Jagannath Ratha Yatra 2025 : न अपूर्ण, न अधूरी... ये तो प्रभु की लीला है…जानिए क्यों जगन्नाथ की मूर्ति में नहीं हैं हाथ-पैर…

Jagannath Ratha Yatra 2025 : न अपूर्ण, न अधूरी… ये तो प्रभु की लीला है…जानिए क्यों जगन्नाथ की मूर्ति में नहीं हैं हाथ-पैर…

पुरी, 23 जून| Jagannath Ratha Yatra 2025 : हर साल लाखों श्रद्धालुओं का जनसैलाब जब पुरी की ओर उमड़ता है, तो केवल रथ यात्रा का उत्सव नहीं होता — यह भगवान जगन्नाथ के अद्भुत रूप का उत्सव भी होता है। एक ऐसा रूप, जो सामान्य देवमूर्ति से बिलकुल अलग है। न पारंपरिक श्रृंगार, न ही भव्य शारीरिक गठन। न हाथ, न पैर — फिर भी जगन्नाथ के इस रूप में भक्ति की पराकाष्ठा समाई हुई है।

क्या यह मूर्ति अधूरी है? नहीं। यह अधूरापन नहीं, अपूर्वता है।

आइए जानते हैं उस दिव्य रहस्य को, जो जगन्नाथ की मूर्ति को संपूर्ण जगत में अनोखा बनाता है।

जब विश्वकर्मा बने मूर्तिकार और राजा की अधीरता बन गई लीला

एक कथा के अनुसार, राजा इंद्रद्युम्न को स्वप्न में आदेश मिला कि समुद्र तट से एक विशेष लकड़ी प्राप्त होगी जिससे भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां बनानी होंगी। उन्होंने देवताओं के वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा से यह कार्य करवाने का निश्चय किया। शर्त थी — दरवाजा बंद रहेगा और कोई भीतर नहीं आएगा।

दिन बीतते गए, राजा की बेचैनी बढ़ती गई। अंततः उन्होंने नियम तोड़ा, दरवाजा खोला… और उसी क्षण विश्वकर्मा अंतर्ध्यान हो गए। मूर्तियां अधूरी रह गईं — बिना हाथ-पैर (Jagannath Ratha Yatra 2025)के।

लेकिन राजा ने इन्हें ही ‘पूर्ण’ माना। क्योंकि शायद यही प्रभु की इच्छा थी।

बड़ी आंखों की कथा: जब प्रेम में आंखें फैल गईं

एक और अलौकिक कथा बताती है कि श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा जब द्वारका में रोहिणी माता से वृंदावन की रासलीला सुन रहे थे, तब भावावेश में उनकी आंखें बड़ी हो गईं। उसी रूप को देखकर नारद मुनि भाव-विभोर हो उठे और उन्होंने कामना की कि यही स्वरूप भक्तों को भी मिले। तभी से यह रूप ‘स्थायी’ हो गया।

जगन्नाथ की बड़ी आंखें प्रतीक हैं उस प्रेम की, जो शब्दों से नहीं — अनुभव से महसूस होता है।

जगन्नाथ: वह देवता, जो अधूरे में भी पूर्ण हैं

पुरी के श्रीमंदिर में स्थित ये मूर्तियां विश्व के लिए संदेश हैं —

“भगवान का रूप शारीरिक नहीं, भावनात्मक होता है।”

उनके हाथ न दिखते हैं, पर वे सबके दुख हर लेते ((Jagannath Ratha Yatra 2025))हैं। उनके पैर नहीं हैं, पर हर भक्त की ओर दौड़ते हैं। यह स्थूल नहीं, सूक्ष्म अनुभूति का प्रमाण है।

रथ यात्रा 2025: फिर से जुड़ेगा भक्त और भगवान का बंधन

इस वर्ष 27 जून से शुरू हो रही रथ यात्रा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है — जो यह सिखाती है कि भक्ति, पूर्णता में नहीं — समर्पण में बसती है।

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