Economic Development : वित्तीय समावेशन-एक सफरनामा |

Economic Development : वित्तीय समावेशन-एक सफरनामा

Economic Development : Financial Inclusion - A Journey

Economic Development

अजय सेठ। Economic Development : समाज के कमजोर एवं कम आय वाले वर्गों जैसे बेसहारा तबकों को वित्तीय सेवाओं के साथ-साथ उनको समय पर और किफायती दरों पर पर्याप्त मात्रा में क्रेडिट सुलभ कराने को दुनिया-भर में आर्थिक विकास और गरीबी उन्मूलन की दिशा में एक प्रमुख प्रेरक तत्व माना जाता है। यदि समाज के कमजोर तबकों की पहुंच औपचारिक वित्त तक हो तो इससे रोजगार पैदा करने की गति को बल मिलेगा, आर्थिक आघात लगने की संभावना कम हो सकती है और इससे मानव पूंजी में किए जाने वाले निवेशों में भी इजाफा होगा। संयुक्त राष्ट्र के सत्रह सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में से सात लक्ष्यों में वित्तीय समावेशन को एक ऐसे सक्षमता कारक तत्व के रूप में शामिल किया गया है जिसकी बदौलत समाज के गरीब एवं उपेक्षित तबकों के जीवन स्तर में सुधार लाया जा सकता है।

वर्ष 2010 में जी-20 के देशों ने वित्तीय समावेशन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए वैश्विक स्तर (Economic Development) पर भागीदारी (जीपीएफआई) की जरूरत पर अपनी सहमति व्यक्त की थी जिसका उद्देश्य वित्तीय समावेशन पर आधारित एक संवाद शुरू करना था जिसके केंद्र में वंचित एवं जरूरतमंद लोग, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम हों। वर्ष 2011 में, जी-20 के नेताओं ने विप्रेषण की लागत को कम करने के मुद्दे परअपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित की थी।वर्ष 2016 में डिजिटल वित्तीय समावेशन (डीएफआई) के संबंध में कुछ उच्चस्तरीय सिद्धांतों की रचना की गई थी ताकिउनसे मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए सभी देश डिजिटल परिवर्तन के अपने मार्ग पर आगे बढ़ सकें। जीपीएफआई वित्तीय ग्राहक संरक्षण और वित्तीय साक्षरता के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुएडिजिटल वित्तीय समावेशन को सुविधाजनक बनाने और लघु और मध्यम उद्यमों को वित्त के विकल्प मुहैया कराने की दिशा में निरंतर प्रयास कर रहा है।

वित्तीय समावेशन का अभियान प्रत्येक देश में अपनी तरह सेसबसे अलग किस्म का रहा है, जिसेउस देश की राष्ट्रीय प्राथमिकताओं, सुधारों को लागू करने की उसकी संस्थागत क्षमता, वित्तीय बाजारों का विकास, भुगतान के बुनियादी ढांचे, वित्तीय क्षमता और वे सांस्कृतिक मान्यताएंरूपाकार देती हैं जिनसे लोगों का वित्तीय व्यवहार तय होता है। भारत मेंवित्तीय समावेशन की नीतियों के अंतर्गत बैंक शाखा नेटवर्क के विस्तार को उन क्षेत्रों तक ले जाना जहां बेंकिंग एवं वित्तीय सेवाएं नहीं पहुंची हैं या सीमित दायरों तक पहुंची हैं, समाज के ऐसे वर्गों को ऋण प्रवाह प्रदान करना जो क्रेडिट बाजारों की ऋण सुविधाओं से वंचित रह गए हैं, अग्रणी बैंक योजना का शुभारंभ, स्वयं सेवी समूहों और संयुक्त देयता समूहों (जेएलजी) को बढ़ावा देना, किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) और बुनियादी बचत बैंक जमा खातों (बीएसबीडीए) की शुरुआत करना शामिल हैं जिसका उद्देश्यव्यापार प्रतिनिधियों के माध्यम से अंतिम व्यक्ति तक वित्तीय सेवाएंपहुंचाना है।

