संपादकीय : अंतत: भारत को मिला आमंत्रण

India finally got the invitation
India finally got the invitation: कनाड़ा में होने जा रहे जी-7 सम्मेलन में शामिल होने के लिए अंतत: भारत को भी आमंत्रण मिल गया। कनाडा के प्रधानमंत्री खुद फोन करके भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए निमंत्रित किया है पीएम मोदी ने उनका निमंत्रण स्वीकार भी कर लिया है गौरतलब है कि कनाडा में होने जा रहे जी-7 सम्मेलन में भारत को निमंत्रण देने में देर हुई है जिसे लेकर कांग्रेस पार्टी ने सियासत शुरू कर दी थी और इसे भारत का अपमान बताते हुए पीएम मोदी से सवाल भी किये थे।
कांग्रेस का पूरा इको सिस्टम इस मुद्दे को लेकर हमलावार हो गया था। उन्हें यह पता नहीं है कि किसी को मेहमान के रूप में आमंत्रित करना मेजबान की इच्छा पर निर्भर है। भारत जी-7 का सदस्य नहीं है ऐसे में यदि भारत को कनाडा में मेहमान सदस्य के रूप में आमंत्रित नहीं भी किया जाता तो कोई पहाड़ नहीं टूट जाता। यह बात अलग है कि 2019 से हर जी-7 सम्मेलन में भारत को आमंत्रित किया जाता रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उसमें सिरकत करते रहे हैं।
इन सम्मेलनों में न सिर्फ भारत को पर्याप्त महत्व दिया गया बल्कि जी-7 में शामिल कई देश भारत को भी जी-7 में शामिल करने की पुरजोर शब्दों में वकालत करते रहे किन्तु भारत ने ही अपनी गुट निरपेक्षता की नीति के चलते इसमें शामिल होने की इच्छा नहीं जताई। जबकि इसमें शामिल कई देश भारत को इससे जोडऩा चाहते हैं। उल्लेखनीय है कि पहले जी-7 में रूस भी शामिल था और इसका नाम जी-8 हुआ करता था किन्तु 1997 में रूस को इस संगठन से बाहर कर दिया गया उसके बाद से दुनिया के विकसित देशों के इस संगठन में एक और देश को जोड़कर इसे फिर जी-8 बनाने की कवायद चल रही है। और आठवें सदस्य के रूप में भारत का ही नाम लिया जा रहा है।
बहरहाल भारत ने अभी तक इस मामले में कोई रूचि नहीं दिखाई है लेकिन मेहमान सदस्य के रूप में इन सम्मेलनों में अपनी भागीदारी निभाता रहा है। जहां तक कनाडा में होने वाले सम्मेलन की बात है तो वहां इस समय लीबरल पार्टी की सरकार है जो वहां के खालिस्तानियों के समर्थन से चल रही है। इसलिए कनाडा की सरकार इस सम्मेलन में भारत को आमंत्रित करने के लिए संशय में पड़ गई थी उसपर खालिस्तानियों का दबाव था कि वह भारत को मेहमान के रूप में आमंत्रित न करे। लेकिन कनाडा के ही सरकार में शामिल लोगों का तर्क था कि भारत की उपेक्षा करना कनाडा के लिए नुकसान दायक सिद्ध होगा।
आज की तारीख में भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। और यह दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है। जहां के आर्थिक विकास की दर भी दुनिया में सबसे ज्यादा है। ऐसे में यदि कनाडा भारत की उपेक्षा करता है तो इससे भारत का तो कोई नकुसान नहीं लेकिन कनाडा को क्षति उठानी पड़ सकती थी। यही वजह है कि खालिस्तानियों के विरोध के बावजूद कनाडा ने इस सम्मेलन के लिए भारत को आमंत्रित किया है।
यह भारत के लिए एक बेहतर प्लेटफार्म साबित होगा जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर बार की तरह इस बार भी आतंकवाद का मुद्दा उठाएंगे और पाकिस्तान के खिलाफ भारत द्वारा की गई सैन्य कार्यवाही के बारे में जी-7 के देशों को इस वैश्विक मंच से जानकारी देंगे और पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बेनकाब करेंगे। वैसे भी पीएम मोदी ऐसे वैश्विक मंचों पर आतंकवाद के मुद्दों को प्राथमिकता से उठाते रहे हैं। ऐसे में वे यह अवसर नहीं चूकेंगे।
अब चूंकि भारत को देर ही सही लेकिन निमंत्रण मिल गया है तो विपक्ष इसे लेकर भी सियासत करने से बाज नहीं आ रहा है। और देर से मिले निमंत्रण को भी भारत का अपमान बताकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यह सलाह दे रहा है कि वे इस सम्मेलन में भाग न लें। भारत की विदेश नीति पर भी विपक्ष सवालिया निशान लगा रहा है। विपक्ष को यह समझना चाहिए कि इस सम्मेलन में भारत का भाग लेना कितना ज्यादा जरूरी है।
भारत को इस अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक बार फिर वैश्विक आतंकवाद के बढ़ते खतरे पर अपने विचार व्यक्त करने का मौका मिलेगा। और पाकिस्तान के खिलाफ चलाये गये आपरेशन सिंदूर पर विश्व समुदाय का समर्थन हासिल करने का सुनहरा अवसर मिलेगा। यही नहीं बल्कि कनाडा में पीएम मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से भी मुलाकात होगी जो लगातार भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम कराने का श्रेय लुटने की कोशिश करते रहे हैं इस वैश्विक मंच से पीएम मोदी के सामने डोनाल्ड ट्रंप शायद यह झूठ न बोल पायें और इसे लेकर पीएम मोदी पर विपक्ष जो सवाल उठा रहा है उसका उत्तर मिल जाये।
भारत और कनाडा के बीच संबंधों में जो दरार पड़ गई है उसे भी भरने का यह एक अच्छा अवसर सिद्ध हो सकता है। कनाडा के प्रधानमंत्री एक सुलझे हुए नेता हैं और वे प्रख्यात अर्थशास्त्री भी हैं। वे इस बात को बेहतर ढंग से समझते हैं कि आज भारत कितनी बड़ी आर्थिक ताकत बन चुका है ऐसे में भारत के साथ संबंंधों को समान्य करना कनाडा के ही हित में है। बेहतर होगा कि अब इस मुद्दे को लेकर भारत की विपक्षी पार्टियां व्यर्थ का बवाल खड़ा करने से परहेज करें।