corona : हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के निर्यात पर ट्रंप की धमकी
नरेन्द्र मोदी को दबाव में झुकना नहीं चाहिए था
उपेन्द्र प्रसाद
दुनिया कोविड-19 वायरस (corona virus) के संकट के दौर से गुजर रही है। इस संकट (Problem) से दुनिया को बचाने (Save the world) के लिए यह आवश्यक है कि पूरी दुनिया मिलकर इसका सामना करे। इस बीमारी की अभी तक कोई दवा नहीं बनी है और यह कारण है कि जिसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता अधिक है, वह ही इससे बच पाता है। कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग इसके शिकार हो रहे हैं।
इसके लिए अभी दवा बनी ही नहीं है, लेकिन हमारे देश के ही जयपुर के कुछ डॉक्टरों से सबसे पहले यह पाया कि मलेरिया की दवा इसमें काम कर जाती है। यानी मलेरिया की दवा इस बीमारी में राहत देने में कुछ सफल होती दिख रही थी। एक इटालियन दंपत्ति को इस दवाई के द्वारा जयपुर के डॉक्टर बचाने में सफल हुए। तब भारत सरकार ने आदेश जारी किया कि इस दवा का उत्पादन तेज किया जाय। दुनिया में मलेरियाग्रस्त सबसे बड़ा देश भारत ही है।
दुनिया के अनेक हिस्से इस बीमारी से मुक्त हो चुके हैं, लेकिन भारत में अभी भी यह बीमारी है और इसके कारण मलेरिया की दवा का उत्पादन भी भारी पैमाने पर होता रहा है। यही कारण है कि हमारे यहां इसके उत्पादन की फैसिलिटी भी बड़े पैमाने पर है। लिहाजा इसका उत्पादन तेज किया गया, ताकि कोविड वायरस के पीडि़तों के इलाज में इस दवाई की कमी नहीं हो पाय।
इस दवा का बड़ा भंडार करने के लिए सरकार ने मार्च के अंतिम सप्ताह में इसके निर्यात पर रोक लगा दी। उस रोक से ही संतोष नहीं हुआ, तो 4 अप्रैल को एक आदेश जारी कर सेज यानी विशेष आर्थिक क्षेत्र से भी इसके निर्यात पर रोक लगा दी गई। गैरतलब हो कि सेज से किए गए निर्यात को तकनीकी तौर पर निर्यात नहीं माना जाता है।
उस क्षेत्र का निर्माण ही इसीलिए किया गया है, ताकि वहां से दूसरे देशों के माल बिना किसी कस्टम ड्यूटी के लाए जाएं और बिना किसी निर्यात टैक्स के विदेशों में बेच दिए जाएं। एक खास प्रतिशत देशी बाजार के लिए भी उसमे उत्पादन होता है। इस नियम के बावजूद सरकार ने फैसला किया कि सेज में उत्पादित होने वाली मलेरिया की दवा को दूसरे देशों में नहीं बेचा जाएगा। यह निर्णय 4 अप्रैल को किया गया।
जयपुर के डॉक्टरों को पता चल गया था कि मलेरिया की हाइड्रोक्सीक्लोक्विन से कोविड मरीजों को राहत पहुंचाई जा सकती है और उधर यही अमेरिका के डॉक्टरों ने वहां के राष्ट्रपति ट्रंप को बताया। ट्रंप ने घोषणा कर दी कि मलेरिया की दवाई से न केवल कोविड-19 का इलाज हो सकता है, बल्कि इसके इस्तेमाल से इस रोग से बचा भी जा सकता है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि वे खुद भी इस दवाई को खाएंगे, जबकि उन्हें अभी तक यह वायरस नहीं लगा है।
अमेरिका आज उस वायरस से ग्रस्त और त्रस्त सबसे बड़ा देश है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक वहां साढ़े तीन लाख से ज्यादा लोगों को यह बीमारी लग चुकी है, जो दुनिया के कुल संक्रमितों की एक चैथाई से भी ज्यादा है। वहां 10 हजार से ज्यादा लोग इस बीमारी से मारे भी गए है। प्रत्येक दिन 20 हजार से ज्यादा लोग इस बीमारी के जद में आ रहे हैं। इसके कारण अमेरिका का चिंतित होना स्वाभाविक है। लगता है कि वहां मलेरिया की उस दवा का 4 अप्रैल तक भारी पैमाने पर भारत के सेज से आयात हो रहा था और जब भारत से सेज से विदेशों में बिक्री पर भी रोक लगा दी, तो अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप बौखला गए।
उन्होंने पहले तो भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उस दवाई के निर्यात करने की गुहार लगाई। उसमें गलत कुछ भी नहीं था। जिस देश में लाखों लोग कोविड-19 की चपेट में आ गए हों और मामला गंभीर से गंभीरतर होता जा रहा हो, वह इस तरह की गुहार लगाएगा ही। इधर भारत उस दवा के निर्यात के फैसले पर फिर से विचार करने लगा। मानवीयता के दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि व्यावसायिकता के दृष्टिकोण से भी दवा के दूसरे देशों में निर्यात करना गलत नहीं है, बशर्ते कि यहां उसकी प्रचुर मात्रा उपलब्ध हो और उसके उत्पादन को और भी बढ़ाए जाने की गुंजायश हो।
जहां तक उत्पादन की बात है, तो इस दबाव के लिए इनपुट भारी मात्रा में चीन से आयात किया जाता है और इसी वायरस के कारण चीन के साथ भारत का व्यापार भी बाधित है। इसके कारण नये उत्पादन में भी बाधा आ रही होगी। शायद यही कारण है कि भारत ने इस दवा के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था।
अमेरिकी अपील पर भारत कोई फैसला करता, उसके पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत को धमकी दे डाली और कहा कि यदि उसने मलेरिया की उस दवा को अमेरिका को निर्यात नहीं किया, तो वह भारत के खिलाफ बदले की कार्रवाई करेंगे। यह धमकी बिल्कुल ही गलत थी। कोई भी स्वाभिमानी देश इस धमकी को अपनी संप्रभुता पर अतिक्रमण मानेगा। इसलिए इस धमकी के आगे मोदीजी को नहीं झुकना चाहिए था।
पर दुर्भाग्यवश इस अमेरिकी धमकी के कुछ घंटों के अंदर ही भारत ने इस दवा के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंध को ढीला कर दिया और नीतिगत फैसले में यह कहा गया कि अपनी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इस दवा का निर्यात भारत कर सकता है। अब सरकार के लोग कह रहे हैं कि हमारे पास इस दवा के पर्याप्त भंडार हैं और आने वाले दिनों में भारत में कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या को इस दवाई की कमी नहीं होने दी जाएगी। (यह लेखक के अपने विचार है, इसमें नवप्रदेशडॉटकाम इसका समर्थन नहीं करता है।)