संपादकीय: निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक जरूरी

It is necessary to stop the arbitrariness of private schools
It is necessary to stop the arbitrariness of private schools: इस साल का नया शिक्षण सत्र शुरू हो गया है। इसी के साथ अभिभावकों की निजी स्कूलों की मनमानी की पुरानी शिकायतें फिर सामने आने लगी है। देश की राजधानी नई दिल्ली में निजी स्कूल वालों ने लूट मचा रखी है जिसे लेकर वहां आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आरोप लगाया है कि नई दिल्ली में भाजपा की सरकार बनने के बाद से शिक्षा माफिया फिर से सक्रिय हो गये हैं।
केजरीवाल ने दावा किया है कि जब नई दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार थी तब उन्होंने निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगा रखा था और सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों से बेहतर बनाने की मुहिम चला रखी थी किन्तु अब भाजपा के शासनकाल में निजी स्कूल वालों की चांदी हो गई है वे अभिभावाकों से डोनेशन के नाम पर मोटी रकम वसूल रहे हैं और स्कूल फीस में भी मनमाने ढंग से वृद्धि कर रहे हैं।
लेकिन नई दिल्ली की भाजपा सरकार निजी स्कूल संचालकों की नाक में नकेल कसने में विफल सिद्ध हो रही है। पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी ने भी इसी तरह के आरोप लगाये हैं और भाजपा सरकार पर निशाना साधा है। इसके जवाब में भाजपा नेताओं ने कहा है कि उनकी सरकार निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए कारगर कदम उठा रही है हकीकत तो यह कि आम आदमी पार्टी की सरकार के दौरान नीति स्कूल लूटपाट का केन्द्र बन गये थे। संसद के बजट सत्र में राज्यसभा सदस्य स्वाति मालीवाल ने भी यह मुद्दा उठाया था और उन्होंने कहा था कि निजी स्कूल मुनाफाखोरी के अड्डे बन गये हैं जहां अभिभावकों को एटीएम समझा जाता है। उन्होंने सरकार से मांग की थी कि निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने कड़े कदम उठाये जाएं।
नई दिल्ली की तरह ही कमोवेश पूरे देश में निजी स्कूलों का यही हाल है। ये निजी शिक्षण संस्थान दुकान के रूप में तब्दील होने लगे हैं। जहां न सिर्फ मुंहमांगी फीस वसूली जाती है बल्कि स्कूल से ही कॉपी , किताब स्कूल डे्रेस और जूते आदि भी खरीदने पड़ते हैं और उनकी मनमानी कीमत वसूल की जाती है। निजी स्कूलों में हर साल पाठ्यक्रम बदल दिया जाता है ताकि किताबें दूसरे साल अन्य छात्रों के लिए अनुपयोगी हो जाये और उन्हें नई पुस्तकें खरीदनी पड़े।
नई दिल्ली ही नहीं बल्कि देशभर के इन निजी स्कूलों की मनमानी पर कड़ाईपूर्वक रोक लगाने की सख्त जरूरत है। इसके लिए केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को प्रभावी पहल करनी चाहिए। किन्तु दिक्कत यह है कि अधिकांश निजी स्कूल नेताओं या उनके खास लोगों के होते हैं यही वजह है कि निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए राज्य सरकारें कारगर कदम उठाने से हिचकिचाती हैं।
निजी स्कूलों के लिए सरकारी नियम कायदों की भी अंदेखी करना आम बात हो गई है। चूंकि देश में सरकारी स्कूलों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। इसलिए लोग निजी स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला कराते हैं। ताकि उनका भविष्य उज्जवल हो सके। अभिभावाकों की इसी मजबूरी का फायदा उठाते हुए निजी स्कूलों के संचालक अभिभावकों को दोनों हाथों से लूटते हैं।
उनकी इस लूट खसोट पर रोक लगाने की समय समय पर मांग उठती है लेकिन ऐसी मांग नक्कारखाने में तूती की आवास बनकर रह जाती है। अब स्वाति मालीवाल ने राज्यसभा में यह मुद्दा उठाया है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि केन्द्र सरकार निजी स्कूलों की अनधेडग़र्दी को दूर करने के लिए गंभिरतापूर्वक विचार करेगी। और इस बारे में सख्त कदम उठाएगी।