संपादकीय: फिर निशाने पर चुनाव आयोग

संपादकीय: फिर निशाने पर चुनाव आयोग

Election Commission on target again

Election Commission on target again

Election Commission on target again: हरियाणा विधानसभा चुनाव में हार के सदमें से कांग्रेस पार्टी अभी तक नहीं उबर पाई है। जबकि वहां भाजपा की सरकार बन गई। उसने अपना काम भी शुरू कर दिया है।

किन्तु कांग्रेस पार्टी इस हार को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं है। हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद से वह इस जनादेश को नकार रही है। इसके लिए चुनाव आयोग को ही जिम्मेदार ठहरा रही है।

कांग्रेस के नेताओं ने चुनाव आयोग से इस बारे में शिकायत की थी। जिसकी जांच के बाद चुनाव आयोग ने इन शिकायतों को सिरे से ही नकार दिया था और कांग्रेस आलाकमान को एक पत्र लिखकर चुनाव आयोग ने इस बात पर कड़ी आपत्ति की थी कि चुनाव आयोग पर बेबुनियाद आरोप लगाना उचित नहीं है।

इसलिए कांग्रेस को ऐसी प्रवृत्ति से परहेज करना चाहिए। चुनाव आयोग का पत्र मिलने के बाद कांग्रेस नेताओं ने एक बार फिर चुनाव आयोग पर जमकर निशाना साधना शुरू कर दिया है।

यही नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी ने चुनाव आयोग के पत्र की भाषा शैली पर आपत्ति उठाते हुए चुनाव आयोग को चेतावनी भी दे दी है कि वो इस मामले को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी।

दरअसल कांग्रेस पार्टी हरियाणा में हुई अपनी पार्टी की हार के कारणों का सच स्वीकारने के लिए तैयार ही नहीं है। हरियाणा कांग्रेस के नेता ही इस हार के लिए एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ रहे हैं और यह बात किसी से छिपी नहीं है कि हरियाणा में कांग्रेस की गुटबाजी ही उसे ले डूबी है।

हरियाणा में दस साल के भाजपा शासनकाल में जो सत्ता विरोधी लहर पैदा हुई थी । उसे देखते हुए हरियाणा में कांग्रेस की जीत सुनिश्चित मानी जा रही थी।

तमाम खबरिया चैनलों ने भी अपने एग्जिट पोल में हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनने का पूर्वानुमान व्यक्त किया था। किन्तु जब चुनाव परिणाम घोषित हुए तो कांग्रेस अपनी जीती हुई बाजी हार गई।

वैसे सिर्फ ५-७ सीटें इधर से उधर हो जाती तो हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बन गई होती। तात्पर्य है कि हरियाणा में कांग्रेस का प्रदर्शन इतना भी खराब नहीं था यदि हरियाणा में कांग्रेस पार्टी गुटबाजी और अंतर्कलह का शिकार नहीं होती तो आज हरियाणा में कांग्रेस सत्ता पर काबिज होती।

हरियाणा में कांग्रेस की हार के लिए जो नेता जिम्मेदार हैं उनके खिलाफ कार्यवाही करने की जगह कांग्रेस पार्टी चुनाव आयोग के पीछे ही पड़ी हुई है। जाहिर है ऐसी स्थति में चुनाव आयोग भी बेबुनियाद आरोप लगाने वाली पार्टी के खिलाफ कड़ी टिप्पणी जरूर करेगा।

बेहतर होगा कि कांग्रेस पार्टी अपने पराजय के कारणों की समीक्षा करें और उन कमजोरियों को दूर करें। ताकि महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव में वह बेहतर प्रदर्शन कर सके। यह समय बीती ताही बिसार कर आगे की सुध लेने की है।

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