Govardhan Puja 2025 : जब श्रीकृष्ण बने ब्रज के रक्षक, छप्पन भोग और आस्था से गूंजे गिरधारी के नाम

Govardhan Puja 2025

Govardhan Puja 2025

Govardhan Puja 2025 : दीपावली की रोशनी के अगले ही दिन जब घरों में दीप की लौ थोड़ी मंद पड़ती है, तब आस्था का नया दीप जलता है – गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja 2025)। कार्तिक मास की परवा (प्रथमा) तिथि पर मनाया जाने वाला यह पर्व केवल पूजा भर नहीं, बल्कि प्रकृति, पशुधन और मानव जीवन के बीच सामंजस्य का संदेश है।

आज देशभर में सुबह से ही घर-आंगन में गोबर से बने गोवर्धन पर्वत की प्रतिकृति स्थापित की जा रही है। श्रद्धालु लोग उसमें हल्दी, दही, दूध, गुड़ और अनाज से अर्पण कर रहे हैं। कई जगहों पर श्रीकृष्ण के गिरधारी स्वरूप की विशेष आराधना की जा रही है। परंपरा के अनुसार, छप्पन भोग लगाकर भगवान को प्रसन्न किया जाता है और परिवार की समृद्धि की कामना की जाती है।

प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का पर्व

गोवर्धन पूजा को वैदिक युग का उत्सव नहीं, बल्कि लोक आस्था और पर्यावरण की चेतना से जुड़ा पर्व (Govardhan Puja 2025) माना जाता है। पौराणिक कथा कहती है कि जब ब्रजवासी हर वर्ष इंद्रदेव की पूजा में दूध-दही और अन्न का अर्पण करते थे, तब बालकृष्ण ने उनसे कहा कि वर्षा का स्रोत केवल इंद्र नहीं, बल्कि प्रकृति स्वयं है – नदी, धरती, पशुधन और पर्वत। इसी से उत्पन्न हुआ यह पर्व – एक प्रतीक कि प्रकृति ही सच्ची देवता है।

इंद्र के क्रोध से बचाने उठाया गोवर्धन

कथा के अनुसार, जब ब्रजवासियों ने श्रीकृष्ण की बात मान ली और इंद्र पूजा बंद कर दी, तब इंद्र ने आकाश से प्रचंड वर्षा कर दी। चारों ओर जल ही जल था, लोग भयभीत थे। उसी समय श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर पूरे ब्रज की रक्षा (Govardhan Puja 2025) की। सात दिन और सात रात तक वर्षा होती रही, और अंत में इंद्र का अहंकार भंग हुआ। तब से यह पर्व उस क्षण की स्मृति में मनाया जाता है, जब प्रेम और भक्ति ने शक्ति को झुका दिया।

गिरधारी स्वरूप की आराधना

शास्त्रों के अनुसार, गोवर्धन पर्वत अब केवल एक पर्वत नहीं, बल्कि श्रीकृष्ण का साक्षात रूप हैं। ब्रज, मथुरा, वृंदावन से लेकर राजस्थान और गुजरात तक इस दिन गिरधारी स्वरूप की पूजा की जाती है। कई घरों में यह पर्व कुलदेवता की पूजा के समान श्रद्धा से मनाया जाता है। आज के दिन ब्रजवासी, गोधन और धरती की आराधना करते हुए यह स्वीकार करते हैं कि जीवन की हर शक्ति प्रकृति से ही आती है।

छप्पन भोग और अन्नकूट उत्सव

आज के दिन मंदिरों और घरों में अन्नकूट उत्सव भी मनाया जा रहा है। भगवान को 56 प्रकार के व्यंजन – मिठाइयाँ, फल, दालें, अनाज, सब्जियाँ, हलवे और पकवान – अर्पित किए जाते हैं। भक्त मानते हैं कि अन्नकूट, कृष्ण के अन्नपूर्ण स्वरूप की आराधना (Govardhan Puja 2025) है। पूजा के बाद इन व्यंजनों का प्रसाद सभी के बीच बांटा जाता है, जो समुदाय और समरसता की भावना को सुदृढ़ करता है।

भक्ति और प्रकृति का अद्भुत संगम

गोवर्धन पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह संदेश देती है कि भक्ति तभी सार्थक है जब उसमें प्रकृति के प्रति सम्मान जुड़ा हो। जब धरती को मां और पशुओं को परिवार समझा जाए, तभी जीवन संतुलित रह सकता है।

गोवर्धन पूजा का पर्व हमें यह याद दिलाता है कि देवत्व बाहर नहीं, बल्कि हमारे आसपास की प्रकृति में ही विद्यमान है। श्रीकृष्ण का यह संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है – “जो धरती को पूजेगा, वही सच्चा भक्त कहलाएगा।”