Durg News : ढाई साल में तीसरी बार हो रहा महापौर कक्ष का जीर्णोद्धार
दुर्ग/नवप्रदेश। बीस वर्षों के बाद नगर निगम पर काबिज हुई कांग्रेस ने शहर में नागरिक सुविधाओं का बेड़ा गर्क कर दिया है। इसे अनुभवहीन व्यक्ति को महापौर बनाने का खामियाजा (Durg News) कहें या फिर अनुभवी विधायक की बाजीगरी, कि शहर भले ही मूलभूत सुविधाओं को तरसता रहे लेकिन श्रेय लेने, ढिंढोरा पीटने की राजनीति से कोई बाज (Durg News) नहीं आएगा।
कोई भी विकास कार्य शुरू हो तो आगे आकर अपनी वाहवाही करने से न चूकें और जब शहर के नागरिक परेशान हों तो उसकी वजह भाजपा की पिछली सत्ता को बता दिया जाए। ढाई साल से ज्यादा वक्त हो गया, लेकिन स्थानीय महापौर जी-हुजुरी करने और नेताजी के यहां हाजिरी लगाने से बाहर नहीं निकल पाए। इस पर भी महापौर को आपत्ति है कि उन्हें अनुभवहीन (Durg News) कहा जाता है।
किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि का प्रथम दायित्व होता है कि क्षेत्र के नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं बदस्तूर मिलती रहें। ढाई साल के अपने कार्यकाल में दुर्ग के महापौर धीरज बाकलीवाल ने इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया। पीडब्ल्यूडी में जिस तरह से ठेके बांटे जा रहे हैं, उससे पूरे शहर में महापौर और उनकी पूरी परिषद की किरकिरी हो रही है, क्योंकि पूरे शहर में स्तरहीन काम हो रहा है।
अतिक्रमण के नाम पर सिर्फ गरीबों को बेदखल किया जा रहा है। जिस तरह से घंटेभर की बारिश में शहर लबालब हो रहा है, उसने स्वास्थ्य विभाग की भी पोल खोलकर रख दी है। जलगृह विभाग की पेयजल संबंधी तमाम योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है। कर्मशाला विभाग में जिस तरह से खड़ी गाडिय़ों में डीजल भरवाकर लाखों रूपयों का खेल खेला जा रहा है, वह भी छिपा हुआ नहीं है।
इसे बीच का पैसा खाने का चक्कर कहें या फि र अंधा बांटे रेवड़ी… किन्तु हकीकत यही है कि महापौर पीडब्ल्यूडी, कर्मशाला, बाजार, राजस्व, स्वास्थ्य और जलगृह विभागों की तरफ पीठ किए बैठे हैं ताकि इन विभागों के प्रभारी मनमानी लूट मचा सकें। जब लूट मचेगी तो शहर का कबाड़ा होना तो तय ही है। फि र आप चाहे स्वयं को अनुभवी साबित करने कितनी ही ऐडी-चोटी एक कर लें।
कहते हैं कि व्यापारी रेगिस्तान में भी जाता है तो वहां भी रेत से मोती निकालने की जुगत में रहता है। दुर्ग में भी ऐसा ही हो रहा है। लम्बे समय से शहर में सिर्फ फीता काटने का ही खेल चल रहा है। महापौर धीरज के इस कार्यकाल में बड़ी-बड़ी बातें तो खूब हुई, किन्तु कोई भी बड़ा काम पूरा नहीं हो पाया। महापौर को यह तो जरूर बताना चाहिए कि इन ढाई वर्षों में उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है?
महापौर कक्ष या सड़क छाप होटल : भले ही महापौर धीरज बाकलीवाल राजनीतिक रूप से अपरिक्व हों, किंतु उन्होंने अपने राजनीतिक आका से मीडिया के जरिए जनता को बेवकूफ बनाने की कला में जरूर महारत हासिल की है। अपनी छवि चमकाने के लिए एक ब्रांड एम्बेसडर टाइप का व्यक्ति भी बाकायदा तनख्वाह पर रखा हुआ है (यह समाचार फि र कभी)। खबर है कि स्वयं को अनुभवी साबित करने के लिए उन्होंने जतन भी करने शुरू कर दिए है। जाहिर है मीडिया के मार्फ त।
बताते हैं कि महापौर एकाध घंटे के लिए नगर निगम स्थित अपने कक्ष में आकर बैठते हैं तो वहां समोसे-कचोरियों की महफि ल शुरू हो जाती है। गोया यह महापौर का कक्ष न होकर किसी सड़क-छाप होटल का कमरा हो। खाने-पीने का फ रमायशी कार्यक्रम भी यहीं चलता है। अब उसी कक्ष का तीसरी बार जीर्णोद्धार कराया जा रहा है।
जनता के लिए पैसे नहीं और अपने लिए फि जूलखर्ची : धीरज बाकलीवाल के महापौर बनने के बाद यह तीसरा अवसर है, जब उनके कक्ष को पुनरोद्धार हो रहा है। क्या किसी स्थानीय सत्ता के मुखिया को यह अधिकार है कि वह अपने एक ही कार्यकाल की आधी अवधि में तीन-तीन बार अपने कक्ष पर लाखों रूपयों का बेजा व्यय करे? कुछ लोग इसे मरम्मत मद से व्यय किया जाना बता रहे हैं,
लेकिन पूरी तरह से सुव्यवस्थित कक्ष में तोडफ ोड़ कर चमचमाती टाइल्स को निकालकर, बिजली का नया कनेक्शन करवाने और नए एयर कंडीशनर लगाने, प्रकाश व्यवस्था के नए इंतजाम करने से लेकर रंगाई पोताई तक के तमाम कार्य तब हो रहे हैं, जब नगर निगम के कई दफ्तरों में बरसाती पानी टपक रहा है। कई कक्षों में बैठने के लिए कुर्सियां तक नहीं है। ऐसे में सिर्फ अपने कक्ष में लाखों रूपयों की फिजूलखर्ची करना कई सवालों को जन्म देती है। गौरतलब है कि मरम्मत मद से पिछले ही दिनों नए कमिश्नर प्रकाश सर्वे के कक्ष का भी जीर्णोद्धार कराया गया था।