16 मार्च से लेकर 6 जून तक आचार संहिता में देश के राईस मिलरों ने कमाए अरबो रुपए, 3 एजेंसियों ने OMSS योजना को लगाया पलीता

16 मार्च से लेकर 6 जून तक आचार संहिता में देश के राईस मिलरों ने कमाए अरबो रुपए, 3 एजेंसियों ने OMSS योजना को लगाया पलीता

During the code of conduct from 16 March to 6 June, the country's rice millers earned billions of rupees. Three agencies sabotaged the OMSS scheme.

code of conduct rice millers earned billions of rupees

-नाफेड, एनसीसीएफ और केन्द्रीय भंडार पूरे देश में करने वाली वितरण

प्रमोद अग्रवाल

रायपुर/नवप्रदेश। code of conduct rice millers earned billions of rupees: देश में बढ़ती हुई महंगाई लोकसभा चुनाव जीतने में बाधक होगी यह जानकर भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार ने एक फरवरी 2024 को खुला बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत पूरे देश में आम आदमी को 29 रुपए किलो के हिसाब से चावल उपलब्ध कराने की योजना बनाई थी। जिसके तहत केन्द्र सरकार की तीन एजेंसियों द्वारा पूरे देश में चावल और आटा आम आदमी को सस्ती दर पर मिल सके और उस पर महंगाई का असर न पड़े और इस लालच में वह फिर से सरकार के पक्ष में मतदान करें।

इस उद्देश्य के साथ बनाई गई। यह योजना चुनाव घोषणा के ठीक 38 दिन पहले लागू की गई थी। लेकिन चुनाव घोषणा के बाद लगी आचार संहिता का लाभ उठाते हुए केन्द्र की एजेंसियों द्वारा देश के बड़े राईस ब्रोकर और देश के सभी छोटे-बड़े राईस मिलर्स ने इस योजना को पलीता लगा दिया।

छोटे-बड़े राईस मिलर्स और सरकार की एजेंसिया मालामाल हो गई

सरकार को चावल यदि उपभोक्ता को मिलता तो जो चुनाव परिणाम आए है वह निश्चित रूप से ऐसे नहीं होते जो दिख रहे हैं। लेकिन इस योजना से सरकार को क्या फायदा हुआ और उपभोक्ता को क्या फायदा हुआ, यह तो नहीं मालूम लेकिन इस योजना से देश के सभी छोटे-बड़े राईस मिलर्स और सरकार की एजेंसिया मालामाल हो गई। योजना आज भी जारी है और भ्रष्टाचार का खेल बदस्तूर जारी है। यदि सरकार ईमानदारी से इस मामले की जांच करा ले तो किसानों की मेहनत से उपजे धान और उससे बने चावल से घोटाले का एक बड़ा मामला सामने आ सकता है।

एफसीआई में संग्रहित चावल खुले बाजार में देने का निर्णय

केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने 6 फरवरी 2024 को खुला बाजार बिक्री योजना के तहत चावल बांटने की घोषणा की थी। इसके पहले सरकार भारत आटा और भारत दाल नाम से सस्ती दरों पर अनाज पहले भी उपलब्ध करा रही थी। तब तक इस योजना के अच्छे परिणाम इसलिए मिल रहे थे क्योंकि पूरे देश में आटा सरकार के द्वारा नहीं लिया जाता है और जिन राज्यों में दालों की लेवी ली जाती है वो राज्य बहुत कम है।

इसी का लाभ उठाने के चक्कर में चावल योजना भी लागू की गई और 18 रुपए 60 पैसे लगभग की दरों पर एफसीआई में संग्रहित चावल खुले बाजार में देने का निर्णय लिया गया। इस चावल को 10 किलो और पांच किलो की पैकिंग में बेचा जाना था। इसे पूरे देश में वितरण करने के लिए नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (नाफेड), भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ (एनसीसीएफ), तथा केन्द्रीय भंडार को अधिकृत किया गया। ये तीनों एजेंसियां केन्द्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह के अंतर्गत आती है।

अपनी राइस मिलो का ब्रांड लगाकर पुन: एफसीआई को सौप दिया

इन तीनों एजेंसियों ने सरकार से मिलने वाले चावल को आम उपभोक्ताओं तक पहुंचने वाले राशन दुकानों, खुले बाजार के विक्रेताओं, पंचायतों, स्थानीय निकायों का सहारा नहीं लिया और यह सारा चावल राईस मिलर्स को देना शुरू किया और यहीं से बात बिगड़ गई। राइस मिलो को इस चावल की ट्रांसपोर्टिंग के माध्यम से अपने मिलो में ले जाने दिया गया और उसे पांच और दस किलो के पैकेट बनाकर वितरण किया जाना था।

लेकिन राइस मिलो ने इसका वितरण नहीं किया। चूंकि ऐसा ही चावल उन्हें सरकार से मिलने वाले धान को कूट कर एफसीआई को देना होता है। तो उन्होंने मौके का फायदा उठाकर उस चावल की पैकिंग तो बदली बजाय पांच और दस किलो की पैकिंग बनाने की जगह अपनी राइस मिलो का ब्रांड लगाकर पुन: एफसीआई को सौप दिया। इस रिसाइकिलिंग के खेल में देश के राईस मिलरो ने अरबो रुपए का वारा न्यारा कर लिया।

सरकार से मिलने वाले धान को खुले बाजार में बेचकर करोड़ों का लाभ कमाया। सरकार इसलिए मामले की रोकथाम नहीं कर पाई क्योंकि इस दौरान 16 मार्च से लेकर 6 जून तक आचार संहिता लगी हुई थी और देश में चुनाव चल रहे थे। निगरानी करने वालों का अभाव था और चुनाव जीतने की प्रत्याशा: में इस घोटाले को होने दिया गया।

मामले की निपक्ष जांच हो तो खुलेगा बड़ा चावल घोटाला

सरकार अगर इस मामले की निपक्ष जांच करे तो इस चावल घोटाले का आसानी से पता लगाया जा सकता है क्योंकि जिस ट्रांसफोर्ट एजेंसियों ने जहां-जहां माल डिलेवर किया है उन राईस मिर्लरों का पता लगाना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है और फिर उन्होंने किन किन एजेंसियों के जरिए माल बंटवाया है ये पता करना कोई मुश्किल काम नहीं है।

जिस तरह नोटबंदी के दौरान गरीबों के आधार कार्ड की फोटो कापियां रखकर अमीर अपने नोट बदलते थे उसी तरह फर्जी आधार कार्ड का डाटा निकालकर यह चावल बटवाया गया। अगर जांच हुई और उन आधार कार्ड के धारकों तक एजेसिंया पहुंच सकी तो उसे पता चलेगा कि 90 प्रतिशत आधार कार्ड धारकों ने वह चावल लिया ही नहीं है।

लगातार हो रहे मालामाल

धान की एमएसपी कब बढ़ेगी और धान का किसान कब मालामाल होगा यह तो कोई नहीं जानता, लेकिन इस धान का चावल बनाने वाले, धान पर राजनीति करने वाले और प्रशासनिक व्यवस्था करने वाले लगातार मालामाल हो रहे हैं।

JOIN OUR WHATS APP GROUP

डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *