संपादकीय: ऐतिहासिक शपथ ग्रहण समारोह

संपादकीय: ऐतिहासिक शपथ ग्रहण समारोह

Historic swearing-in ceremony

Historic swearing-in ceremony

Historic swearing-in ceremony: देश में उत्तरप्रदेश के बाद दूसरे सबसे बड़े राज्य महाराष्ट्र मेें मुख्यमंत्री के रूप में देवेन्द्र फडणवीस ने जब आजाद मैदान में आयोजित एक भव्य समारोह में तीसरी बार सीएम पद की शपथ ली तो वह समारोह ऐतिहासिक बन गया। उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने भी चौथी बार उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर एक नया इतिहास रच दिया।

महाराष्ट्र में सरकार चाहे किसी की भी बने उपमुख्यमंत्री पद मानो अजित पवार के लिए ही सुरक्षित हो गया है। इस शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह सहित अनेक केन्द्रीय मंत्री तथा एनडीए शासित राज्यों के सभी मुख्यमंत्री शामिल हुए, यही नहीं बल्कि उद्योगजगत और फिल्मजगत के अलावा सार्वजनिक जीवन की तमाम हस्तियों ने भी शपथ ग्रहण समारोह की शोभा बढ़ाई।

शायद यह किसी भी मुख्यमंत्री का पहला शपथ ग्रहण समारोह है जिसमें इतनी बड़ी संख्या में नेताओं का जमावड़ा लगा हो। देवेन्द्र फडणवीस का कद निश्चित रूप से ऊंचा हो गया है और अब तो उन्हें देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह तथा उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बाद भाजपा का चौथा सबसे बड़ा और लोकप्रिय नेता माना जा रहा है। निश्चित रूप से देवेन्द्र फडणवीस की यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

वहीं दूसरी ओर उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने सरकार गठन के पहले अपनी नाराजगी दिखाकर अपना कद घटा लिया है। ढाई साल पहले जब एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया गया था और सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के नेता पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस को उनके अंदर उपमुख्यमंत्री बनाया गया था।

तो उनके चेहरे पर शिकन भी नहीं आई थी और उन्होंने भाजपा हाई कमान के निर्णय को खुशी-खुशी शिरोधार्य करते हुए उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और पूरे ढाई साल तक उपमुख्यमंत्री के रूप में अपने दायित्व का कुशलतापूर्वक निर्वहन किया था। किन्तु इस बार जब भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी और देवेन्द्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने तो एकनाथ शिंदे उनके अंडर उपमुख्यमंत्री बनने के लिए राजी नहीं हो रहे थे।

न नुकूर करने लगे और भाजपा के सामने तरह-तरह की शर्तंे रखकर सौदेबाजी पर उतर आये। हालांकि भाजपा हाईकमान ने उनकी कोई भी शर्त नहीं मानी नतीजतन उन्होंने मन मारकर उपमुख्यमंत्री पद स्वीकार कर लिया।

दरअसल इसके लिए शिवसेना के विधायकों ने ही उन पर दबाव डाला था कि वे अपनी जिद छोड़े और सरकार में शामिल हो अन्यथा भाजपा को अजित पवार का समर्थन है। इसलिए वे शिवसेना को दरकिनार करके भी अपनी सरकार बना लेगी और पूरे पांच साल तक चला भी लेगी।

इसके बाद भी एकनाथ शिंदे ने अपने हथियार डाले ऐसा करके उन्होंने अपना कद घटा लिया है। हालांकि अब वे सरकार का हिस्स बन गये है लेकिन वे कब तक महायुति गठबंधन की सरकार का हिस्सा रहेंगे।

इस बारे में कुछ भी कह पाना मुहाल है। बेहतर तो यही होगा कि एकनाथ शिंदे बड़ा दिल दिखाये और देवेन्द्र फडणवीस के नेतृत्व में बनी सरकार में उपमुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभाये। अन्यथा उनका भी हश्र उद्धव ठाकरे जैसा ही हो तो कोई ताज्जुब नहीं होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *