Disaster : प्रकृति के साथ खिलवाड़ का दुष्परिणाम
Disaster : देश के अधिकांश राज्यों में इस बार अतिवृष्टि के कारण भयावह हालात निर्मित हो रहे है। जहां एक ओर महाराष्ट्र में भारी बारिश के कारण जगह जगह जल भराव हो रहा है और नदी नाले उफान पर आ गए है वहीं उत्तराखण्ड में हिमस्खलन के कारण कोहराम मच गया है, कमोबेश यही स्थिति देश के आधे राज्यों की है।
दरअसल प्रकृति के साथ खिलवाड़ का ही यह दुष्परिणाम है कि कभी सूखा तो कभी बाढ़ के हालात निर्मित होते है जिसकी वजह से बड़ी जनहानी और धनहानी होती है। यह ठीक है कि कुदरत के कहर (Disaster) के सामने आदमी की कोई बिसात नहीं है लेकिन यदि हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना बंद करें तो काफी हद तक प्रकृति के प्रकोप से बचा जा सकता है किन्तु कांक्रीट के जंगल उगाने के लिए तेजी से वनों को काटा जा रहा है, पहाड़ों की भी खनिज के नाम पर अंधाधुंध खुदाई की जा रही है और धरती के सीने में छेद कर के भूजल का भी बड़ी मात्रा में दोहन किया जा रहा है।
कुदरत के साथ विकास के नाम पर जो खिलवाड़ किया जा रहा है उसका प्ररिणाम तो हमें भुगतना ही पड़ेगा। रही बात प्राकृतिक आपदा के समय स्थिति से निपटने की तो इसके लिए भी हमें अपनी आपदा प्रबंधन नीति में आमूल चूल परिवर्तन करना होगा। प्यास लगने पर ही कुआं खोदने की प्रवृत्ति को त्यागना होगा। दुनिया के अन्य देशों में भी जब तब कुदरत का कहर टूटता है लेकिन वे ठोस आपदा प्रबंधन नीति के कारण स्थिति पर जल्दी काबू पा लेते है।
जबकि हमारे देश में प्रभावितों तक मदद पहुंचने में ही लंबा वक्त लग जाता है। हर बार सेना को ही मोर्चा संभालना पड़ता है। कुदरत (Disaster) के कहर से बचने के लिए यह आवश्यक है कि आपदा प्रबंधन नीति को प्रभावी बनाया जाएं और आधुनिक टेक्नोलॉजी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जाएं तभी हम भविष्य में प्राकृति आपदाओं से काफी हद तक बच पाएंगे। इसके साथ ही विकास के नाम पर जंगलों का विनाश भी तत्काल रोका जाएं अन्यथा आगे भी हमें इसी तरह कुदरत के कहर का सामना करना पड़ेगा और व्यापक हानी उठानी पड़ेगी।