Gupkar Gang : गुपकार गैंग में छटपटाहट स्वाभाविक
Gupkar Gang : जम्मू कश्मीर में पिछले एक साल से रहने वाले लगभग २५ लाख गैर कश्मीरियों को मतदान का अधिकार देने की कवायद तेज हो गई है। इससे गुपकार गैंग में छटपटाहट देखी जा रही है जो कि स्वाभाविक है। अब तक जम्मू कश्मीर को अपनी जागीर समझने वाले डा. फारूख अब्दुल्लाह और महबूबा मुफ्ती को साफ नजर आ रहा है कि अब उनकी राजनीतिक दुकानदारी बंद होने जा रही है।
जम्मू कश्मीर से ३७० के खात्मे के बाद से ही डॉ फारूख अब्दुल्लाह (Gupkar Gang) और महबूबा मुफ्ती के बुरे दिन शुरू हो चुके है और अब जम्मू कश्मीर में एक साल से रह रहे गैंर कश्मीरियों को वोट देने का अधिकार मिल जाने के बाद इन दोनों ही नेताओं के लिए जम्मू कश्मीर की सत्ता पर काबिज होना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
यही वजह है कि वे सरकार के इस निर्णय का विरोध कर रहे है। कंाग्रेस छोड़कर अपनी अलग पार्टी बनाने वाले गुलामनबी आजाद ने भी इस फैसले का विरोध किया है। इन नेताओं का कहना है कि सरकार कश्मीरियों की पहचान खत्म करने जा रही है। जबकि हकीकत यह है कि कश्मीरियत आगे भी बरकरार रहेगी। रही बात २५ लाख गैर कश्मीरी वोटरों की तो यह उनका संविधान प्रदत्त अधिकार है। वर्षों वहां जम्मू कश्मीर की जनता की सुरक्षा के लिए तैनात सुरक्षाकर्मी हो या फिर वहां के निर्माण कार्यो में लगे प्रवासी मजदूर, उन्हे भी मत देने का अधिकार मिलना ही चाहिए। इसमें आपत्तिजनक कोई बात नहीं है।
भारत का कोई भी नागरिक देश के किसी भी कोने में जाकर आजीविका चला सकता है और वहां की मतदाता सूची में अपना नाम जुड़वा सकता है। जम्मू कश्मीर में कोई नया नहीं हो रहा है। यह तो गुपकार गैंग की छटपटाहट है क्योंकि अब उनका खेल खत्म होने का खतरा पैदा हो गया है। आगामी होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले के आंकड़ों की अगर बात करें तो मतदाताओं की गिनती करीब 76 लाख थी। वहीं इस चुनाव में माना जा रहा है कि यह संख्या करीब 25 लाख बढ़ जाएगी।
यानी कि अगर ऐसा होता है तो यह तादाद बढ़कर एक करोड़ तक पहुंच जाएगी। कुल मिलाकर कहें तो जो गैर कश्मीरी वोटर जुड़ेंगे, ये सत्ता के सियासी गलियारे में कमोवेश तस्वीर बदलने के लिए काफी हैं। इन वोटरों के जुडऩे से पहले विपक्षियों के बयान और बढ़ती चिंता इस ओर इशारा करती (Gupkar Gang) नजर आ रही है।