संपादकीय: मुफ्त रेवड़ी कल्चर पर रोक लगाना जरूरी
Stop free rave culture: जम्मू कश्मीर और हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस पार्टी सहित अन्य राजनीतिक दलों ने अपने -अपने चुनावी घोषणापत्र जारी करना शुरू कर दिया है।
इनमें मतदाताओं का मन मोहने के लिए लोक लुभावन घोषणाएं की जा रही हैं। फ्री रेवड़ी कल्चर को आगे बढ़ाने की इन दलों के बीच होड़ लग गई है।
हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी ने जो चुनावी घोषणापत्र जारी किया है। उसमें महिलाओं को दो हजार रुपए महीना सहायता राशि देने का वादा किया गया है।
यही नहीं बल्कि बुजुर्गों को सामाजिक सुरक्षा पेंशन के रूप में हर महीने पांच हजार रुपए देने की घोषणा की गई है। छात्र छात्राओं को भी इसी तरह की मुफ्त चीजें देने का वादा किया गया है।
इधर भाजपा ने भी अपने चुनावी संकल्प पत्र में एक कदम और आगे बढ़ते हुए महिलाओं को इक्कीस सौ रुपए महीना देने की घोषणा की है। अभी आम आदमी पार्टी का चुनावी घोषणा पत्र जारी होना बचा है।
कोई ताज्जुब नहीं होगा कि यदि आम आदमी पार्टी अपने चुनावी घोषणा पत्र में महिलाओं को ढाई या तीन हजार रुपए महीना देने की घोषणा कर दें।
गौरतलब है कि मुफ्त रेवड़ी कल्चर (Stop free rave culture) को आम आदमी पार्टी ने ही सबसे पहले बढ़ावा दिया था। नई दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान उसने मुफ्त बिजली पानी और महिलाओं को बसों में मुफ्त यात्रा कराने सहित कई ऐसी घोषणाएं की थी जो मुफ्तखोरी को बढ़ावा देती है।
इसका आम आदमी पार्टी को लाभ मिला और नई दिल्ली में लगातार दो बार विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक बहुमत प्राप्त हुआ। इसके बाद उसने पंजाब में भी यही फ्री वाला फॉर्मूला अपनाया और पंजाब में भी दो तिहाई बहुमत से आम आदमी पार्टी अपनी सरकार बनाने में सफल रही।
अब हरियाणा में भी आम आदमी पार्टी वही फॉर्मूला लागू करेगी। आम आदमी पार्टी की देखा देखी कांग्रेस और भाजपा सहित अन्य राजनीतिक पार्टियां भी अब अपने चुनावी घोषणा पत्रों में मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली लोक लुभावन घोषणाओं की भरमार करने लगी हैं।
इसी फॉर्मूले को अपनाकर कांग्रेस ने पहले कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में अपनी सरकार बनाई और फिर तेलंगाना में भी वह अपनी सरकार बनाने में कामयाब हो गई।
यह बात अलग है कि मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली इन घोषणाओं को अमलीजामा पहनाने के कारण इन राज्यों की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गई है।
सबसे बुरी स्थिति हिमाचल प्रदेश की है। जहां सरकारी कर्मचारियों के वेतन के लाले पड़ गए हैं। इसके बावजूद राजनीतिक पार्टियां सत्ता प्राप्त करने के लिए मतदाताओं को प्रलोभन परोसने से बाज आने का नाम नहीं ले रही हैं।
दरअसल मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली घोषणाओं पर रोक लगाने में चुनाव आयोग समर्थ नहीं है। इसी का फायदा उठाकर राजनीतिक पार्टियां फ्री रेवड़ी कल्चर (Stop free rave culture) को लगातार आगे बढ़ा रही हैं।
इसपर रोक लगनी निहायत जरूरी है और यह काम अब सुप्रीम कोर्ट ही कर सकता है। जहां एक अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने चुनाव में मुफ्त सुविधाओं के वादों के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर कर रखी है।
इस याचिका में कहा गया है कि ऐसे वादे संविधान का उल्लंघन हैं। मुफ्त सुविधाएं देना मतदाताओं को रिश्वत देने के समान अनैतिक कार्य है इसलिए इसपर रोक लगाई जाए।
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने यह मांग की है कि मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली घोषणा करने वाले राजनैतिक दलों का चुनाव चिन्ह फ्रीज कर देना चाहिए और ऐसी पार्टियों का पंजीकरण भी रद्द कर देना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है और यह याचिका सुप्रीम कोर्ट में सूचीबद्ध हो गई है। उम्मीद की जानी चाहिए की इस पर शीघ्र ही सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा और फ्री रेवड़ी कल्चर पर रोक लगाने के लिए कड़े दिशा निर्देश जारी करेगा।