Indian-Chinese Soldiers : सेना के पराक्रम को राजनीति से दूर रखें |

Indian-Chinese Soldiers : सेना के पराक्रम को राजनीति से दूर रखें

Indian-Chinese Soldiers: Keep the might of the army away from politics

Indian-Chinese Soldiers

डॉ. ओ.पी. त्रिपाठी। Indian-Chinese Soldiers : देश की पूर्वोत्तर सीमा पर भारतीय और चीनी सैनिकों की बीच झड़प पर राजनीति हर बीतते दिन बढ़ती ही जा रही है। इस मुद्दे पर संसद में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बयान दे चुके हैं। लेकिन विपक्ष इस पर चर्चा चाहता है जबकि सरकार का कहना है इसकी जरूरत नहीं है। इससे बीते सप्ताह जो टकराव पैदा हुआ वह जारी है। कांग्रेस को लगता है वह इस मुद्दे पर सरकार को घेरने में कामयाब हो जायेगी जबकि सत्ता पक्ष का मानना है कि ऐसे मामलों में राजनीतिक बहस से सेना का मनोबल गिरता है। जब कांग्रेस की ओर से सरकार पर आरोप लगा कि वह चीन से डरती है तब गृह मंत्री ने राजीव गांधी के नाम पर बने ट्रस्ट को चीन से मिले चंदे का सवाल उठाकर पलटवार किया।

चीन द्वारा की जाने वाली आक्रामक गतिविधियों पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी लम्बे समय से प्रधानमंत्री पर तीखे हमले करते आ रहे हैं। डोकलाम, गलवान और अब अरुणाचल में हुई झड़प को लेकर उनकी प्रतिक्रिया का सार यही है कि चीन हमारी जमीन दबाता जा रहा है और मोदी सरकार उसको रोकने में विफल है। लेकिन वे इस बात का कोई जवाब नहीं देते कि 1962 में चीन द्वारा दबाई गई हजारों वर्ग किमी जमीन वापस लेने के लिए बाद की कांग्रेस सरकारों ने क्या किया? यहीं नहीं तो पाक अधिकृत कश्मीर का जो क्षेत्र पाकिस्तान ने चीन के हवाले कर दिया उसे रोकने के लिए क्या प्रयास किये? ये बात किसी से छिपी नहीं है कि अरुणाचल को चीन छोटा त्तिब्बत कहते हुए अपने नक्शे में ही दर्शाता है।

यहां तक कि हमारे राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री के वहां जाने पर भी उसे ऐतराज होता है। लेकिन भारत उससे विचलित हुए बिना अपनी सैन्य तैयारियां काफी मजबूत कर ली हैं। चीन समय-समय पर जो हरकतें करता है उनका उद्देश्य हमारी ताकत को तौलना है। लेकिन डोकलाम और गलवान की तरह अरुणाचल में भी उसके सैनिकों को हमारे जवानों ने भागने बाध्य कर दिया। वैसे रक्षा मामलों में सरकार पर नीतिगत हमले करने के लिए विपक्ष पूरी तरह स्वतंत्र है परन्तु उसे सेना के मनोबल का ध्यान रखना चाहिए। राहुल गांधी का हर मौके पर ये कहना कि हमारे जवान पीटे जा रहे हैं, सैनिकों की वीरता और क्षमता पर शंका करने जैसा है।

विपक्षी नेताओं को ये नहीं भूलना चाहिए कि 1962 के चीनी आक्रमण में हमारी सेना बुरी तरह पराजित हुई थी। बड़ी संख्या में हमारे जवान और अधिकारी शहीद भी हुए। चीन के भारी सैन्यबल के सामने हमारी सेना पूरी तरह असहाय साबित हुई। उसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की जबरदस्त आलोचना हुई। तिब्बत पर चीन के कब्जे को मान्यता देने के बाद हिंदी चीनी भाई-भाई का नारा बुलंद करते हुए उसकी दोस्ती पर विश्वास करने की नीति का दुष्परिणाम ये हुआ कि उसने हमारी 43 हजार वर्ग किमी भूमि पर कब्जा कर लिया।

