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Election Commission : अब आएगा ऊंट पहाड़ के नीचे

Election Commission: Now the camel will come under the mountain

Election Commission

Election Commission : चुनाव आयोग ने तमाम राजनीतिक पार्टियों को एक परीपत्र जारी उनसे इस बात पर उनके विचार मांगे है कि क्या वे चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित फार्म को भरने के लिए सहमत है या नहीं। चुनाव आयोग ने प्रत्येक प्रत्याशी के लिए यह नियम अनिवार्य करने का प्रस्ताव किया है कि उस राज्य के आर्थिक संसाधन कैसे है राज्य की वित्तीय स्थिति कैसी है उस राज्य में कितने का कर्ज है और जो राजनीतिक पार्टियां चुनाव के दौरान मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली लोक लुभावन घोषणाएं करती है उसके लिए फंड कहा से आएगा।

जाहिर है चुनाव आयोग (Election Commission) ने सभी राजनीतिक दलों को एक ऐसे पत्र के रूप में जारी किया है जिससे बचकर निकल पाना उनके लिए मुश्किल है। यदि वे ऐसा फार्म भरने के लिए सहमत नहीं होते तो मतदाताओं के सामने उनकी पोल खुल जाएगी और यदि वे सहमत होते है तो इन नियमों का पालन करना उनके लिए असंभव की हद तक कठिन काम सिद्ध होगा।

गौरतलब है कि राजनीतिक पार्टियों ने वोट कबाडऩे के लिए मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली घोषणाओं की भीड़ लगा रखी है। जिनके कारण उन्हें वोट भी मिल जाते है। आम आदमी पार्टी इसका ज्व्लंत प्रमाण है जिसने नई दिल्ली में मुफ्त बिजली पानी और महिलाओं के लिए नि:शुल्क बस यात्रा जैसी कई लोक लुभावन घोषणाएं की और इसी वजह से आम आदमी पार्टी को नई दिल्ली में प्रचंड बहुमत हासिल हुआ।

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली मॉडल को पंजाब में भी लागू किया और वहां भी आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज कर दी है। अब वह गुजरात में भी यही फार्मुला लागू करने की घोषणा कर रही है। आम पार्टी की देखदेखी अन्य पार्टियां भी ऐसी लोक लुभावन घोषणाएं करती है और सफलता भीअर्जीत करती है। यह सीधे-सीधे वोटों की खरीद फरोख्त का मामला बनता है। लेकिन चुनाव आयोग राजनीतिक पार्टियों की इस दरियादिली पर रोक लगाने में विफल रहा था।

लेकिन जब सुप्रिम कोर्ट ने चुनाव आयोग (Election Commission) और केन्द्र सरकार को निर्देश दिया कि वे मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली घोषणाओं पर रोक लगाने कारगर पहल करे तो चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक पार्टियों को परिपत्र जारी कर दिया है। अब आएगा ऊंट पाहड़ के नीचे।

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