Election Result : असल परीक्षा तो मतदाताओं की होगी

Election Result : असल परीक्षा तो मतदाताओं की होगी

Election Result: The real test will be that of the voters

Election Result

प्रेम शर्मा। Election Result : पांच राज्यों के चुनाव का परिणाम क्या होगा यह अभी से कहना गलत होगा। लेकिन इन पॉच राज्यों के चुनाव में उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम अगली केन्द्र सरकार का सेमी फाइनल अवश्य होगा। फि लहाल तो इन पॉच राज्यों के चुनाव में महंगाई, बेरोजगारी जैसे अहम मुद्दे गुम होकर चुनावी सभाओं में बुल्डोजर, तमंचा, गन्ना, दंगा, बहु बेटी की सुरक्षा ने जोर पकड़ लिया है।

चुनावी मैदान में अपराधियों एवं बाहुबलियों के साथ धनबल वालें प्रत्याशियों की उपस्थिति में देव तुल्य मतदाताओं के सामने एक तरफ कुंआ तो दूसरी तरफ खाई या यूकहे कि उन्हें लोकतंत्र की स्थापना के लिए अग्नि परीक्षा देनी होगी और वास्तव में देखा जाए तो यह चुनाव राजनैतिक दलों की नही बल्कि मतदाताओं की असल परीक्षा होगी।

अब लगभग इंतजार खत्म। अब परीक्षा की बारी आपकी है। क्योकि बार बार आरोप प्रत्यारोप लगाकर आम मतदाता अपने आप को बचा नही पााएगा। आपकी परीक्षा। हमारी परीक्षा…। चुनना हमें है। क्योंकि, ये चुनाव हमारे भाविष्य का है। वक्त की कसौटी पर खुद को परखिए, टटोलिए, क्योकि अब अगर-मगर का वक्त नही है।क्खुद से पूछिए, हमें क्या चाहिए ? बार-बार पूछिए ? खुद से सवाल इसलिए जरूरी है, क्योंकि यही सही फैसले की ओर ले जाएंगे।

राजनैतिक दल, समर्थक और नेता चुनावी महारथी अपना पाला तय करने में जुटे हैं। निष्ठा व नेतृत्व तेजी से बदले जा रहे हैं। कल तक जो इस पाले में थे, उस पाले में पहुंच गए हैं। पाला बदल के साथ सुविधाजनक चुनावी मुद्दे और मुहावरे भी गढ़े जाने लगे हैं। सत्ता के लिए जो उपलब्धि है, विपक्ष को उसी में विफ लता नजर आ रही है। जनता के जो मुद्दे नदारत नजर आ रहे है। एक फि र जातिवाद, क्षेत्रवाद, परिवारवाद से लेकर वही पुराने ढऱे पर चुनाव दिखाई पड़ रहा है।

ऐसे मेें दागी उम्मीदवार बनाम स्वच्छ चुनाव की अवधारणा (Election Result) को पूरा करने के लिए आममतदाताओं के लिए यह चुनाव असल में अग्नि परीक्षा के सादृश्य है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स यानी एडीआर की रिपोर्ट इसका प्रमाणम है। एडीआर की ताजा अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक, 10 फरवरी को उत्तर प्रदेश की जिन 58 विधानसभा सीटों पर मत डाले जाएंगे, वहां से कुल 623 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इसमें से 615 उम्मीदवारों के बारे में एडीआर को सूचनाएं मिली हैं। इन 615 प्रत्याशियों में से 156, यानी करीब 25 फीसदी उम्मीदवार दागी हैं। 121 पर तो गंभीर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं, जिनमें दोष सिद्ध होने पर पांच साल या इससे भी अधिक की सजा वाले गैर-जमानती जुर्म शामिल हैं।

यह आकड़ा तो पहले चरण का है आगे बहुत से और आकड़े सामनें आएगे और चौकाएंगे। दलों द्वारा भले ही राष्ट्रहित, देश हित और विकास, जनभावनाओं की कद्र करने का दावा किया जाए, मगर वास्तविकता यह है कि हर दल को जिताऊ प्रत्याशी के लिए धनबल, बाहुबल और अपराधियों से समझौता करना ही पड़ रहा है। भारतीय राजनीतिक व्यवस्था की शुचिता और स्वच्छता पर खतरा लगातार गहराता जा रहा है।

