Imran's farewell : आर्मी का दखल कम करना चाहते थे इमरान

Imran’s farewell : आर्मी का दखल कम करना चाहते थे इमरान

Imran's farewell: Imran wanted to reduce the interference of the army

Imran's farewell

नीरज मनजीत। Imran’s farewell : पाकिस्तान की सत्ता से इमरान की विदाई तय थी, क्योंकि जिस आर्मी और आईएसआई ने उन्हें तख्त पर बिठाया था, वे ही उसकी आहुति लेना चाहते थे। इसका मतलब यह नहीं है कि इमरान नाक़ाबिल सियासतदां थे। सच कहा जाए तो पाकिस्तान के चुने हुए प्रधानमंत्रियों में वे सबसे अच्छे प्रधानमंत्री थे। उनके अंदर सच बोलने और पाकिस्तान के अवाम को कड़वी हक़ीक़तों से रूबरू कराने की हिम्मत थी। वे चाहते थे कि पाकिस्तान की लोकतांत्रिक संस्थाएं, इलेक्शन कमीशन और कोर्ट मज़बूत हों।

वे जनता के वोट से चुनी गई सत्ता में आर्मी की दख़लंदाज़ी कम करना चाहते थे। वे भारत से अच्छे रिश्ते चाहते थे। किंतु यह उनकी बदकि़स्मती ही कही जाएगी कि वे ऐसे वक़्त में सत्ता में आए, जब पाकिस्तान से भारत का भरोसा उठ चुका था और नयी दिल्ली में ऐसी सरकार थी, जो पाकिस्तान को कोई भी रियायत देने के मूड में नहीं थी। यह भी उनका दुर्भाग्य था कि उन्हें विरासत में भारी कजऱ् से लदा और पूरी तरह खोखला हो चुका पाकिस्तान मिला। इसके बावजूद उन्होंने मुल्क को पटरी पर लाने की संजीदा कोशिशें की, पर आखिर आईएसआई और आर्मी के आगे उन्हें घुटने टेकने पड़े।

राजनीति के इलाक़े में वे बड़े बदलावों का इरादा लेकर आए थे। इसी इरादे से 1996 में उन्होंने तहरीक़-ए-इंसाफ़ का गठन किया था। पाकिस्तान को भ्रष्टाचार से मुक्त आधुनिक इस्लामिक स्टेट बनाना उनका सपना था। पार्टी घोषणापत्र में उन्होंने वादा किया था कि देश को वे एक लोक कल्याणकारी हुक़ूमत देंगे, जहाँ सभी मज़हबों, नस्लों और जातियों के लोग आज़ादी और सुकून से रह सकें। विचारों की स्वतंत्रता, आर्थिक समृद्धि, सभी तबकों के लिए न्याय और सामाजिक सद्भाव को उन्होंने अपने एजेंडे में सबसे ऊपर रखा था। पर पाकिस्तान की माली हालत देखकर जल्दी ही उन्हें एहसास हो गया कि सपने और हक़ीक़त में ज़मीन आसमान का फ़कऱ् है। लगता है कि इसका एहसास होते ही वे पाक राजनीति के पुराने ढर्रे पर लौट आए, जिसमें अवाम को भरमाए रखने के लिए भारत विरोध और कश्मीर का मसला जि़ंदा रखना जरूरी था।

पाकिस्तान (Imran’s farewell) में इन दिनों बेरोजगारी, गरीबी, महँगाई और अपराध अपने चरम पर हैं। अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। इंफ्रास्ट्रक्चर के सारे काम ठप्प हैं। चीन-पाकिस्तान-आर्थिक-गलियारे का काम भी रुक गया है। उस पर तुर्रा यह कि अब पाकिस्तान पर एफ एटीएफ की ब्लैक लिस्ट में डाले जाने का ख़तरा मंडरा रहा है। एफएटीएफ की पिछली समीक्षा बैठकों में मनी लॉन्ड्रिंग और जैश ए मोहम्मद तथा लश्कर ए तैयबा की फं डिंग को लेकर पाकिस्तान को दोषी पाया गया था। इसीलिए उसे ग्रे लिस्ट में डाल दिया गया था। नतीजतन आईएमएफ और वल्र्ड बैंक उसे कजऱ् देने में आनाकानी कर रहे हैं। खाड़ी देशों ने मदद का हाथ बढ़ाया तो है, पर बहुत ही ज़्यादा कड़ी शर्तों के बाद।

