Increasing Pollution : सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना
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Increasing Pollution
Increasing Pollution : भारत में वायु और जल प्रदूषण बढऩे के साथ ही ध्वनि प्रदूषण भी लगातार बढ़ता ही जा रहा है। बढ़ते ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों को कई तरह के मानसिक रोगों का शिकार होना पड़ रहा है वहीं हृदय रोगियों के लिए ध्वनि प्रदूषण जानलेवा भी साबित हो रहा है। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिया है उसकी खुली अव्हेलना की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक रात्रि दस बजे से सुबह छह बजे तक किसी भी तरह के ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर प्रतिबंध लगाया गया है लेकिन जिन लोगों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कराने की जिम्मेदारी है वे उदासीन बने हुए है। यही वजह है कि रात्रि दस बजे के बाद आधी रात तक और कभी कभी तो पूरी रात खुल आम ध्वनि विस्तारक यंत्रों का उपयोग किया जाता है।
इसपर यदि कोई आपत्ति उठाता है तो कार्यक्रम के आयोजक मारपीट पर उतारू हो जाते है। शासन प्रशासन की उदासीनता के चलते लोग ध्वनि प्रदूषण फैलाने से बाज नहीं आ रहे है। खासतौर पर डीजे के कानफोडू आवाज से तो लोगों का जीना मुहाल हो गया है। देर रात तक डीजे बजाए जाते है और लोग परेशान होते रहते है। इसे लेकर आए दिन अप्रीय स्थिति निर्मित होती रहती है। कल ही महाराष्ट्र में पूर्व मंत्री आदित्य ठाकरे के एक जनसभा के दौरान डीजे को लेकर विवाद की स्थिति निमित हो गई और पत्थरबाजी तक की घटना हो गई। इसके पूर्व भी डीजे को लेकर कई जगहों पर हिंसक झड़पे हो चुकी है। इसके बावजूद शासन प्रशासन डीजे के मनमाने उपयोग पर रोक लगाने की दिशा में कोई कड़े कदम नहीं उठा रहा है जो सीधे सीधे सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अव्हेलना है।
इन दिनों छात्र-छात्राओं की परीक्षा का समय पास आ गया है जिसे देखते हुए कलेक्टरों ने ध्वनि विस्तारक यंत्रों के उपयोग के लिए दिशा निर्देश जारी कर दिए है लेकिन इन दिशा निर्देशों का पालन नहीं हो रहा है। जिला प्रशासन ने आदेश जारी कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली है लेकिन इसकी जिम्मेदारी तय नहीं की गई है। ध्वनि प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट का सबसे अहम फैसला 18 जुलाई, 2005 का है जिसमें कोर्ट ने कहा था कि हर व्यक्ति को शांति से रहने का अधिकार है और यह अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है। लाउडस्पीकर या तेज आवाज में अपनी बात कहना अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार में आता है, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी जीवन के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकती।
किसी को इतना शोर करने का अधिकार नहीं है जो उसके घर से बाहर जाकर पड़ोसियों और अन्य लोगों के लिए परेशानी पैदा करे। कोर्ट ने कहा था कि शोर करने वाले अक्सर अनुच्छेद 19(1)ए में मिली अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की शरण लेते हैं। लेकिन कोई भी व्यक्ति लाउडस्पीकर चालू कर इस अधिकार का दावा नहीं कर सकता। अगर किसी के पास बोलने का अधिकार है तो दूसरे के पास सुनने या सुनने से इन्कार करने का अधिकार है। जब तक ध्वनि प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए जिम्मेेदारी तय नहीं की जाएगी तब तक इसपर प्रभावी रोक नही लग पाएगी और लोग सुप्रीम कोर्ट के आदेश को इसी तरह ठेंगा दिखाते रहेंगे।