Holi & Holika Dahan Time : जानें- होलिका दहन का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
रायपुर/नवप्रदेश। Holi & Holika Dahan Time : होलिका दहन, यानी नवन्नेष्टि यज्ञ फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होता है। होली के लिए कुछ महत्वपूर्ण जानकारी, पूजाविधि और मुहूर्त के बारे में स्वामी राजेश्वरानंद, संस्थापक, सुरेश्वर महादेव पीठ ने दी है।
स्वामी राजेश्वरानंद ने बताया होली का मुख्य संबंध होली के दहन से है। जिस प्रकार दीपावली को लक्ष्मी पूजन के बाद भोजन किया जाता है, उसी प्रकार होली के व्रत वाले उसकी ज्वाला देखकर भोजन करते हैं।
होलिका के दहन में पूर्वविद्धा प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा ली जाती है। इस उत्सव की शुरुआत एक महीना पहले माघ शुक्ला पूर्णिमा को ही हो जाता है।
होली का उत्सव धार्मिक एवं सामाजिक दृष्टि से काफी महत्त्व रखता है। इसमें होलिका, ढुण्डा, प्रहलाद् और स्मर शांति तो है ही, इनके अलावा इस दिन ‘नवान्नेष्टि यज्ञ’ भी संपन्न होता है।
होलिका दहन पूजा विधि
फाल्गुन मास (Holika & Holika Dahan Time) की शुक्ल पूर्णिमा की सुबह स्नान कर होलिका व्रत का संकल्प करें। बच्चों को लकड़ी की तलवार बनाकर दें, उन्हें उत्साही सैनिक बनाएं। दोपहर बाद होलिका दहन के स्थान को पवित्र जल से धोकर या वहां जल का छिड़काव कर उसे शुद्ध कर लें।
वहां लकड़ी, सूखे उपले और सूखे कांटे भलि-भांति स्थापित करें। शाम में होली के समीप जाकर फूल-गन्धादि से पूजन करें। इसके बाद इसे जलाएं और चैतन्य होने पर ‘असरकृपा भयसंत्रस्तेः कृत्वा त्वं होलिबालिशैः अतस्त्वां पूजयिष्यामी भूते भुति प्रदा भवः’ इस मंत्र से प्रार्थना करके तीन परिक्रमा लगाएं और अर्घ दें।
होलिका दहन के लिए मुहूर्त
प्रदोष-व्यापिनी फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा के दिन प्रदोष काल में होलिका-दहन किया जाता है। इसमें भद्रा है।
।। भद्रा द्वे न कत्र्तव्ये- श्रावणी फाल्गुनी तथा।।
।। श्रावणी नृपति हन्ति-ग्रामं दहति फाल्गुनी।। धर्मसिंधु।।
।। प्रदोष व्यापिनी ग्राह्या-पूर्णिमा फाल्गुनी सदा।।
।। भद्रा मुख वर्जयित्वा-होलिकायाः प्रदीपनम।। नारद संहिता।।
भद्रा में श्रावणी और फाल्गुनी दोनों नहीं करनी चाहिए क्योंकि श्रावणी (रक्षाबंधन) से राजा का अनिष्ट होता है और फाल्गुनी (होलिका-दहन) से अग्नि इत्यादि अद्भुत उत्पातों द्वारा प्रजा एक ही वर्ष में हीन हो जाती है।
विक्रम संवत् 2078 में फाल्गुन (Holika & Holika Dahan Time) शुक्ला पूर्णिमा 17 मार्च 2022 को रात 01 बजकर 29 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 18 मार्च 2022 को दोपहर 12 बजकर 47 मिनट तक विद्यमान रहेगी। स्पष्ट ही है कि प्रदोष व्यापिनी-निशामुखी पूर्णिमा 17 मार्च गुरुवार को ही है।