पाकिस्तान को दिवालिया होते देख चीन भी अपना हाथ खींच रहा है। ज़ाहिर है कि अवाम का असंतोष बढऩा लाज़मी था। इन हालात में आर्मी और आईएसआई ने पाकिस्तान की बदहाली का ठीकरा इमरान के सर फ ोड़कर विपक्षी गठबंधन को आगे कर दिया। शाहबाज़ शरीफ़ की सदारत में सरकार बदलने से पाकिस्तानी अवाम में ख़ुशी देखी गई, पर यह वक़्ती तौर पर ही रहने वाली है। शाहबाज़ शरीफ़ के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है। उनके सामने भी वैसे ही भयानक मसले हैं, जैसे इमरान के सामने थे, इसीलिए आते ही शरीफ़ ने अवाम को उलझाए रखने के लिए कश्मीर का मुद्दा उठा दिया।

आखिऱ पाकिस्तान की मूल समस्या क्या है ? जवाब सीधा है–भारत के प्रति बेहिसाब ईष्र्या, नफऱत, द्वेष और नकारात्मक प्रतिशोध। कोई देश विलोम विचारों को लेकर वैश्विक कूटनीति की मुख्यधारा के विपरीत चलेगा, तो उसका तबाह होना तय है। पाकिस्तान ने भारत से चार युद्ध लड़े हैं। इन युद्धों की कोई वजह नहीं थी। वजह थी तो सिफऱ् भारत से ईष्र्या और नफऱत, भारत को पीछे धकेलने की साजि़श। जबकि भारत ने पाकिस्तान को स्थिर रखने की कोशिश करते हुए उसे ‘मोस्ट फेवर्ड कंट्री’ का दजऱ्ा दिया था।

हम यहाँ पाकिस्तान के आवाम को ग़लत नहीं ठहरा रहे, न ही समूचे मुल्क को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। पाकिस्तान की बर्बादी के लिए सिफऱ् आईएसआई, आतंकी संगठन और आर्मी जिम्मेदार है। पाकिस्तान का अवाम तो इनकी कारगुजारियों से परेशानहाल है और उसमें इनकी साजि़शों को समझने तथा खि़लाफ़त करने की हिम्मत ही नहीं बची। इमरान ने संजीदगी से पाकी अवाम को आतंकी संगठनों और आईएसआई की जकड़बंदी से आज़ाद कराने की कोशिश की थी।

अब सवाल यह है कि क्या शाहबाज़ शरीफ़ पाकिस्तान को पतन के गर्त से निकाल पाएंगे ? जवाब है कि इसका रास्ता भारत से अच्छे रिश्ते से ही निकल सकता है। शरीफ़ की हुक़ूमत गाहे बगाहे कश्मीर का राग अलापने से परहेज करे। भारत से अच्छे तिजारती रिश्ते कायम करे और आईएसआई तथा पाक आर्मी को जेहादी मानसिकता से बाहर निकाले। पाकिस्तान बेशक चीन से अच्छे रिश्ते रखे, लेकिन एक स्वाभिमानी आज़ाद मुल्क के तौर पर उसकी कठपुतली बनकर भारत अमेरिका और बाक़ी मुल्कों से रिश्ते खऱाब न करे।

ये कुछ मोटी बातें हैं जो पाकिस्तान (Imran’s farewell) को तरक़्क़ी के रास्ते पर डाल सकती हैं। शाहबाज़ शरीफ़ इस क़दर आर्मी पर आश्रित हैं कि वे उसके खि़लाफ़ जाकर कोई बड़ा फ़ैसला नहीं कर पाएंगे। और यदि पाकिस्तान की बदहाली बदस्तूर जारी रही तो उनका पतन भी इमरान जैसा ही होगा।

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