बेशक, कभी सार्वजनिक जीवन में बेदाग लोगों की वकालत की जाती थी, लेकिन अब यह आम धारणा है कि राजनेता और अपराधी एक-दूसरे के पर्याय हो चले हैं। एडीआर उत्तर प्रदेश के प्रमुख समन्वयक डॉक्टर संजय सिंह ने कहा कि एडीआर सिफारिश करता है कि राजनीतिक दल और समाज के सभी लोग लोकतंत्र में धनबल और बाहुबल के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए कारगर हस्तक्षेप करें। लेकिन ऐसा सम्भव नही हैै।

राजनैतिक दलों की अपनी मजबूरी है। विडंबना यह है कि हरेक सियासी पार्टी राजनीति के अपराधीकरण पर चिंता जाहिर करती है और इसे रोकने के दावे करती है, लेकिन जब चुनाव में टिकट बांटने का वक्त आता है, तब दागी छवि वाले प्रत्याशियों पर भरोसा किया जाता है। यही वजह है कि चुनाव-दर-चुनाव ऐसे सांसदों-विधायकों की संख्या बढ़ती जा रही है, जिन पर आपराधिक मामले चल रहे होते हैं। उत्तर प्रदेश में ही 2017 के विधानसभा चुनाव में जीतकर आए 402 विधायकों में से 143 (36 प्रतिशत) ने अपने चुनावी हलफनामे में खुद के ऊपर आपराधिक मामले चलने की बात कही, जबकि गंभीर आपराधिक मामलों का सामना करने वाले विधायकों की संख्या 107 थी, यानी विधानसभा सदस्यों का 26 प्रतिशत थी।

अब 2012 की राज्य विधानसभा में ये आंकड़े क्रमश: 47 प्रतिशत (189 विधायक दागी छवि वाले) और 24 प्रतिशत (98 विधायक गंभीर मामलों में आरोपी) थे। एडीआर की ही रिपोर्ट बताती है कि संसद के निचले सदन में दागी छवि वाले सांसदों की मौजूदगी हर चुनाव में बढ़ रही है। मौजूदा लोकसभा के लिए 2019 में जीतने वाले 539 सांसदों में से 233, यानी 43 प्रतिशत सदस्यों ने खुद पर आपराधिक मामले होने की जानकारी दी है, जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में 542 विजेताओं में से 185 दागी चुनकर आए थे।

2009 के लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा 30 प्रतिशत (543 सांसदों में से 162) था। यानी, 2009 से 2019 तक आपराधिक छवि वाले सदस्यों की लोकसभा में मौजूदगी 44 फीसदी बढ़ गई थी। इसी तरह, गंभीर आपराधिक मामलों में मुकदमों का सामना करने वाले सांसदों की संख्या 2009 में 76, 2014 में 112 और 2019 में 159 थी, यानी 2009 से 2019 तक इसमें 109 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। अब ऐसे में महंगाई व बेरोजगारी से जनता जार-जार है।

पांच साल पहले के मुकाबले नमक, आलू, प्याज, आटा, सरसों तेल और रसोई गैस के बढ़े दाम जनता के बीच मुद्दा हैं। 12 रुपये प्रति लीटर दाम घटाए जाने के बावजूद पेट्रोल व डीजल की तुलना पिछले चुनाव (Election Result) से की जा रही है। जनता की ट्रेन कही जाने वाली कई पैसेंजर ट्रेनें बंद हो गईं और बढ़ा बस का किराया भी याद दिलाया जा रहा है। सत्ता की ओर से तमाम सड़कें, पुल, हाईवे बनाने के दावे हैं तो विपक्ष खराब व जर्जर सड़कें दिखा रहा है। कर्मचारियों की 2005 में पुरानी पेंशन बंद हो गई। नई पेंशन वाली पीढ़ी बुढ़ापे के असुरक्षा बोध से परेशान है।

आउटसोर्सिंग की नौकरियों में शोषण का मुद्दा भी है। मगर, चुनाव में इन मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पा रही है। हालांकि, लुभावने वादों की बौछारे शुरू है। आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है। ऐसे मेंं अगर आप एक ईमानदार, स्वच्छ और साफ सुथरे चरित्र वालें, कमजोर और धनविहीन,दलगत,जातिगत,क्षेेत्रगत विहीन प्रत्याशी की जीत का संकल्प ले सके तो वही असल मतदान, कर्तव्यनिवर्हन और देश के बेहतर लोकतंत्र की शुरूआत होगी।

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