संपादकीय: संसद में जारी गतिरोध टूटना जरूरी

संपादकीय: संसद में जारी गतिरोध टूटना जरूरी

It is necessary to break the deadlock in Parliament

It is necessary to break the deadlock in Parliament

Editorial: 21 जुलाई से शुरू हुए संसद के मानसून सत्र में लगातार गतिरोध बना हुआ है। संसद के मानसून सत्र का अगाज ही हंगामे के साथ हुआ था और विपक्ष आपरेशन ङ्क्षसदूर पर संसद में चर्चा की मांग को लेकर जिद पर अड़ गया। विपक्ष चाहता था कि आपरेशन सिंदूर पर तत्काल चर्चा कराई जाये और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस पर जवाब दें। सरकार इसपर चर्चा के लिए तैयार भी हो गई लेकिन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि इस पर चर्चा नियमों के अनुसार ही होगी इसके लिए लोकसभा में 16 घंटे और राज्यसभा में 9 घंटे बहस के लिए तय कर दिये गये।

किन्तु विपक्ष तत्काल चर्चा की मांग को लेकर हंगामा करता रहा है। नतीजतन यह पूरा सप्ताह हंगामों की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है। लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही शुरू होते ही विपक्ष इस मुद्दे को लेकर हंगामा करना शुरू कर देता है। जिसकी वजह से बार बार सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ती है। सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर चर्चा से भागने का आरोप प्रत्यारोप लगाते रहे हैं। विपक्ष ने तो संभवत: हंगामा खड़ा करना ही अपना मकसद बना लिया है।

सत्ता पक्ष भी संभवत: संसद में जारी गतिरोध को तोडऩे का इच्छुक नहीं है अन्यथा दो तीन दिनों के हंगामे के बाद यह गतिरोध समाप्त किया जा सकता था। ससंद को सुचारू रूप से चलाना सत्ता पक्ष की ही जिम्मेदारी होती है जिसके निर्वहन में सत्ता पक्ष विफल सिद्ध हो रहा है। संसद का मानसून सत्र महत्वपूर्ण है इसमें मणिपुर वस्तु एवं सेवा कर संशोधन विधेयक तथा मणिपुर में राष्ट्रपति शासन को हर छह महीने में संसद की मंजूरी बढ़ाने की तथा इसके विस्तार के लिए एक विधेयक लाने के अलावा अन्य आधा दर्जन महत्वपूर्ण विधेयक भी पेश किये जाने हैं किन्तु संसद में गतिरोध के चलते विधि विधाई कार्य नहीं हो पा रहा है।

सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तलवारें खींची हुई है दोनों ही अपनी जिद पर कायम हैं जिसकी वजह से बीच का रास्ता नहीं निकल पा रहा है। इस बीच मानसून सत्र के पहले ही दिन राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक दिये गये इस्तीफे को लेकर भी नया सियासी बवाल खड़ा हो गया है। कुल मिलाकर संसद में हंगामों के कारण कामकाज बाधित हो रहा है और जनहित से जुड़े मुद्दों पर सार्थक चर्चा नहीं हो पा रही है। जनहित में यह जरूरी है कि संसद में जारी गतिरोध जल्द से जल्द टूटे और इसके लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष गंभीरतापूर्वक विचार कर संसद को सुचारू रूप से चलाने के लिए आपसी सहमति बनाई।