High Court on POCSO Case : छत्तीसगढ़ की निर्भया को नहीं मिला न्याय, हाईकोर्ट ने बताया दुर्भाग्यपूर्ण
High Court on POCSO Case
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने जांजगीर-चांपा जिले के जैजैपुर थाना क्षेत्र की नाबालिग छात्रा से दुष्कर्म और हत्या के मामले (High Court on POCSO Case) में विचारण न्यायालय के फैसले पर गंभीर टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि इतनी गंभीर घटना और स्पष्ट मेडिकल साक्ष्यों के बावजूद निचली अदालत द्वारा POCSO Act (पॉक्सो एक्ट) के तहत दोषसिद्धि न देना न्याय प्रणाली के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की खंडपीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने मामले की परिस्थितियों, मेडिकल रिपोर्ट और प्रत्यक्ष सबूतों की अनदेखी कर आरोपी को पॉक्सो की धाराओं से बरी कर दिया, जो एक गंभीर न्यायिक भूल है। अदालत ने यह भी कहा कि राज्य सरकार द्वारा इस फैसले के खिलाफ अपील न करना कानूनी उदासीनता का उदाहरण है।
ट्रायल कोर्ट ने की बड़ी गलती
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में लिखा इतने मजबूत सबूतों के बावजूद आरोपी को IPC की धारा 363, 364, 376(3) और POCSO Act की धारा 4 एवं 6 से बरी करना साक्ष्यों की गलत व्याख्या को दर्शाता है। राज्य सरकार की अपील का अभाव इस अपराध की गंभीरता को कम नहीं करता। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट साफ तौर पर साबित करती है कि पीड़िता के साथ Sexual Assault (यौन उत्पीड़न) हुआ था और उसकी हत्या कर शव को तालाब में फेंका गया। न्यायालय ने यह भी कहा कि जब किसी नाबालिग के साथ दुष्कर्म और हत्या एक साथ होती है, तो दोनों अपराधों के लिए दोषसिद्धि आवश्यक है।
दर्दनाक घटना जिसने झकझोर दिया था प्रदेश को
यह मामला Jaijaipur Rape Case (जैजैपुर दुष्कर्म मामला) के नाम से पूरे राज्य में चर्चित हुआ था। 28 फरवरी 2022 की रात 12 वर्षीय नवीं कक्षा की छात्रा अपनी मां के साथ घर में सोई थी। रात में मां की नींद खुली तो बेटी गायब थी। अगले दिन पिता ने पुलिस को सूचना दी कि उनकी बेटी का अपहरण (Kidnapping) कर लिया गया है। 1 मार्च को उसकी लाश गांव के तालाब में मिली। जांच में सामने आया कि आरोपी जवाहर नामक युवक ने छात्रा का अपहरण कर उसके साथ Rape (बलात्कार) किया और हत्या कर शव को छिपा दिया। सक्ति न्यायालय ने आरोपी को केवल हत्या (IPC 302) और साक्ष्य मिटाने (IPC 201) का दोषी ठहराया था, लेकिन पॉक्सो की धाराओं में बरी कर दिया था।
हत्या से पहले किया गया था दुष्कर्म
डॉक्टरों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में स्पष्ट उल्लेख था कि पीड़िता के शरीर पर कई चोटों के निशान थे और उसके Private Parts (गुप्तांगों) पर गंभीर चोटें पाई गईं। रिपोर्ट में कहा गया कि हत्या से पहले उसके साथ जबरन यौन संबंध बनाए गए थे। इसके बावजूद ट्रायल कोर्ट ने इसे नज़रअंदाज़ करते हुए आरोपी को केवल हत्या का दोषी माना। हाईकोर्ट ने कहा कि यह निर्णय न केवल न्याय के साथ अन्याय है, बल्कि पीड़िता के साथ दोबारा अत्याचार है।
प्रेम प्रसंग से शुरू होकर हत्या पर खत्म हुई कहानी
जांच में यह भी सामने आया कि आरोपी और नाबालिग के बीच पिछले आठ महीनों से प्रेम संबंध थे। आरोपी ने उसे एक मोबाइल फोन गिफ्ट किया था, जिसे मृतका की मां ने बाद में ले लिया। इसके बाद आरोपी ने उसे धमकाया और 28 फरवरी की रात अपने घर बुलाया। वहां उसने उसे सुसाइड नोट (Suicide Note) लिखने को कहा और यह झांसा दिया कि वे दोनों आत्महत्या करेंगे। रात एक बजे आरोपी बाइक लेकर उसके घर के पीछे पहुंचा, उसे साथ ले गया और तालाब किनारे उसकी हत्या कर दी।
न्याय में देरी से भी बड़ी त्रासदी है न्याय न होना
हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक निर्दोष बच्ची की मौत के इतने ठोस साक्ष्य होने के बावजूद ट्रायल कोर्ट ने कानून की भावना को सही ढंग से नहीं समझा। ऐसे मामलों में न्याय में देरी से भी अधिक पीड़ादायक है न्याय का अभाव। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के जघन्य अपराधों में न्यायालय की जिम्मेदारी सिर्फ सजा सुनाने की नहीं, बल्कि समाज को यह संदेश देने की भी है कि न्याय व्यवस्था हर पीड़ित के साथ खड़ी है।
पुलिस जांच में यह भी पता चला कि आरोपी ने नाबालिग से पहले ही सुसाइड नोट लिखवाया था ताकि हत्या के बाद इसे आत्महत्या का रूप दिया जा सके। आरोपी ने लड़की को डबरी तालाब के पास बुलाया और वहीं Sexual Assault करने के बाद गला दबाकर उसकी हत्या की। फिर शव को फांसी के रूप में लटकाकर घटना को आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की गई।
