Fake Degree Scam : सजायाफ्ता को बिना परीक्षा मिला डीसीए का सर्टिफिकेट
ISBM पर कार्रवाई के लिए अभाविप ने कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन
गरियाबंद/नवप्रदेश। Fake Degree Scam : प्रदेश के एक निजी विश्वविद्यालय ISBM द्वारा उम्रकैद के कैदी को जेल से छुटने से पहले डीसीए (डिप्लोमा ऑफ कंप्यूटर एप्लिकेशन) का सर्टिफिकेट दे दिया गया। आईएसबीएम यूनिवर्सिटी के संचालक पर सख्त कार्रवाई के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने कलेक्टर को सौंपकर सख्त कार्रवाई की मांग की है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जिला संयोजक अनंत सोनी ने कहा कि छत्तीसगढ़ में कूटरचित डिग्री (Fake Degree Scam) बनाए जाने का गोरख धंधा जोर शोर से चल रहा है। इसी कड़ी में आईएसबीएम विश्विद्यालय के द्वारा जेल में बंद एक आजीवन कारावास की सजा काट रहे दंडित बंदी 9958/56 बलराम साहू पिता चेतनराम साहू को जाली डिग्री देने का एक गम्भीर मामला सामने आया है।
हाई प्रोफाइल प्रोटेक्शन घोटाला
अभाविप ने सवाल ये उठाया कि, एक आजीवन सजायाफ्ता कैदी बिना क्लास लिए, बिना परीक्षा के, बिना प्रशासनिक अनुमति के यह कैसे संभव हुआ? दरअसल ये हाई प्रोफाइल प्रोटेक्शन घोटाले का मामला है। ISBM विवि के द्वारा डंके की चोट में जेल में एक बंदी को फर्जी डिग्री देकर यह संदेश दिया है कि छत्तीसगढ़ में उन्हें बिना पढ़े, लिखे और विश्विद्यालय में प्रवेश लिए बिना ही लोगों को फर्जी डिग्री बेचने के कारोबार को छूट मिला हुआ है।
उन्होंने आरोप लगाया कि, बिना किसी हाई प्रोफाइल संरक्षण के कोई भी विश्विद्यालय ऐसा करने का साहस नहीं जुटा सकता। निश्चित रूप से इसके पीछे और कई लोगों का हाथ है जिनपर कार्यवाही किया जाना अत्यंत आवश्यक है। बता दें की बलराम साहू सिवनिखुर्द का निवासी है। जिसे विश्वविद्यालय ने प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण घोषित कर दिया है।
केवल बीए तक की थी अनुमति
अभाविप ने कहा कि केन्द्रीय जेल द्वारा सिर्फ बीए तक पढ़ाई के लिए अनुमति दिया गया था, लेकिन साहू ने डिग्री पा लिया। उन्होंने कहा कि जब बलराम जेल में था तो उसकी उम्र 21 वर्ष थी। उसके बाद उसने छत्तीसगढ़ राज्य ओपन स्कूल से वर्ष 2010 में हाईस्कूल, 2012 में हायर सेकेण्डरी एवं 2013-2014 में प्रथम वर्ष एवं द्वितीय वर्ष पास किया, उसके बाद 2016 में बीए फाइनल किया। यहां तक तो ठीक है, क्योंकि इन परीक्षाओं में पार्टीसिपेट करने के लिए केन्द्रीय जेल की अनुमति थी, लेकिन आईएसबीएम विश्वविद्यालय से डीसीए की डिग्री (Fake Degree Scam) लेने की किसी प्रकार की अनुमति नहीं दी गई थी, फिर ये संभव कैसे हुए?
धड़ल्ले से चल रही है शिक्षा की कालाबजारी
दरअसल ये पूरा मामले का खुलासा RTI कार्यकर्ता संजय अग्रवाल (Fake Degree Scam) ने किया है। उन्होंने बताया कि शिक्षा की कालाबाजारी धड़ल्ले से चल रही है। उन्होंने कहा कि शिक्षा के स्तर को आगे तक ले जाने के लिए निजी विश्वविद्यालय संचालन की अनुमति दी जाती है। उन्हें सरकार से कई सुविधाएं, फंड दिया जा रहा है, परंतु दुर्भाग्य से उसका दुरुपयोग चुनिंदा लोग अपने हिसाब से कर रहे है। जो विद्यार्थी नियमित मेहनत कर परीक्षा दे रहा है, उनके लिए ये कदम भविष्य के साथ खिलवाड़ जैसा है।
रिहा के एक वर्ष पहले डिग्री…
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने जानकारी दिया कि, बलराम साहूू सिवनिखुर्द राजनांदगांव का निवासी है। 29 जनवरी 2004 को धारा 302/34बी के तहत राजनांदगांव कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। दस्तावेज के अनुसार जेल में बलराम को उसके अच्छे चाल-चलन के लिए 14 अगस्त 2019 को रिहाई कर दिया गया था।
बलराम साहू को 29 अगस्त 2018 को ही डीसीए (डिप्लोमा ऑफ कंप्यूटर एप्लिकेशन) का सर्टिफिकेट दे दिया गया था। यानि रिहा होने के सालभर पहले ही बलराम को डीसीए प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण कर दिया गया था।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जिला संयोजक अनंत सोनी ने कहा की फर्जी डिग्री के विषय पर गहराईयों में जाकर जांच पड़ताल होनी चाहिए। उन्होंने बताया की इस विषय का खुलासे के बाद जल्द से जल्द कार्यवाहीं होनी चाहिए।
अभविप गरियाबंद नगर मंत्री शैलेंद्र देवांगन ने कहा कि एक उम्र कैद की सजा काट रहे अपराधी को विश्वविद्यालय ने बिना प्रशासनिक अनुमति के प्रमाण पत्र कैसे जारी कर दिया? इस पर जांच कर दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए।
भीषेक पांडे ने कहा कि विश्वविद्यालय के खिलाफ कड़ी कार्रवाही की मांग लेकर गरियाबंद कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा।