पलायन पर नहीं कस पा रही नकेल, काम की तलाश में दूसरे प्रदेश जाने वाले अक्सर बन जाते हैं बंधक

पलायन पर नहीं कस पा रही नकेल, काम की तलाश में दूसरे प्रदेश जाने वाले अक्सर बन जाते हैं बंधक

नवप्रदेश संवाददाता
जांजगीर-चांपा। जिले में पलायन की समस्या थमने का नाम नहीं ले रही है। अभी हरियाणा में बंधक बने 57 ग्रामीणों को मुक्त कराया गया था। जब ग्रामीण यहां पहुंचे तो उन्होंने जो आपबीती बताई उसे सुनकर किसी के भी रौंगटे खड़े हो जाएंगे। शासन के आदेश के बाद भी जिले के पंचायतों में पलायन पंजी नहीं है। इसके चलते पलायन करने वालों का सही आंकड़ा प्रशासन के पास उपलब्ध नहीं है।
मनरेगा में असमय भुगतान व हर समय काम नहीं मिलने के चलते ग्रामीण पलायन करने मजबूर हैं। यहां कृषि मजदूरी पर आश्रित ज्यादातर गरीब वर्ग के लोग खेती का काम समाप्त होने के बाद खाली हो जाते हैं। ऐसे में काम के अभाव में वे पलायन करने मजबूर हो जाते हैं। वैसे तो जिले में पलायन छेरछेरा त्योहार के बाद बड़े पैमाने पर होता है मगर छिटपुट पलायन साल भर चलता है। काम के अभाव में भी ग्रामीण पलायन करते हैं। पलायन पर नियंत्रण रखने तथा यहां से बाहर गए मजदूरों की सही जानकारी के लिए श्रम विभाग ने जनपदों में आदेश जारी कर सभी पंचायतों में पलायन पंजी बनाने को कहा है मगर ज्यादातर पंचायतों में पलायन रजिस्टर नहीं बना है। इसके कारण ग्रामीण गैर पंजीकृत ठेकेदार और लेबर सरदार के झांसे में आकर पलायन कर जाते हैं और अन्य प्रांतों में इनका शोषण होता है। हाल ही में मालखरौदा क्षेत्र के बंधक बने 57 ग्र्रामीणों को प्रशासन ने हरियाणा से मुक्त कराया है। इन सभी ग्रामीणों को हरियाणा में बंधक बनाकर शारीरिक व मानसिक यातनाएं दी जा रही थी। इसी तरह दूसरे प्रदेशों में मजदूरों को बंधक बनाने की घटना आम है मगर न तो यहां पलायन पंजी बनाई जा रही है और न ही अनाधिकृत रूप से मजदूर ले जाने वालों पर कार्रवाई की जा रही है। इसके चलते जिले के अधिकांश गांवों से यहां बड़े पैमाने पर पलायन होता है। जैजैपुर ब्लाक के कारीभांवर, बेलकर्री, आमगांव, बावनबुड़ी, परसाडीह बलौदा ब्लाक के उसलापुर, अचानकपुर, औराईखुर्द, नवागढ़ के भठली, पथर्रा, पेण्ड्री, पामगढ़ ब्लाक के भुईगांव, केसला, कुटरा, कुथूर सहित अन्य गांवों में भी बड़े पैमाने पर पलायन होता है।
नाबालिग भी करते हैं पलायन
ज्यादातर परिवार अपने साथ छोटे बच्चों को भी अपने साथ ले जाते हैं। इससे उनकी पढ़ाई छूट जाती है। ऐसे में शाला त्यागी बच्चों की संख्या भी बढ़ रही है और मासूम बच्चों का बचपन भी छिन रहा है। जब भी पलायन की सूचना जिला प्रशासन को मिलती है तो जिम्मेदार दो टूक कहते हैं कि ग्रामीण अपनी मर्जी से पलायन कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें रोक पाना उनके वश में नहीं है। पिछले कुछ सालों में मीडिया ने रेलवे स्टेशन सहित बस स्टैंडों में पलायन करने वालों की जानकारी श्रम विभाग को दी, पर वो बेबस नजर आए।

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