मतदाताओं को सब्जबाग दिखा रहीं राजनीतिक पार्टियां

मतदाताओं को सब्जबाग दिखा रहीं राजनीतिक पार्टियां

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हरियाणा और विधानसभा चुनाव में मतदाताओं का मन मोहने के लिए कांग्रेस, भाजपा, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों ने चुनावी घोषणा पत्र जारी कर सब्जबाग दिखाने शुरू कर दिए हैं। एक से बढ़ कर एक लोक लुभावन घोषणाएं की जा रही हैं।

देश में बढ़ती बेरोजगारी की समस्या को भुनाने के लिए और युवा वर्ग को अपने पक्ष में करने के लिए सभी पार्टियां लाखों नहीं बल्कि करोड़ों बेरोजगारों को नौकरी देने या फिर बेरोजगारी भत्ता देने का वादा कर रही हैं। इसके साथ ही मुफ्त खोरी को बढ़ावा देने का भी काम किया जा रहा है। इसमें सबसे आगे नई दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार है।

वहां के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो पानी, बिजली और शिक्षा सहित महिलाओं के लिए टे्रन व बस में मुफ्त सफर करने तक ही कई घोषणाएं कर रखी है। पिछला चुनाव आम आदमी पार्टी ने बिजली बिल हाफ और पानी का बिल माफ करने के वादे से ही जीता था। इसी वजह से नई दिल्ली में अब मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने की कवायद की जा रही है। हरियाणा और महाराष्ट्र में भी किसानों का कर्ज माफ करने सहित इसी तरह की कई और घोषणाएं विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने चुनावी घोषणा पत्रों में शामिल की है।

यह सीधे-सीधे मतदाताओं को प्रलोभन प्ररोसना है। चुनाव आयोग को चाहिए कि कर्ज माफी और मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली ऐसी घोषणाओं पर रोक लगाने के लिए कड़े कदम उठाए। वैसे भी चुनावी घोषणा पत्र का कोई मतलब नहीं होता है, ज्यादातर पार्टियां चुनाव निपटते ही चुनावी घोषणपत्र को रद्दी की टोकरी के हवाले कर देती हैं। इनमें की गई कुछ घोषणाएं ही अमल में लाई जाती हैं बाकी घोषणाएं हासिए पर टांग दी जाती हैं।

ऐसी स्थिति में चुनावी घोषणा पत्र पर यकीन कर के उस पार्टी विशेष को वोट देने वाला मतदाता खुद को ठगा हुआ महसूस करता है लेकिन वह कुछ कर नहीं पाता, क्यों कि चुनाव हो जाने के बाद मतदाता का महत्व अगले पांच सालो के लिए खत्म हो जाता है।

केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने भी अपने चुनावी घोषणा पत्र में हर साल पांच करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा किया था लेकिन उसने लाखों लोगों को बेरोजगार कर दिया है। इसी तरह पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस ने युवाओं को रोजगार देने का वादा किया था। लेकिन इसके उलट लोगों के रोजगार छीने जा रहे है। अब तो मतदाताओं ने चुनावी घोषणा पत्र पर यकीन करना भी छोड़ दिया है।

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