Hindustan Politics : सफेद कमीजों पर दलाली के दाग…
विजय त्रिवेदी। Hindustan Politics : हिन्दुस्तान की राजनीति में खादी के सफेद झक कुर्ते-पायजामे की एंट्री यूं तो शायद आम आदमी से जुड़े दिखते रहने के लिए हुई होगी, ताकि लगे कि नेताजी भी हमारे बीच में से ही कोई हैं। फिर दूसरी बड़ी वजह यह मानी गई होगी कि सफेद रंग ईमानदारी का रंग है, यानी राजनीति में ईमानदार लोगों को जगह मिलेगी, लेकिन साहब, मुश्किल तो यह हो गई कि इस सफेद ड्रेस पर हल्का-सा भी दाग चमकता हुआ दिखाई देता है, यानी किसी भी राजनेता पर दाग लगता दिखे, तो उसकी मुश्किलें शुरू हो सकती हैं।
राजनीति में मेरी कमीज तेरी कमीज से ज्यादा सफेद की बहस चलती रहती है। राजनीति में भ्रष्टाचार की कहानी यूं तो आजादी के साथ ही शुरू हो गई थी। देश की पहली सरकार में जीप घोटाले की गूंज सुनाई दी थी। तब से लेकर आज तक हर सरकार में किसी न किसी पर भ्रष्टाचार के छींटे किसी न किसी बहाने से लगते ही रहे हैं। कुछ लोग कहते हैं कि यह तो राजनीतिक हम्माम है और हम्माम के बारे में तो सब जानते ही हैं। राजनीतिक भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी कहानी अभी तक बोफोर्स घोटाले को माना जाता है, जिसकी वजह से सबसे बड़ी बहुमत वाली राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार चली गई थी।
यह अलग बात है कि अभी तक उस मामले में शायद यह साबित नहीं हो पाया कि राजीव गांधी या उनके परिवार में किसी ने रिश्वत ली थी। रक्षा सौदों में दलाली का यह पहला बड़ा मामला था, जिसने हिन्दुस्तान की राजनीति (Hindustan Politics) को एक झटके में बदल दिया था। सबसे ईमानदार माने जाने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार का दूसरा कार्यकाल भ्रष्टाचार की तमाम कहानियों से भरा पड़ा है। इसमें कई मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा, जेल भी जाना पड़ा, हालांकि, इससे ही जुड़े एक मामले में अभी पूर्व सीएजी ने माफी भी मांगी है। मौजूदा मोदी सरकार का यह दूसरा कार्यकाल है और कुल सात साल में प्रधानमंत्री मोदी समेत किसी भी मंत्री पर मौटे तौर पर भ्रष्टाचार का आरोप अब तक नहीं लगा है, लेकिन अब लड़ाकू जहाज राफेल की खरीद को लेकर राजनीति जिस कदर गरमा गई है, उससे लगता है कि इस मसले से पीछा छुड़ाना आसान नहीं होगा।
अहम बात यह है कि दोनों प्रमुख राजनीतिक दल, भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। राफेल की कहानी शुरू उस दिन से होती है, जब यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार ने अगस्त 2007 में मल्टी रोल काम्बेट खरीदने का प्रस्ताव रखा था। 2012 में तब के रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने बताया था कि कीमतों को लेकर अभी बात नहीं बन पाई। राफेल खरीद में भ्रष्टाचार का मामला तब सामने आया, जब फ्रांस के ही एक पोर्टल ने आरोप लगाया कि राफेल जेट की बिक्री सुनिश्चित करने के लिए मॉरीशस में पंजीकृत एक शेल कंपनी इंटरस्टेलर टेक्नोलॉजी से सुशेन गुप्ता को रिश्वत दी गई। रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2007 से 2012 के बीच इस कंपनी को 7.5 मिलियन यूरो यानी करीब 65 करोड़ रुपये दिए गए।
रिपोर्ट के मुताबिक, मॉरीशस सरकार ने इससे जुड़े दस्तावेज 2018 में सीबीआई को सौंप दिए और सीबीआई ने इसे ईडी को दे दिया। सुशेन गुप्ता का नाम अगस्ता वेस्टलैंड डील में भी आया था, जिसमें कांग्रेस से जुड़े लोगों पर दाग लगाए गए थे। अब राजनीतिक झगड़ा यहां से शुरू होता है कि यह रिश्वत साल 2007 से 2012 के बीच में दी गई, तब केंद्र में यूपीए की सरकार थी और भाजपा इसके लिए कांग्रेस के शामिल होने और उस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही है। भाजपा के एक प्रवक्ता ने तो कांग्रेस के नाम आईएनसी यानी इंडियन नेशनल कांग्रेस को आई नीड करप्शन में बदल दिया। कांग्रेस का कहना है कि सारा फैसला एनडीए सरकार के वक्त हुआ है, जब विमानों की कीमत में भी भारी बदलाव किया गया।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी गया और कोर्ट ने प्राथमिक तौर पर कोई गड़बड़ी नहीं पाई है। अब कांग्रेस का कहना है कि यदि हमने भी पैसा लिया है, तो फिर सरकार इसकी जांच कराने से क्यों बच रही है। सरकार को संसदीय समिति यानी जेपीसी से इसकी जांच करानी चाहिए। फ्रांस में इस साल जून में इसकी न्यायिक जांच शुरू हो गई है। जांच में पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि रिश्वत का यह पैसा क्या भारत सरकार में अफसरों व दूसरे लोगों तक पहुंचा है।
यहां इस बात का जिक्र भी करना ठीक होगा कि वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे यशवंत सिन्हा व अरुण शौरी ने 4 अक्तूबर 2018 को सीबीआई के तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा से मुलाकात कर उन्हें एक फाइल सौंपी बताई। लेकिन आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटा दिया गया। कांग्रेस का आरोप है कि आलोक वर्मा राफेल मामले में एफआईआर दर्ज कराने जा रहे थे, इसलिए उन्हें हटाया गया। भाजपा का कहना है कि कांग्रेस इतने साल इस डील को इसलिए अंतिम रूप नहीं दे पाई, क्योंकि वह डील नहीं, कमीशन फाइनल करने में लगी थी और बात ठीक से बन नहीं पाई। मोदी सरकार के आने के बाद इस पर तेजी से काम हुआ और अब तो सात खेप में 24 राफेल विमान भारत पहुंच गए हैं।
इसी महीने 29 नवंबर से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है। साफ है कि कांग्रेस और विपक्षी पार्टियां इस मसले को जोर-शोर से उठाएंगी। इसकी एक वजह अगले साल फरवरी-मार्च में उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हैं, तब तक कांग्रेस इसकी गूंज को बरकरार रखना चाहती है। यह वक्त इस निर्णय पर पहुंचने का नहीं है कि इसमें क्या घोटाला हुआ, कितने की रिश्वत दी गई, क्या गड़बड़ी हुई और कौन जिम्मेदार है, लेकिन इन सब सवालों के जवाब तो चाहिए ही और ये जवाब मौजूदा सरकार को भी अपना दामन साफ रखने में मदद कर सकते हैं।
अब सरकार को तय करना है कि वह इस मामले की जांच कराने के लिए आगे आती है और किस तरह की जांच कराना चाहती है। लोकतंत्रीय राजनीति (Hindustan Politics) में अवधारणा सबसे अहम है, यानी यह जताए रखना कि वह सबसे ईमानदार है और उसकी कमीज सबसे सफेद है और इसका एक ही तरीका हो सकता है, सबसे विश्वसनीय जांच।