पिता की जगह मिली नौकरी, पर बेटा मां की जिम्मेदारी से भागने लगा.. तो कोर्ट ने सुनाई खरी-खरी

पिता की जगह मिली नौकरी, पर बेटा मां की जिम्मेदारी से भागने लगा.. तो कोर्ट ने सुनाई खरी-खरी

Bilaspur mother's appeal, High Court's order for compassionate appointment of her son

Bilaspur mother's appeal, High Court's order for compassionate appointment of her son

पति की मौत के बाद मां की अनदेखी करने पर बेटे को सबक सिखाने पहुंची हाईकोर्ट

बिलासपुर/नवप्रदेश। Got a job in place of his father, but the son started running away from his mother’s responsibilities: हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में बुजुर्ग मां की देखभाल करना बेटे के लिए नैतिक और कानूनी दायित्व बताया है। अनुकंपा नियुक्ति मिलने के बाद बुजुर्ग मां से किनारा करने वाले पुत्र को चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा व जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच ने जमकर फटकार लगाई। डिवीजन बेंच ने कहा कि पिता की मौत के बाद मां की सहमति से ही उसे नौकरी मिली है। इसलिए वह अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकता। हाईकोर्ट ने बेटे को अपनी मां के लिए हर माह दस हजार रुपए देने का आदेश भी दिया है।

वहीं, बेटे के पैसे नहीं देने पर एसईसीएल प्रबंधन को पुत्र के वेतन से कटौती कर सीधे उसकी मां के खाते में तय राशि जमा कराने का आदेश दिया है। दरअसल, कोरबा क्षेत्र में रहने वाली महिला का पति एसईसीएल दीपका में कर्मचारी था। सेवाकाल के दौरान पति की मौत होने पर उसने अपने बड़े पुत्र को अनुकंपा नियुक्ति देने सहमति दी।

अनुकंपा नियुक्ति पाने पर आश्रितों के लिए ये है नियम

एसईसीएल के नियमों के अनुसार अनुकंपा नियुक्ति (Got a job in place of his father, but the son started running away from his mother’s responsibilities) पाने वाला मृतक के आश्रितों की देखभाल करेगा, यदि वह अपने नैतिक व कानूनी दायित्व का उल्लंघन करता है, तो उसके वेतन से 50 प्रतिशत राशि काट कर आश्रितों के खाते में जमा की जाएगी। अनुकंपा नियुक्ति पाने के बाद कुछ दिनों तक वह अपनी माँ और भाई का देखभाल करता रहा। फिर साल 2022 से उसने मां और भाई को छोड़ दिया।

जिम्मेदारी उठाने से बच नहीं सकता पुत्र

मां के पक्ष में हाईकोर्ट का फैसला आने पर बेटे ने उसे चुनौती देते हुए डिवीजन बेंच में अपील की थी। याचिकाकर्ता बेटे ने अपील बताया कि उसे 79 हजार नहीं बल्कि 47 हजार रुपए वेतन मिलता है। इसमें भी ईएमआइ कट रहा है। एसईसीएल के जवाब पर पुत्र ने कहा की उसकी मां को 5,500 रुपए पेंशन मिल रहा है। इसके अलावा पिता के सेवानिवृत्त के देयक राशि भी उन्हें ही मिली है। इससे वह अपनी देखभाल कर सकती है। उसका पक्ष सुनने के बाद चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच ने कहा कि मां की सहमति से ही उसे अनुकंपा नियुक्ति मिली है और उसकी जिम्मेदारी उठाने से बच नहीं सकता। डिवीजन बेंच ने उसकी दलीलों को खारिज करते हुए उसकी मां को हर महीने 10 हजार रुपए देने का आदेश दिया है।

मां ने हाईकोर्ट में लगाई थी याचिका

बेटे के खर्च नहीं देने से परेशान मां ने (Got a job in place of his father, but the son started running away from his mother’s responsibilities) हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इसमें उन्होंने एसईसीएल की नीति के अनुसार बेटे के वेतन से कटौती कर 20 हजार रुपए प्रति माह दिलाने की मांग की। इस मामले की प्रारंभिक सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने एसईसीएल प्रबंधन सहित सभी पक्षकारों को नोटिस कर जवाब मांगा। मामले में एसईसीएल ने जवाब में कहा कि नीति के अनुसार सहमति का उल्लंघन करने पर 50 प्रतिशत राशि काट कर मृतक के आश्रितों के खाते में जमा किया जा सकता है। प्रबंधन का पक्ष सुनने के बाद सिंगल बेंच ने बुजुर्ग मां के पक्ष में फैसला सुनाया और बेटे को हर महीने मां के बैंक खाते में राशि जमा कराने के आदेश दिए।

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