Hate Speech Law : नफरती भाषण पर बनाया कड़ा कानून, दोषियों को सात साल तक की जेल, जमानत मुश्किल
Hate Speech Law
कर्नाटक देश का पहला राज्य बन गया है, जिसने नफरती भाषण और नफरती (Hate Speech Law) अपराध के खिलाफ सख्त कानून पारित किया है। विधानसभा के बाद शुक्रवार को विधान परिषद ने भी इस विधेयक को मंजूरी दे दी।
अब राज्यपाल की स्वीकृति के बाद यह कानून लागू हो जाएगा। नए कानून के तहत नफरती भाषण के मामलों में अधिकतम सात साल जेल और भारी जुर्माना लगाया जा सकेगा। इसके अलावा अपराध गैर-जमानती होगा और पुलिस को “निवारक कार्रवाई” के विस्तृत अधिकार प्राप्त होंगे।
नए प्रावधानों के तहत यदि कोई संगठन या संस्था नफरती अपराध में शामिल पाई जाती है, तो अपराध के समय जिम्मेदार प्रत्येक व्यक्ति दोषी माना जाएगा। आरोपितों पर यह दायित्व होगा कि वे साबित करें कि उन्होंने अपराध रोकने के लिए जरूरी सावधानियां अपनाईं। इस कठोरता को लेकर राज्य की राजनीति में नए सिरे से बहस शुरू हो गई है।
कर्नाटक नफरती भाषण कानून (Hate Speech Law) का मसौदा कर्नाटक के गृह मंत्री जी. परमेश्वर ने विधान परिषद में पेश किया। विपक्ष के कड़े विरोध के बीच विधेयक पारित हुआ। भाजपा ने इस कानून को विपक्ष को निशाना बनाने वाला “ब्रह्मास्त्र” और “क्रूर” बताते हुए कहा कि यह राजनीतिक विरोधियों पर झूठे मामलों के लिए स्वतंत्र लाइसेंस बन जाएगा।
भाजपा के एमएलसी सीटी रवि ने इसे “राजनीतिक प्रतिशोध का खतरनाक उपकरण” कहा, जबकि विपक्ष के नेता चालावाड़ी नारायणस्वामी ने आरोप लगाया कि यह संविधान के खिलाफ है और अदालत में चुनौती दी जा सकती है।
विधेयक के अनुसार नफरती अपराध पर एक साल की सजा दी जा सकेगी, जिसे बढ़ाकर सात साल तक किया जा सकता है। बार-बार अपराध करने पर अधिकतम सजा के साथ एक लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा।
प्रस्तावित अपराध गैर-जमानती होंगे और ऑनलाइन नफरती सामग्री हटाने के लिए राज्य सरकार द्वारा अधिकृत अधिकारी को सेवा प्रदाताओं व मध्यस्थों को आदेश देने का अधिकार होगा।
सात साल तक सजा (Seven Year Punishment) की शक्ति के साथ कानून कार्यकारी मजिस्ट्रेट, विशेष मजिस्ट्रेट और डीएसपी-स्तर के अधिकारियों को यह अधिकार देता है कि यदि उन्हें आशंका हो कि उनके क्षेत्र में अपराध हो सकता है, तो वे निवारक कार्रवाई कर सकें।
कानून के अनुसार किसी व्यक्ति या समूह के खिलाफ धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय, लिंग, यौन रुझान, जन्म स्थान, भाषा, जनजाति या दिव्यांगता के आधार पर घृणा या शत्रुता फैलाने वाले वक्तव्य नफरती भाषण की श्रेणी में आएंगे।
इस बीच केंद्रीय राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे ने राज्यपाल से अनुरोध किया है कि वे इस विधेयक को मंजूरी न दें और संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत इसे राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजें।
सरकार का दावा है कि यह कानून समाज में बढ़ती नफरत और सांप्रदायिक तनाव को रोकने के लिए जरूरी कदम है। हालांकि राजनीतिक हलकों में यह बहस अभी और तेज़ होने वाली है कि कानून सामाजिक सुरक्षा के लिए बना है या राजनीतिक जंग का नया मैदान बनेगा।
