगिक घरानों के आने के बाद लोगों को लगा कि अब उनका जीवन खुशहाल होगा। लेकिन उन्हें क्या पता था कि ये फैक्ट्रियां ही उनके जी का जंजाल बन जाएंगी। दरअसल जिले के बाराद्वार बस्ती में लगी फैक्ट्री से निकलने वाला धूल लोगों के स्वास्थ्य को काफी नुकसान पहुंचा रहा है।
बाराद्वार बस्ती के आमागोलाई में स्थित कारखाने से निकलने वाला डस्ट स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है। इससे लोगों में खांसी और एलर्जी जैसी बीमारियां आम बात बन गई हैं। इतना ही नहीं बल्कि इन पत्थरों के डस्ट से बना धुआं सिलिकोसिस जैसी घातक बीमारी को जन्म देता है जो कि लाइलाज है। वहीं दूसरी ओर फैक्ट्री के मालिक को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता।
ग्रामीणों के घरों में दरारें
इस कंपनी के छितापंडरिया में चार खदान हैं जहां लगातार ब्लास्टिंग होने से आस-पास के ग्रामीणों के घरों में दरारें आने लगी हैं. ग्रामीणों का कहना है कि जब पत्थर खदानों में ब्लास्ट होता है तो उन्हें ऐसा लगता है मानो भूकंप आ गया हो।वहीं फैक्ट्री में चलने वाली भारी गाडिय़ों की वजह से क्षेत्र की सड़कें बद से बदतर हो गई हैं।
कोसा बाड़ी पूरी तरह बंजर
इलाके में रेशम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कोसा बाड़ी लगाया गया था।जो की फैक्ट्री से निकलने वाले धुएं की वजह से पूरी तरह बंजर हो गया है। ग्रामीणों के साथ-साथ क्षेत्रीय विधायक केशव चंद्रा ने जिला प्रशासन और राज्य स्तरीय अधिकारियों से इसकी शिकायत की थी।लेकिन अब तक इस ओर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
धुएं से भरे वातावरण में जीने को मजबूर
आलम ये है कि यहां के ग्रामीण जहरीले धुएं से भरे वातावरण में जीने को मजबूर हैं। वहीं प्रशासन ऐसी फैक्ट्रियों के ऊपर कोई कार्रवाई करते नहीं दिख रहा है।ये जिले में पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी चांपा क्षेत्र में स्थित कारखानों के कारण सिलिकोसिस से कई लोग पीडि़त हुए। इनमें से कई लोगों की मौत भी हो गयी। लेकिन न तो मामले में उचित जांच हुई और न ही कार्रवाई।
एक नजर सिलिकोसिस से जिले में होने वाली मौतें
- गायत्री बाई मन्नेवार- कृष्णा इंडस्ट्रीज
- राम कुमार यादव- कृष्णा इंडस्ट्रीज
- सरिता चौहान- अरबिंद इंडस्ट्रीज
- गंगोत्री बाई कंवर- कृष्णा इंडस्ट्रीज
- थिकराम यादव- कृष्णा इंडस्ट्रीज
ये नाम तो सिर्फ आंकड़ों में है।पता नहीं कितने लोग ऐसे भी हैं जो मौत की फैक्ट्री के धुएं से काल के गाल में समां गए। वहीं क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि इन मौत की फैक्टरी को बंद करने की मांग कर रहे हैं।लेकिन अब तक प्रशासनिक अमलों द्वारा कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।