Familialism : परिवार, वंश, भाई, भतीजा, अधिनायक एवं जातिवाद
Familialism : लेख लम्बा होने के कारण इसे दो भागों में लिखा जा रहा है- प्रथम भाग देश की स्वाधीनता के 75 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में मनाया जा रहे अमृत महोत्सव के समापन पर 15 अगस्त को स्वाधीनता दिवस पर ऐतिहासिक लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा की तरह कई नई दिशा देने वाली महत्वपूर्ण सार्थक बातें कहीं, जो अन्य पूर्व प्रधानमंत्रियों से हट कर उनकी एक विशिष्ट पहचान व ”शैली” बन चुकी हैं। अगले 25 वर्षों के लिए ”पंच प्राण” (प्रतिज्ञा) का संदेश दिया, तो ”परिवारवादÓÓ को ”लोकतंत्रÓÓ के लिए खतरा और भ्रष्टाचार की जननी बतलाकर चिंता व्यक्त की। प्रधानमंत्री के ”सांकेतिकÓÓ संदेश द्वारा ÓपरिवारवादÓ पर चिंता को मीडिया चैनलों ने तुरंत ”लपकÓÓ लिया और बहसों में विपक्षी दलों पर लगभग एक तरफा प्रहार करते हुए परिवारवाद की ”लकीर पीटनाÓÓ शुरू कर दिया। ”परिवारवादÓÓ एक समस्या है, इस चिंतन पर कार्य करने की बजाय ”तू डाल डाल मैं पात पातÓÓ, ‘मेरा परिवारवाद और तेरा परिवारवादÓ के बीच परिवारवाद की समस्या (यदि कोई हैं भी तो? जिस पर आगे चर्चा की जा रही है) ”जस से तसÓÓ मात्र उलझ कर रह गई हैं।
वास्तव में प्रधानमंत्री ने किस परिवारवाद? की और संकेत किया, स्पष्ट रूप से तो नहीं कहा। यह बात उनके मन में ही है, जिसे हम शायद आगे मन की बात में जान सकते हों। फिलहाल मीडिया से लेकर राजनीतिक दल प्रधानमंत्री की परिवारवाद की बात विस्तृत रूप से ÓÓमन की बातÓÓ में आने के पूर्व ही अपनी-अपनी (कु)-दृष्टि से अर्थ और अनर्थ निकाल रहे हैं? आइए पहले परिवारवाद है क्या? इसे समझ लिया जाए। तब फिर परिवारवादÓÓ भ्रष्टाचार, चाचा-भाई-भतीजावाद को कितना प्रोत्साहित करता है और लोकतंत्र के लिए यह कितनी खतरे की घंटी है? इन सब मुद्दो पर पृथक-पृथक और समेकित रूप से विचार करने की गहन आवश्यकता है। तभी हम किसी निश्चित परिणाम पर पहुंच कर समस्या का समाधान निकाल पाने की स्थिति में हो सकते हैं? मोटे रूप से ÓÓराजनीतिÓÓ में ÓÓपरिवारवादÓÓ का मतलब होता है, एक ही परिवार के कई व्यक्तियों अर्थात मां, बाप, भाई, भतीजा, (इसी से ‘भाई-भतीजावादÓ भी पनपता है?) बहन इत्यादि सदस्य गणों का राजनीति में एक साथ, आगे-पीछे या एक के बाद एक सत्ता के मलाईदार पदों पर बैठकर सत्ता को परिवार के इर्द-गिर्द केन्द्रीकृत कर राजनीति करें।
यही परिवारवाद आगे जाकर ”वंशवादÓÓ में तब बदल जाता है, जब बाप का बेटा-बेटी, बेटे का बेटा-बेटी अर्थात पोता-पोती और आगे इसी तरह से श्रृंखलाबद्ध अर्थात पीढ़ी दर पीढ़ी सदस्यों के राजनैतिक नेतृत्व संभालने पर वंशवाद हो जाता है। उदाहरणार्थ गांधी परिवार जहां नेहरू, इंदिरा, राजीव और राहुल गांधी के पीढ़ी दर पीढ़ी शीर्षस्थ नेतृत्व संभालने के कारण यह विशुद्ध वंशवाद ही तो है। और यह ”हाथी के पांव में सबका पांवÓÓ वाले परिवारवाद की अंतिम उच्चतम सीमा हैं। वैसे ”वंशवादÓÓ भारतीय राजनीति में नया नही हैं। इस देश में जमाने से हिन्दू-मुस्लिम शासक राजाओं का राज रहा है, जो ‘राजतंत्रÓ होकर ‘वंशवादÓ का ही तो रूप है। प्रधानमंत्री के ‘पंच प्राणÓ में तीसरी प्रतिज्ञा विरासत पर गर्व होने बाबत है। प्रधानमंत्री की इस ‘प्रतिज्ञाÓ का जब कांग्रेस अक्षरस: पालन कर ऊपर उल्लेखित राजतंत्र की वंशवाद की ”गौरवशाली विरासतÓÓ को अपना रही है, तब कांग्रेस नेतृत्व पर उंगली उठाना क्यों? भारतीय राजनीति का वर्तमान स्वरूप स्थायी रूप से इस तरह का हो गया है कि जहां विपक्ष द्वारा देश हित में सत्ता पक्ष की बात को स्वीकार करने के बावजूद भी उसकी आलोचना करना सत्ता पक्ष अपना राजनैतिक कर्तव्य मानता है, क्योंकि वह स्वीकारिता विपक्ष ने की है। इस ढर्ऱे व ढांचे को बदलना ही होगा और देश हित के मुद्दों पर सर्वानुमति बनानी ही होगी।
परन्तु वर्तमान में लोकतंत्र होने के बावजूद भी यह ÓÓलोकतंत्रÓÓ द्वारा उत्पन्न लोकतांत्रिक वंशवाद हैं। इस वंशवाद के आगे की स्थिति में जब एक ही व्यक्ति लम्बे समय तक निर्वाचित पदों पर बना रहता है, जैसे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान, बिहार के नीतीश कुमार, उडीसा के नवीन पटनायक आदि-आदि, तब अधिनायकवाद की बू आने लगती है। और अंतिम मुद्दा/रोग परिवारवाद से आगे बढ़कर जातिवाद क्या है, यह बतलाने की आवश्यकता तो बिलकुल भी नहीं हैं।
आगे परिवारवाद के प्रमुख उदाहरणों में चैधरी चरण सिंह(Familialism), मुलायम सिंह यादव, राजनाथ सिंह, जितेंद्र प्रसाद, हेमवती नंदन बहुगुणा (उत्तर प्रदेश), शीला दीक्षित (दिल्ली), कृष्ण वंश के 122 वे राजा वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल (हिमाचल प्रदेश), ललित नारायण मिश्र, भागवत झा आजाद, रामविलास पासवान, लालू यादव, (बिहार), शिंबू सोरेन, (झारखंड), यशवंतराव चव्हाण, जवाहर लाल दर्डा, वेदप्रकाश गोयल, शरद पवार, नारायण राणे, बाला साहेब ठाकरे, एकनाथ शिंदे (महाराष्ट्र), बीजू पटनायक (उड़ीसा), चैधरी देवी लाल, भजन लाल, बंसीलाल (हरियाणा), सिंधिया परिवार, (मध्यप्रदेश एवं राजस्थान) पंडित रविशंकर शुक्ल, गोविंद नारायण सिंह, गुलशेर अहमद, सुंदरलाल पटवा, वीरेंद्र कुमार सकलेचा, अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह (मध्य प्रदेश), अजीत जोगी (छत्तीसगढ़), एच डी देवेगोडा, एसआर बोम्मई (कर्नाटक), प्रकाश सिंह बादल, कैप्टन अमरिंदर सिंह, नवजोत सिंह सिद्धू (पंजाब), शेख अब्दुल्ला, मुफ्ती सईद अहमद (काश्मीर), के चन्द्र शेखर राव, असदुद्दीन औवेशी (तेलंगाना), एम करुणानिधि (तमिलनाडु), एनटी रामा राव, वाई एस रेड्डी, (आंध्र प्रदेश), तरूण गोगई (असम), ममता बनर्जी (पश्चिम बंगाल), रिन चिन खारु (अरुणाचल प्रदेश) आदि आदि। सूची काफी लंबी है और मेरे अपने प्रदेश ”मध्यप्रदेशÓÓ जो कई राजाओं महाराजाओं की रियासतें (स्टेट) रही है, वहां परिवारवाद-वंशवाद तो एक सामान्य राजनीतिक प्रक्रिया है, जिसे जनता ने समय-समय पर अधिकाशंत: स्वीकार भी किया है।
एक ही परिवार के दो सदस्य पति-पत्नी जैसे (Familialism) आचार्य जेपी कृपलानी और सुचेता कृपलानी श्रेष्ठ संसद सदस्यों में रहें हैं। वैसे स्वतंत्र भारत की विधायिकी के इतिहास में पति-पत्नी के एक साथ, आगे-पीछे जनप्रतिनिधि बनने के कई उदाहरण सामने हैं। इसलिए राजनीति में कौन सा परिवारवाद सही है, और कौन सा गलत, पहले इसकी एक लक्ष्मण रेखा खींचना आवश्यक होगी? परिवारवाद के संबंध में एक विचारणीय व उल्लेखनीय उदाहरण समाजवाद का झंडा लेकर चलने वाले मुलायम सिंह व लालू यादव का है जहां समाजवाद परिवारवाद का घोर विरोधी है। ”हाथी के दांत खाने के और दिखाने के औरÓÓ। शेष कल के अंक में क्रमश:…।
राजीव खंडेवाल
(लेखक वरिष्ठ कर सलाहकार एवं पूर्व सुधार न्यास अध्यक्ष है)