EXCLUSIVE : पिता को न्याय दिलाने 22 लाख की नौकरी छोड़ बेटा बना IPS

EXCLUSIVE : पिता को न्याय दिलाने 22 लाख की नौकरी छोड़ बेटा बना IPS

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नई दिल्ली/नवप्रदेश। आईपीएस (ips) व आईएएस बनने वाले अधिकतर लोग पहले से ही इस मुकाम तक पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित कर तैयारी करते हैं। लेकिन देश में नीरज जादौन (neeraj jadaun) नाम के एक आईपीएस (ips) ऐसे भी हैं, जो अपने पिता के न्याय (justice for father) दिलाने के लिए आईपीएस बने। इसके लिए उन्होंने 22 लाख रुपए की नौकरी (job of 22 lakh rupees) तक छोड़ दी।

बंगलुरू की एक कंपनी में वे 22 लाख रुपए की नौकरी (job of 22 lakh rupees) पर थे। लेकिन पिता को पिता को न्याय दिलाने के लिए उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। नौकरी छोड़कर आईपीएस की तैयारी करने लगे।

उनकी कहानी कुछ इस प्रकार है। नीरज जादौन (neeraj jadaun) उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के नौरेजपुर गांव के निवासी है। पुलिस दल मेंं सुपर हीरो के रूप में वे जाने जाते हैं। उनकी मां महज 8वीं पास थी, वहीं पिता 12 उत्तीर्ण है। पांच भाइयों में नीरज सबसे बड़े थे।

पिता की हत्या के बाद बदल दिया जीवन

उनकी शालेय शिक्षा कानपुर में पूरी हुई। इसके बाद उन्हें नोएडा में नौकरी भी मिली। वहां उन्होंने सालभर काम किया। लेकिन एक घटना से उनका पूरा जीवन बदल गया। वो घटना थी उनके पिता की हत्या की। दिसंबर 2008 को खेती केे विवाद में नीरज जादौन (neeraj jadaun) के पिता की हत्या कर दी गई। उस वक्त नीरज महज 26 वर्ष के थे। पिता की हत्या के बाद परिवार की जिम्मेदारी नीरज के कंधों पर आ गई।

यह घटना जब घटी तब नीरज बंगलुरु में एक कंपनी में 22 लाख के पैकेज की नौकरी कर रहे थे। 2013 तक उन्होंने कंपनी में काम किया। इस के साथ ही अपने पिता को न्याय दिलाने के लिए वे कोर्ट के चक्कर भी लगाया करते थे। हत्या प्रकरण से पुलिस के प्रति उनके मन में बेहद गुस्सा पनप गया था। इसके बाद ही उन्होंने आईपीएस बनने का निर्णय लिया।

पिता को न्याय दिलाने पुलिस से मांगनी पड़ी भीख

नीरज ने बताया- मैं नौकरी करते हुए केस लड़ रहा था। एक तरफ मेरी बड़ी नौकरी थी, लेकिन पिता को न्याय दिलाने के लिए पुलिस प्रशासन से मुझे भीख मांगनी पड़ी। मेरा परिवार कानपुर में रह रहा था। उन्हेंं आरोपियों के द्वारा सतत धमकाया जा रहा था। सभी डर में जी रहे थे।

2011 में इंटरव्यू तक पहुंचे 2014 में बने आईपीएस

इसी बीच नीरज के भाई को 2010 में नौकरी लग गई। इसके बाद नीरज ने आईपीएस की तैयारी शुरू कर दी। 2011 में वे पहले इंटरव्यू तक पहुंचे, लेकिन निराश हाथ लगी। लेकिन एक साल बाद 2012 में 546वां क्रमांक हासिल किया। उन्हें इंडियन पोस्ट व टेलिकम्यूनिकेशन अकाउंट्स एवं फाइनेंस सर्विस में एक पद मिला। लेकिन पुलिस दल में जाने का सपना अधूरा ही रहा। इसके बाद 2014 में एक बार फिर से परीक्षा दी। 140वां क्रमांक मिला। इसके बाद इंटरव्यू से आईपीएस के लिए उनकी नियुक्ति हुई ।

6 बार हमला भी हुआ

पुलिस में शामिल हो जाने के बाद उनके साहसी निर्णय निडर होकर किए गए कामों से उन पर 6 बार हमला भी हुआ। नीरज अपनी ड्यूटी के साथ ही समाजसेवा के अनेक काम भी कर रहे हैं। पिता के साथ हुआ अन्याय उन्हें शांत बैठने नहीं दे रहा था और आखिरकार उन्होंने पिता को न्याय दिलाने के लक्ष्य को हासिल कर लिया।

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