Jammu & Kashmir : जम्मू कश्मीर में खुला चुनाव का रास्ता
डॉ. ओ.पी. त्रिपाठी। Jammu & Kashmir : जम्मू-कश्मीर को लेकर परिसीमन आयोग की रिपोर्ट हाल ही में आई है। परिसीमन आयोग की रिपोर्ट के बाद बाद अब जम्मू कश्मीर में चुनाव का रास्ता साफ हुआ है। परिसीमन आयोग ने केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा की सात सीटों की बढ़ोतरी के साथ गुरुवार को परिसीमन से जुड़ी अपनी रिपोर्ट दे दी। परिसीमन आयोग ने अपनी रिपोर्ट चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को सौंपी है।
इसके तहत जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की कुल सीटें 83 से बढ़कर 90 हो गई हैं। इनमें से जम्मू क्षेत्र में सीटों की कुल संख्या अब 43 हो गई है। कश्मीर क्षेत्र में कुल 47 सीटें हो गई हैं। दरअसल, 1995 के बाद हुए परिसीमन में वर्ष 2011 की जनगणना को आधार बनाया गया है। उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में जून 2018 से राष्ट्रपति शासन लागू है। भाजपा ने तब मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लिया था। मोदी सरकार ने अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था। जम्मू-कश्मीर अब विधानसभा के साथ केंद्रशासित प्रदेश है।
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त किए जाने और उससे लद्दाख को अलग कर दो केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद केंद्र सरकार ने नए सिरे से परिसीमन कराने का फैसला लिया था। इसको लेकर मार्च 2020 में जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया गया। मुख्य चुनाव आयुक्त और जम्मू-कश्मीर के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी को इसका सदस्य बनाया गया। जम्मू-कश्मीर के सभी लोकसभा सदस्यों को भी इसमें शामिल किया गया। आयोग ने इन सदस्यों के साथ जम्मू-कश्मीर का दौरा कर स्थानीय लोगों से भी सुझाव लिए। इस दौरान आयोग को 1,600 से अधिक सुझाव मिले थे।
केंद्र सरकार कहती रही है कि परिसीमन आयोग की रिपोर्ट आने के बाद से राज्य में चुनाव कराए जाएंगे। हालांकि, परिसीमन को विपक्षी दल भाजपा पर राजनीतिक लाभ उठाने की कवायद बता रहे हैं। वे भाजपा के प्रभुत्व वाले जम्मू को बढ़त देने की बात कह रहे हैं। बहरहाल, अब राज्य की विधानसभा बहाल हो सकेगी। साथ ही लद्दाख के केंद्रशासित प्रदेश बनाये जाने के बाद कम हुई सीटों की भरपाई नये परिसीमन से होगी।
परिसीमन आयोग की रिपोर्ट से बड़ा बदलाव यह है कि जम्मू संभाग (Jammu & Kashmir) में विधानसभा सीटों की संख्या 37 से बढ़कर 43 हो गई हैं, जबकि कश्मीर के लिये एक विधानसभा सीट बढ़ाई गई है। अब नई विधानसभा की नब्बे सीटों में कश्मीर संभाग की सीटों की संख्या 47 होगी। निस्संदेह, कश्मीर की बढ़त तो कायम रहेगी, लेकिन बढ़त का यह अंतर पहले से कम हो जायेगा। वहीं कश्मीरी पंडितों व पाक अधिकृत कश्मीर के विस्थापितों को भी प्रतिनिधित्व दिये जाने की बात कही जा रही है। निस्संदेह, नये बदलावों के गहरे निहितार्थ हैं। कहा जा रहा है कि जम्मू संभाग में पहले से मजबूत भाजपा और मजबूत होकर उभरेगी।
लद्दाख के अलग होने के बाद जम्मू-कश्मीर की बची पांच लोकसभा सीटों का परिसीमन आयोग ने नए सिरे से पुनर्गठन किया है। इसके तहत सभी लोकसभा सीटों का भौगोलिक क्षेत्र बदला गया है। इन पांच सीटों में से दो-दो सीटें जम्मू और कश्मीर क्षेत्र में रखी गई हैं। अनंतनाग सीट का गठन इस तरह किया गया है कि इसका आधा हिस्सा जम्मू और आधा हिस्सा कश्मीर में रहेगा। पांचों लोकसभा सीटों में प्रत्येक में विधानसभा की 18-18 सीटें रखी गई हैं। आयोग के मुताबिक परिसीमन में जनसंख्या के साथ ही भौगोलिक, सामाजिक तानेबाने और प्रशासनिक जुड़ाव को भी ध्यान में रखा गया है।
पहली बार अनुसूचित जनजातियों के लिए 9 सीटें आरक्षित की गई हैं, इनमें से 6 सीटें जम्मू और तीन सीटें कश्मीर के लिए निर्धारित हैं। पहली बार कश्मीरी पंडितों के लिए 2 सीटें रिजर्व करने की सिफारिश की गई है। वहीं च्वज्ञ के विस्थापित शरणार्थियों के लिए भी कुछ सीटें आरक्षित करने की सिफारिश की गई है। परिसीमन में कई विधानसभा सीटों के नाम बदलने की सिफारिश है।
रियासी जिले में गूल-अरनास निर्वाचन क्षेत्र को नई सीट श्री माता वैष्णोदेवी के रूप में नया रूप दिया गया है। जम्मू क्षेत्र में पद्दर विधानसभा सीट का नाम बदलकर पद्दर-नागसेनी, कठुआ उत्तर को जसरोटा, कठुआ दक्षिण को कठुआ, खौर को छांब, महोरे को गुलाबगढ़, तंगमर्ग को गुलमर्ग, जूनीमार को जैदीबाल, सोनार को लाल चैक और दरहल का नाम बुढ़हल किया गया है। जम्मू-कश्मीर में 1995 में आखिरी परिसीमन के बाद से वहां जिलों की संख्या 12 से बढ़कर 20 हो चुकी है।
परिसीमन आयोग ने जिन बदलावों का सुझाव दिया है, उनका बीजेपी को छोड़कर घाटी की बाकी पार्टियां विरोध कर रही हैं। कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने सवाल उठाया है कि जब पूरे देश के बाकी निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन पर 2026 तक रोक लगी है, तो फिर जम्मू-कश्मीर के लिए अलग से परिसीमन क्यों हो रहा है। दरअसल, पूरे देश में परिसीमन की प्रक्रिया पर 2026 तक रोक लगी है और केवल जम्मू-कश्मीर में ही विधानसभा क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण हो रहा है।
जम्मू-कश्मीर के परिसीमन के विरोध की दूसरी वजह राजनीतिक है। दरअसल, राजनीतिक पार्टियां जनसंख्या के लिहाज से ज्यादा आबादी वाले मुस्लिम बहुल कश्मीर (Jammu & Kashmir) में कम सीटें बढ़ाने और हिंदू बहुल जम्मू में ज्यादा सीटें बढ़ाने के कदम की आलोचना कर रही हैं। दरअसल, विपक्षी दलों की आलोचना का एक पक्ष यह भी है कि जनसंख्या की दृष्टि से बड़े कश्मीर संभाग को कम प्रतिनिधित्व दिया गया है।
वहीं राजनीतिक पंडित कयास लगा रहे हैं कि इससे घाटी की सियासत में बदलाव आयेगा। वहीं दूसरे पक्ष का कहना है कि परिसीमन आयोग ने दोनों संभागों को एक इकाई के रूप में देखा है। आयोग ने जनसंख्या के बजाय विभिन्न क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति, इलाके की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि तथा पाक सीमा से लगे इलाकों की संवेदनशीलता को तरजीह दी है।