संपादकीय: न्यायालयों पर मुकदमों का बढ़ता बोझ
Increasing burden of cases on courts: सुप्रीम कोर्ट की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर दो दिवसीय न्यायपालिका राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने न्यायालयों में लंबित मामलों को लेकर गहन चिंता व्यक्त की है और कहा है कि अदालतों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या एक बड़ी चुनौती है।
इस सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी न्यायायिक प्रक्रिया की धीमी गति पर गहन चिंता व्यक्त की थी। वाकई न्यायालयों पर लंबित मामलों का बोझ लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
नतीजतन लोगों को न्याय के लिए लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ती है। अदालतों से सिर्फ तारीख पर तारीख ही मिलती हैै। कई लोग तो न्याय की प्रतीक्षा करते करते काल का ग्रास भी बन जाते हैं।
किसी दार्शनिक ने ठीक ही कही है कि देर से मिलने वाला न्याय कई बार अन्याय बन जाता है। न्यायालयों में लंबित मामलों की स्थिति यह है कि सुप्रीम कोर्ट में इस समय 83 हजार मामले लंबित हैं। वहीं देश के 23 राज्यों में स्थित हाईकोर्टों में लंबित मामलों की संख्या 62 लाख से अधिक हो चुकी है।
निचली अदालतों में तो मुकदमों का ढेर लग गया है। जहां लंबित मामलों की संख्या 4 करोड़ से भी ज्यादा हो चुकी है। इसी बात से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इन मामलों के निपटारे में न जाने और कितने साल लगेंगे। न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या बढऩे की एक बड़ी वजह न्यायाधीशों की कमी है।
सुप्रीम कोर्ट में एक लंबे समय के बाद 2019 में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाई गईथी। वहां अभी भी न्यायाधीशों के कई पद रिक्त हंै। विभिन्न राज्यों की हाईकोर्टों में न्यायाधीशों के 37 प्रतिशत पद रिक्त पड़े हैं।
इसी तरह अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या कम हैं। हाई कोर्ट में प्रति न्यायाधीश 4500 मामले लंबित हैं। ऐसे में न्याय प्रक्रिया का धीमा पडऩा स्वाभाविक है।
आज जरूरत इस बात की है कि लोगों को सस्ता न्याय समय पर सुलभ हो। यह तभी संभव है जब न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाई जाए। लोक अदालतों को और ज्यादा प्रोत्साहित किया जाए।
ताकि छोटे मोटे मामलों का निपटारा लोक अदालतों में हो जाए। ऐसा करने से न्यायालयों पर मुकदमों का बढ़ता बोझ कुछ हद तक कम किया जा सकता है।
मुकदमों के बोझ तले दबती अदालतों में लंबित मामलों की संख्या को कम करने के लिए एक ठोस योजना बनाए जाने की आवश्यकता है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने इस सम्मेलन के दौरान कहा है कि इस दिशा में कारगर पहल की जा रही है।
लंबित मामलों के त्वरित निपटारे के लिए योजना बनाई गई है। इसके तहत पहले चरण में जिला स्तर पर मामलों के प्रबंधन के लिए समितियों का गठन किया जाएगा।
ये समितियां लंबित मामलों का रिकाडऱ् और उनकी स्थिति की जांच करेंगी। इसी तरह दूसरे चरण में ऐसे मामलों का निपटारा प्राथमिकता के आधार पर किया जाएगा।
जो दस साल से लेकर 30 सालों से अधिक समय से लंबित हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय लोक अदालत भी आयोजित की जाएंगी। जहां मामलों का त्वरित निपटारा किया जाएगा।
बहरहाल केन्द्र सरकार को चाहिए की वह न्यायालयों में रिक्त पड़े स्वीकृत पदों पर जल्द से जल्द न्यायाधीशों की नियुक्ति करें। जब तक न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या नहीं बढ़ाई जाएगी तब तक लंबित मामलों की संख्या में कमी नहीं आएगी। उल्टे इनकी संख्या आने वाले समय में और बढ़ जाएगी।
न्यायायिक प्रक्रिया में सुधार के लिए सरकार को जल्द से जल्द ठोकस कदम उठाने होंगे अन्यथा लोगों को न्याय के लिए दर -दर भटकने के अभिशाप से मुक्ति नहीं मिल पाएगी।