अच्छी खबर: छोटी सी सायकल की दुकान के बूते बेटी को पढ़ाया, मौसमी पहुंची लंदन
सुकान्त बिस्वास
पखांजूर/नवप्रदेश। कांकेर जिले का गांव बांदे, जो अक्सर नक्सली घटनाओ के कारण सुर्खियों में रहता है जहाँ की धरती अक्सर नक्सली हिंसा से लाल होती रही है। परन्तु इसी लालगढ़ की एक लाडली अपनी मेहनत और दृढ़ निश्चय के बल पर लंदन पहुँच चुकी है। बांदे जैसे छोटे से गाँव में जन्मी मौसमी मंडल (moushumi mandal) जिनके पिता सुखदेव मंडल बांदे में ही एक छोटी सी साइकिल दुकान चलाते है और माता सीमा मंडल गृहणी है। बांदे के एक छोटे से स्कूल से अपनी पढ़ाई शुरू कर अपने मनोबल और लक्ष्य के प्रति अपनी दृढ़ निश्चयता के दम पर यूनाइटेड किंगडम एटॉमिक एनर्जी ऑथोरिटी जैसी विश्व प्रसिद्ध संस्थान में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर चयनित होकर लंदन की गलियारों में अपने देश, राज्य और गाँव का नाम रौशन कर रही है ।
जिद्द और हिम्मत नहीं छोड़ी
मौसमी (moushumi mandal) ने अपनी शुरुआती दसवीं तक की पढ़ाई बांदे के ही एक निजी स्कूल विद्यासागर विद्यानिकेतन से पूरी की जिसके बाद बारहवीं तक की पढ़ाई पखांजूर के सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल से गणित विषय में पूरी की। गणित और इंजिनियरिंग में दिलचस्पी होने के चलते बारहवीं के बाद मौसमी ने सीजीपीईटी की परीक्षा दी।
जिसमे अच्छे रैंक ना आने की वजह से मौसमी को इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला नही मिला और फिर मौसमी ने रायपुर के एक शासकीय कॉलेज में बीएससी गणित में दाखिला लिया पर अपने इंजिनियरिंग के सपने को पूरा करने की जिद्द और हिम्मत मौसमी ने नही छोड़ी।
वो कहते है न कि अगर आप किसी चीज को पूरे दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसको आपसे मिलाने में लग जाती है। ठीक ऐसा ही कुछ हुआ मौसमी के साथ, उसी बीच मौसमी ने इंडिया लेवल में आयोजित होने वाला एआईईईई की परीक्षा दी और उसमे स्टेट लेवल पर अच्छे रैंक आने के चलते इस बार मौसमी को राजनांदगांव के सीआईटी कॉलेज में आईटी ब्रांच में दाखिला मिल गया और इस दौरान अपने स्कूली जीवन से लेकर इंजीनियरिंग के आईटी ब्रांच तक मौसमी अपने मेहनत और लगन के दम पर हमेशा प्रथम या द्वितीय स्थान पर ही आती रही ।
परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के चलते मौसमी (moushumi mandal) ने बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग के बाद जॉब करना चाहा परन्तु मौसमी की माँ अपनी बेटी को मास्टर डिग्री कराना चाहती थी उनका कहना था। बेटी पैसे तो जि़न्दगी भर कमा लेगी पर पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर लें।
जिसके बाद मौसमी ने अपनी माँ के कहने पर ही आगे मास्टर डिग्री करने का फैसला किया परन्तु इसी बीच मौसमी के परिवार पर आर्थिक संकट का पहाड़ टूट पड़ा। मौसमी के पिता के स्पाइनल क्वार्ड के छ: डिस्क कोलैप्स हो चुके थे। पिता के इस बीमारी और उसके ईलाज में हुए खर्चे ने मौसमी को मानसिक और आर्थिक रूप से पूरी तरह तोड़ दिया था।
मौसमी (moushumi mandal) के परिवार के पास मास्टर डिग्री में दाखिले हेतु काउंसिलिंग तक के लिए पैसे नही बचे थे परन्तु तभी मौसमी के बड़े मामा मसीहा बनकर उसके जि़न्दगी में आये, उन्होंने न केवल मौसमी के आगे की पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद की बल्कि मौसमी के परिवार को लगातार प्रोत्साहित भी करते रहे । मौसमी को एक बार फिर अपने सपने को पूरा करने का मौका मिला परन्तु मौसमी ने इस बार परिवार के खर्चे पर नही बल्कि सरकार के खर्चे पर अपनी पढ़ाई पूरी करने की जिद ठानी और इसके लिए दिन-रात एक कर मेहनत करती रही।
जिसका परिणाम ये हुआ कि मौसमी को पुरे देश में स्थापित केवल छ: आईआईआईटी संस्थानों में से एक इलाहाबाद आईआईआईटी में स्कॉलरशिप पर दाखिला मिल गया और अपनी मेहनत और जिद के दम पर अपनी इंजीनियरिंग मास्टर डिग्री की पूरी पढ़ाई स्कॉलरशिप यानि सरकार के पैसो से ही पूरी की। इस दौरान कॉलेज में मौसमी को पढ़ाई में बेहतर प्रदर्शन के लिए एक्सीलेंस अवार्ड भी मिला। मास्टर डिग्री के अंतिम वर्ष से ही बड़ी-बड़ी कई मल्टीनेशनल कंपनियों से जॉब के ऑफर मौसमी को आ चुके थे।
मास्टर डिग्री के बाद मौसमी ने एक मल्टीनेशनल कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर तीन साल तक काम किया इस दौरान मौसमी अपने परिवार सहित अपनी बहनों की पढ़ाई का पूरा खर्चा भी खुद ही उठाने लगी। मौसमी अपनी एक बहन को निजी कॉलेज में एमबीबीएस की पढ़ाई भी करवा रही है।
मौसमी (moushumi mandal) ने कभी सपने देखना बंद नहीं किया जिसके चलते उन्होंने आठ कठिन परीक्षाओं को उत्तीर्ण कर आज यूनाइटेड स्टेट की एक बड़ी संस्था में लाखों रुपये के पैकेज पर जॉब कर अपने माता-पिता, परिवार सहित पुरे क्षेत्र को गौरान्वित कर रही है ।