भारत की वॉटर स्ट्राइक से बिलबिलाने लगा पाकिस्तान

India's water strike

डॉ. आशीष वशिष्ठ
India’s water strike: 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान द्वारा पोषित और प्रेषित आतंकियों ने निर्दोष नागरिकों का धर्म पूछकर नृशंस हत्या की। पहलगाम में आतंकी हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से भारत ने जहां पाकिस्तान को सैन्य मोर्चे पर तबाह कर दिया वहीं, उससे पहले सिंधु जल समझौते को स्थगित करने के फैसले से पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसा दिया है। भारत ने सिंधु जल संधि को ऐसे समय में निलंबित किया है जब पाकिस्तान पहले से ही जल संकट का सामना कर रहा है। पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रांत में छह नई नहरें बनाने की योजना भी विवादों में फंसी है।
इतिहास के आलोक में अगर बात की जाए तो सिंधु जल समझौते के अंतर्गत भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु घाटी को 6 नदियों में विभाजित करने को लेकर नौ साल तक वार्ता चली और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री रहे जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अयूब खान के मध्य 19 सितंबर 1960 में सिंधु जल संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता से कराची में समझौता हुआ।
इस संधि के तहत सिंधु बेसिन की तीन पूर्वी नदियों रावी, ब्यास और सतलुज का पानी भारत को आवंटित किया गया। वहीं तीन पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब के जल का 80 फीसदी हिस्सा पाकिस्तान को आवंटित किया गया। समझौते में जिस तरह से जल का बंटवारा किया गया उससे तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री और सरकार की रीति—नीति का समझा जा सकता है। पीएम नेहरू ने देशहित की बजाय पाकिस्तान के हितों का अधिक ध्यान रखा। यह संधि पाकिस्तान में कृषि और हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए बहुत अहम है और पाकिस्तान में 80 प्रतिशत सिंचाई के पानी की आपूर्ति इन्हीं नदियों के पानी से होती है। कई शहरों के लिए पेयजल की आपूर्ति भी इस नदी से की जाती है।
भारत और पाकिस्तान के बीच 65 साल पहले हुई इस जल संधि के तहत दोनों देशों के बीच नदियों के जल प्रबंधन को लेकर समझौता हुआ था। नदियों को बांटने का ये समझौता कई युद्धों, मतभेदों और झगड़ों के बावजूद 65 वर्षों से अपने स्थान पर यथावत रहा। लेकिन जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले में 26 लोगों के मारे जाने के बाद भारत ने जिन कड़े कदमों की घोषणा की उनमें यह सबसे बड़ी कार्रवाई माना जा रहा है। भारत द्वारा संधि को निलंबित करना इसकी स्थापना के बाद से पहली बार है, जो सीमा पार आतंकवाद से जुड़ी जल कूटनीति में बदलाव का संकेत है। यह भारत के दृष्टिकोण में बदलाव को दर्शाता है।
2016 में उरी में भारतीय सेना के एक शिविर पर हमले के बाद डेढ़ सप्ताह बाद हुई एक समीक्षा बैठक में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ”खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते हैं।” प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान का इशारा सिंधु जल समझौते की ही ओर था। 2019 में पुलवामा में सुरक्षाबलों पर हमले के बाद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बयान देते हुए कहा था, “सरकार ने पाकिस्तान को पानी के वितरण को रोकने का फैसला किया है।” अगस्त 2019 में भारत के तत्कालीन जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा था, “सिंधु जल संधि का उल्लंघन किए बिना पाकिस्तान को जाने वाले पानी को रोकने के लिए काम शुरू हो गया है।”