उस हमले के बाद नेहरू जी मानसिक तौर पर भी काफी आहत (Indian-Chinese Soldiers) हुए और कहा जाता है उसी की वजह से उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा और महज दो साल के भीतर वे चल बसे। दशकों बाद भी कश्मीर और चीन संबंधी उनकी नीति पर सवाल उठाये जाते हैं। लेकिन किसी ने भी सेना के शौर्य और दक्षता पर संदेह नहीं किया। ऐसे में जब श्री गांधी ये कहते हैं कि चीनी सेना के हाथों हमारे जवान पिट रहे हैं तो निश्चित तौर पर ये सरकार से ज्यादा उस सेना की आलोचना होती है जो अपनी वीरता और पेशवर दक्षता के लिए विश्व भर में सम्मानित है। 1962 की जंग में उसके पास न तो पर्याप्त हथियार थे और न ही अन्य जरूरी साधन।

बावजूद उसके एक-एक चैकी के लिये दो-चार जवानों ने आधुनिक हथियारों से लैस दर्जनों चीनी सैनकों की टुकडियों का बलिदानी भावना से मुकाबला किया। उसके बाद भारत को पकिस्तान से अनेक युद्ध लडना पड़े जिनमें हम जीते। वहीं चीन के साथ भी कभी छोटी और कभी बड़ी मुठभेड़ होती रही जिनमें हमारे सैनिक कभी उन्नीस साबित नहीं हुए। इसका कारण सैन्य तैयारियों में हुआ सुधार और सेना का आधुनिकीकरण है। जिसकी प्रक्रिया 1962 के बाद से ही प्रारंभ हो गई थी। हर लड़ाई के बाद जो कमी रह गई उसे दूर करने का प्रयास निरंतर जारी है। भारतीय सेना के तीनों अंग आज पूरी तरह सुसज्जित और किसी भी स्थिति से निपटने में सक्षम हैं। ये देखते हुए विपक्ष से ये अपेक्षा करना गलत नहीं होगा कि सुरक्षा संबंधी किसी भी घटना या नीतिगत मुद्दे पर सरकार को चाहे जितना घेरे किन्त्तु जवानों के बारे में ऐसा कुछ न कहे जिससे उनका उत्साह ठंडा हो।

देश वर्ष 2020 में हुए गलवान घाटी के खूनी संघर्ष को नहीं भूला है। भारत के वीर जवानों ने निहत्थे संघर्ष में चीनियों के घातक हमले में शहादतें दी थीं। भारत ने अपने शहीदों का सम्मान करते हुए उनकी वास्तविक संख्या उजागर की। जबकि चीन सच पर लगातार पर्दा डालता रहा। कई महीनों बाद चीन ने महज चार सैनिकों के मारे जाने की बात स्वीकार की थी। दरअसल, चीन के साथ हुए समझौते के चलते दोनों देशों के सैनिकों में गोला-बारूद के इस्तेमाल पर रोक है। यूं तो भारतीय जांबाज कद-काठी के हिसाब से चीनियों पर इक्कीस पड़ते हैं।

लेकिन गलवान के संघर्ष में चीनी सैनिकों ने पहले से तैयार की गई घातक चीजों के प्रयोग से भारतीय सैनिकों को बड़ी क्षति पहुंचायी थी। दो साल पहले हुई झड़प के बाद भारत ने अपने इलाकों में स्थायी संरचनाओं का निर्माण किया है। दुर्गम व ऊंचाई वाले इलाकों में भारत ने हवाई पट्टी व सड़कों का निर्माण किया है। जिसको लेकर चीन विरोध जताता रहा है। चीन के साथ लद्दाख से अरुणाचल तक आंख मिचैली का खेल चलता आ रहा है। ये बात पूरी तरह सच है कि वह हमारे इलाके में घुसपैठ का कोई अवसर नहीं चूकता किन्तु हमारे सैनिक उसे सफल नहीं होने देते।

अरुणाचल की ताजा झड़प के बाद भी दोनों पक्षों के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने साथ बैठकर मामला सुलझा लिया। ऐसे में ये समझ से परे है कि संसद में विपक्ष क्या चर्चा करना चाहता है? बिना किसी पुख्ता सबूत के ये कह देना कि चीन ने हमारी इतनी जमीन दबा ली, पूरी तरह गैर जिम्मेदाराना है। उसके इस रवैये से जनता के धन की बर्बादी हो रही है। बहरहाल इस राजनीतिक पक्ष के अलावा, सेना के विभिन्न पूर्व जनरलों ने ऐसे नेताओं को लानत दी है, जो सेना को गालियां दे रहे हैं। हमारे सैनिक 13-17,000 फुट की ऊंचाई पर, (Indian-Chinese Soldiers) बर्फीले मौसम और माइनस तापमान में भारत की चैकियों और सीमा की रक्षा कर रहे हैं।

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