यूरोप में जगमगाएंगे भारत के अंधियारे झोपड़पट्टी के दीप, स्वावलम्बी बनी मीनाक्षी
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Bamboo Artist
चंद्रपुर, मुकेश वालके। आप माने या न माने झुग्गी में दस बाई तेरह के किराए के झोपड़े में रहनेवाली बांस कारीगर (Bamboo Artist) के बांबू दीए और अन्य कुछ कलाकृतियां दुनिया के 6 देशों में पहुंच रहे है। इस नवंबर में आ रही दिवाली पर बांबू के लैंपशेड्स, सीरीज, पूजा थाली, तोरण पताका, गहने, गणेश मूर्ति, गिफ्ट बॉक्स आदि की चमक यूरोपिय लोग व वहां बसे भारतीयों के मन को जगमगा देगी।
रक्षाबंधन में ही यूरोपिय देशों में अपनी कला का लोहा मनवा कर लोकप्रिय हो चुकी 29 वर्षीया मीनाक्षी मुकेश वालके देश की पहली स्वतंत्र कारीगर है। बीते वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सराहना पा चुकी बांबू राखी इस वर्ष सीधे इंग्लैंड, स्विट्ज़रलैंड, फ्रांस, नेदर्लांड और स्वीडन पहुंची थी।
हैरत की बात है कि दो वर्ष पूर्व इसी गरीब बांस कारीगर महिला को इजरायल के जेरुसलेम की एक बड़ी आर्ट स्कूल में वर्कशॉप लेने का निमंत्रण भी मिला था, पर आर्थिक कारणवश वह नहीं पहुंच पाई थी। इस वर्ष उनकी कलाकृतियां सीधे 6 देशों तक पहुँच चुकी है।
भारत में मूल कारीगर अंधेरे में रह जाते है तो उनके नाम पर काम करने वाले व्यापारी तथा उनकी तथाकथित संस्थाएं अपना नाम रोशन कर लेते है। सनद रहे कि लॉक डाउन में बांस कारीगर भुखमरी की कगार पर पहुंच गए थे। तब कथित संस्थाएं, सरकार या प्रशासन कोई इन कारीगरों (Bamboo Artist) को उबारने आगे नहीं आया। परंतु भारतीय संस्कृति के उत्सव त्योहारों ने जरूर इन कारीगरों का साथ दिया। लोकल टू वोकल की अपील रंग लाई और आत्मनिर्भर भारत के नारे ने ऊर्जा दी। ऐसा कई कारीगरों का मानना है।
मीनाक्षी मुकेश वालके महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल और नक्सल प्रभावित चंद्रपुर के बंगाली कैम्प स्थित झोपडपट्टी में रहती है। वे बांबू डिजाइनर और महीला सक्षमीकरण कार्यकर्ता है। बांस क्षेत्र में उनके अद्वितीय सेवा कार्य की सराहना करते हुए इसी वर्ष कनाडा की इंडो कैनेडीयन आर्ट्स अँड कल्चर इनिशिएटिव संस्था ने महिला दिवस पर वुमन हीरो पुरस्कार से सम्मानित भी किया था।
लॉक डाउन की भीषण मार सहने के बाद इस वर्ष रक्षा बंधन पर मीनाक्षी और उनकी साथी महिलाओं ने बड़े साहस से काम किया। द बांबू लेडी ऑफ महाराष्ट्र के नाम से मशहूर मीनाक्षी वालके ने 2018 में केवल 50 रुपयों में सामाजिक गृहोद्योग अभिसार इनोवेटिव की स्थापना की थी। उसी समय उन्होंने पहली बार बांबू की राखियां भी बनाई थी।
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स्वीजरलैंड की सुनीता कौर ने मीनाक्षी की बांबू राखियों के साथ ही अन्य कलाकृतियां भी वहां बिक्री हेतु मंगाई है। स्वीडन के सचिन जोंनालवार, मनीषा परब समेत लंदन की मीनाक्षी खोडके ने भी अपने ग्लोबल बाप्पा शो रूम के लिए बांबू के लैंपशेड, पूजा थाली, गहने आदि की खरीद की है।
मीनाक्षी इस संदर्भ में बताती है कि अपनी पावन संस्कृती का शुद्ध एहसास इस भावनिक संस्कार में महसूस होना चाहिए। प्रकृति को वंदन करते हुए आध्यात्मिक अनुभूती मिलनी चाहिए, ऐसा हमारा प्रयास रहता है। मीनाक्षी ने बताया कि स्वदेशी, संस्कृती और पर्यावरण संदेश का प्रेरक संयोग करने की कोशिश इससे हम कर रहे है।
बतौर मीनाक्षी, उनका काम ही मुख्य रूप से प्लास्टिक का प्रयोग न्यूनतम हो इस दिशा में चलता है। वसुंधरा का सौंदर्य अबाधित रहे, इस हेतु वे समर्पित हैं। इस लिए उनका हर काम, कलाकृति शुद्ध स्वरूप में होती है। किसी भी प्रकार की परम्परा या विरासत नहीं, समर्थन या मार्गदर्शन नहीं, बेहद गरिबी में मीनाक्षी ने अभिसार इनोव्हेटिव्ज यह सामाजिक उद्यम शुरू किया। झोपडपट्टी की महिला व लड़कियों को मुफ्त प्रशिक्षण देकर रोजगार देते हुए मीनाक्षी का काम बढता ही जा रहा है।