भारतीय सेना से करारी शिकस्त के बाद पाकिस्तान अब पानी को लेकर भारत के सामने गिड़गिड़ाने लगा है। पाकिस्तान की सरकार ने 14 मई को भारत के जल शक्ति मंत्रालय को चिट्ठी लिखकर सिंधु जल समझौते को स्थगित करने को लेकर दोबारा विचार करने की अपील की है। वहीं, एक महत्वपूर्ण बात और भी है कि पाकिस्तान की ये अपील तब की गई जब भारत चिनाब नदी पर बगलिहार और सलाल जलविद्युत परियोजनाओं में फ्लशिंग और डिसिल्टिंग का काम शुरू कर दिया है।
पाकिस्तान के जल संसाधन सचिव सय्यद अली मुर्तज़ा ने भारत को लिखी चिट्ठी में कहा, “सिंधु जल समझौता स्थगित होने की वजह से पाकिस्तान में खरीफ की फसल के लिए पानी का बड़ा संकट खड़ा हो गया है।” पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने 13 मई को कहा कि अगर भारत सिंधु जल संधि को फिर से शुरू नहीं करता है और हमारी तरफ आने वाले पानी को मोड़ने की कोशिश करता है तो दोनों देशों के बीच लागू हुआ संघर्ष विराम खतरे में पड़ सकता है।
सिंधु जल संधि पर चर्चा के लिए पाकिस्तान की ये पेशकश उसकी छटपटाहट को साफ दिखा रही है। यह पहली बार नहीं था जब भारत सरकार ने 1960 में दोनों देशों के बीच हुई इस संधि में बदलाव की मांग की थी। दो साल पहले भारत ने पाकिस्तान को इस संबंध में नोटिस भेजा था लेकिन इस नोटिस में सिर्फ ‘बदलावों’ के बारे में बात की गई थी। हालांकि अगस्त 2024 में भेजे नोटिस में भारत ने बदलावों के साथ-साथ समझौते की ‘समीक्षा’ करने की भी बात की थी। इसमें ‘सीमा पार से आतंकवादी गतिविधियों’ का भी उल्लेख किया गया था। इसमें भी भारत की ओर से कहा गया था कि ‘सीमा पार से आतंकवाद’ इस समझौते के सुचारू रूप से संचालन में बाधा है। लेकिन पाकिस्तान ने इस पर कोई उत्तर नहीं दिया, अब जबकि भारत ने समझौते को स्थगित कर दिया है तो पाकिस्तान घुटनों पर आ गया है।
15 मई को एक कार्यक्रम में संवाददाताओं ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर से जब सिंधु जल समझौते को लेकर प्रश्न किया, तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि यह समझौता अभी निरस्त ही रहेगा। भारत सरकार इस पर पुनर्विचार करने के लिए तैयार नहीं है और इस मामले में पाकिस्तान के साथ बातचीत नहीं होगी। विदेश मंत्री के ताजा बयान से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्र के नाम संबोधन में स्पष्ट कर चुके हैं कि खून और पानी साथ नहीं बह सकते हैं।
सिंधु जल संधि के निलंबन से पाकिस्तान की जल सुरक्षा को खतरा है, क्योंकि इसकी 80 प्रतिशत कृषि भूमि इन नदियों पर निर्भर है। इस व्यवधान से खाद्य सुरक्षा, नगरीय जल आपूर्ति और विद्युत उत्पादन पर प्रभाव पड़ेगा साथ ही पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद में सिंधु नदी तंत्र के 25 प्रतिशत योगदान के कारण आर्थिक अस्थिरता भी उत्पन्न होगी। नदी प्रवाह डेटा को रोकने की भारत की क्षमता से पाकिस्तान की सुभेद्यता और बढ़ जाएगी तथा बाढ़ तत्परता और जल संसाधन प्रबंधन में बाधा उत्पन्न होगी। भावार्थ यह है कि आने वाले समय में पाकिस्तान में जल संकट से सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समस्याएं बढ़ना तय है। पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांत में जल बंटवारे को लेकर पुराना विवाद है। वर्तमान जल संकट ये विवाद और गहराएगा।
भारत अब अपने हिस्से की तीनों नदियों रावी, ब्यास और सतलुज के जल को अपने लिए प्रयोग करने की योजना बना रहा है। इस पर तुरंत काम शुरू कर दिया गया है। इसके अलावा, मध्यकालिक और दीर्घकालिक योजनाओं को भी अंतिम रूप दिया जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत के इन कदमों से पाकिस्तान को लंबे समय में नुकसान पहुंचना अवश्यम्भावी है। राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट तौर पर कहा कि पाकिस्तान से बात होगी… तो टेरेरिज्म पर होगी… पाकिस्तान से बात होगी..तो पीओके पर होगी। अब पाकिस्तान को यह तय करना है कि वो आतंकवादियों का साथ देगा या फिर अपने प्यासे खेतों और नागरिकों की प्यास बुझाने के लिये शांति और शालीनता के मार्ग का चुनाव करेगा।