प्रधान मंत्री जनधन योजना (पीएमजेडीवाई) कार्यक्रमका शुभारंभ एक ऐतिहासिक क्षण था जिसेप्रत्येक हाउसहोल्ड को और उसके बाद बैंकिंग सुविधाओं से रहित प्रत्येक वयस्क व्यक्ति को बैंक खातों तक पहुंच प्रदान करने के लिए प्रारंभ किया गया था। पीएमजेडीवाई की घोषणा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2014 को अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में की थी। 28 अगस्त 2014 को कार्यक्रम की शुरुआत करते हुएप्रधानमंत्री ने गरीबों के लिए इस अवसर को गरीबी के दुष्चक्र से मुक्ति का जश्न मनाने के उत्सव के रूप में वर्णित किया था।

इस पहल को आगे बढ़ाते हुए, जेएएम (जनधन, आधार और मोबाइल) की त्रयी ने वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव किया और सुविधाजनक, सुरक्षित, संरक्षित, पारदर्शी और किफायती तरीके से डिजिटल भुगतान को सर्वव्यापी बनाने के काम को सुगम बनाया। महामारी के दौरान जेएएम ईको-सिस्टम की सुदृढ़ता का परीक्षण हो गया था, जब 54 मंत्रालयों की 319 सरकारी योजनाओं के तहत 5.53 लाख करोड़ की धनराशि प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के माध्यम से कमजोर वर्गों को समय पर राहत के रूप में प्रदान की गई थी। जेएएम इको-सिस्टम के आधार पर देश ने लैंगिक अंतर को पाटने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ाए हैं। पिछले एक दशक में महिलाओं की जमा राशि पुरुषों की तुलना में तेजी से बढ़ रही है।

समग्र प्रणाली के स्तर पर वित्तीय समावेशन, वित्तीय साक्षरता और उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय क्षेत्र के सभी नियामकों द्वारा समन्वित दृष्टिकोण अपनाए जाने के संबंध में एक रोड मैप प्रदान करने के उद्देश्य से वित्तीय समावेशन हेतु राष्ट्रीय कार्यनीति (एनएसएफआई) 2019-24 और वित्तीय शिक्षण हेतु राष्ट्रीय कार्यनीति (एनएसएफई): 2020-25 की शुरुआत की गई है। भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा एक वित्तीय समावेशन (एफआई) सूचकांक विकसित किया गया है जो वित्तीय सेवाओं के सुरक्षित और संरक्षित उपयोग में सुधार और सतत वित्तीय समावेशन की उपलब्धि की गुणवत्ता में सुधार के लिए समावेशन प्रयासों के मांग पक्ष पर अधिक से अधिक केंद्रित कार्रवाई की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

भारत सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यमों (एमएसएमई) को नकदी प्रवाह-आधारित उधार सहित ऋण देने के लिए डिजिटल सहमति के आधार पर वित्तीय डेटा साझा करने हेतु भारत एक विश्व स्तरीय भुगतान अवसंरचना विकसित करके, यूपीआई, आधार, जीएसटीएन, डिजिटल कॉमर्स के लिए ओपन नेटवर्क (ओएनडीसी) और डिजिटल की सुविधा के लिए अकाउंट एग्रीगेटर्स (एए) जैसे डिजिटल बुनियादी ढांचे का लाभ उठाकर ‘लास्ट माइल कनेक्टिविटी’ की समस्या को दूर करने में अग्रणी देश रहा है। डिजिटलीकृत भूमि अभिलेखों को एकीकृत करने वाले फिनटेक सल्युशन्स किसानों को सुचारु रूप से ऋण की सुविधा प्रदान करते हैं। ग्राहकों की डिजिटल ऑनबोर्डिंग को बढ़ावा (Economic Development) देने के लिए वीडियो आधारित ग्राहक पहचान प्रक्रिया (वी-सीआईपी) शुरू की गई है।

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