Handloom : गमछा में उकेरा धान की बाली के साथ हल जोतता किसान
रायपुर/नवप्रदेश। Handloom : ग्रामोद्योग मंत्री गुरु रूद्रकुमार की विशेष पहल पर हाथकरघा प्रभाग नवाचार कर छत्तीसगढ़ी राजकीय गमछा का निर्माण कर रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य की पारंपरिक सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करते हुए संस्कृति विभाग द्वारा अनुमोदित डिजाइन के आधार पर यह राजकीय गमछा तैयार किया गया है। इस गमछा को टसर सिल्क और कॉटन में बुनकरों एवं शिल्पियों से तैयार कराया जा रहा है।
गमछा में धान की बाली और हल जोतता किसान को किया प्रदर्शित
राजकीय गमछा के डिजाइन में धान के कटोरा के रूप में प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ राज्य को प्रदर्शित करने के लिए धान की बाली और हल जोतता किसान को प्रदर्शित किया गया है। राज्य की आदिवासी संस्कृति (Handloom) को दिखाने के लिए आदिवासी समूह नृत्य तथा मांदर को भी गमछे में उकेरा गया है। बस्तर के प्रसिद्ध गौर मुकुट, राजकीय वन भैंसा तथा राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना को भी गमछे में अंकित किया गया है, इसके साथ ही सरगुजा की पारंपरिक भित्ति चित्र की छाप भी गमछे के बॉर्डर में अंकित है।
गोदना प्रिंट को उकेरा गया
गमछे की बुनाई के उपरांत इसमें सरगुजा के महिला गोदना शिल्पियों के द्वारा गोदना प्रिंट को उकेरा गया है। इस गमछे की कीमत 1534 रूपए (जीएसटी सहित) निर्धारित की गई है। इसी प्रकार कॉटन गमछा को भी राज्य के बालोद, दुर्ग, राजनांदगांव जिले के बुनकरों द्वारा हाथ करघों पर बुनाई के माध्यम से तैयार किया गया है। इस गमछे के ताने में 2/40 काउंट का कॉटन यार्न और बाने में 20 काउंट का कॉटन यार्न उपयोग किया गया है।
पारंपरिक सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक राजकीय गमछा
उल्लेखनीय है कि टसर सिल्क गमछे में बुनकर द्वारा ताने में फिलेचर सिल्क यार्न तथा बाने में डाभा टसर यार्न एवं घिंचा यार्न का उपयोग किया गया है। गमचे की चौड़ाई 24 इंच तथा लंबाई 84 इंच है। इस टसर सिल्क गमछे की बुनाई सिवनी चांपा के बुनकरों द्वारा की गई है।
अनुबंधित हैदराबाद इकाई से मुद्रण
गमछे की बुनाई (Handloom) के उपरांत इसमें राज्य की परंपरा को प्रदर्शित करते हुए डिजाइनों को स्क्रीन प्रिंट से तैयार कराया गया है। स्क्रीन प्रिंट का कार्य छत्तीसगढ़ राज्य हथकरघा संघ से अनुबंधित हैदराबाद की प्रिंटिंग इकाई से कराया जा रहा है। इस गमछे की चौड़ाई 24 इंच तथा लंबाई 84 इंच है। इस गमछे की कीमत 239 रूपए (जीएसटी सहित) निर्धारित की गई है। इन गमछों को राज्य के स्मृति चिन्ह के रूप में मान्यता दिए जाने से बुनाई के माध्यम से 300 बुनकरों को तथा 100 महिला गोदना शिल्पियों को वर्ष भर रोजगार प्राप्त होगा।