कोरोना काल में डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सार्थक हो रही शास्त्रीय नृत्य प्रतियोगिता
Digital Classical Dance : ई-मंच व जयंतिका ने बनाया रास्ता आसान
रायपुर/नवप्रदेश। Digital Classical Dance : कोरोना काल ने हमें ‘डिजिटल’ की राह को और आसान कर दिया हैं। अब तमाम सोशल मिडिया पर ऑनलाइन कक्षाएं, सर्टिफिकेट कोर्स, कार्यशालाएं, वेबिनार, व्याख्यान के साथ ही शास्त्रीय नृत्य और संगीत के क्षेत्र को भी डिजिटल मंच ने अंगीकार कर लिया है। जिनमें से कुछ नि:शुल्क हैं और कुछ फीस पर आधारित भी हैं, जो व्यवसाय के तौर पर देखे जाते हैं।
डिजिटल मंच पर हिंदुस्तानी शास्त्रीय नृत्य
हिंदुस्तानी शास्त्रीय नृत्य को बढ़ावा देने एवं कलाकारों को मंच प्रदान करने के उद्देश्य से “ईमंच” एवं जयन्तिका के संयुक्त तत्वाधन में वैश्विक स्तर पर ओडीसी नृत्य प्रतियोगिता (Digital Classical Dance) का आयोजन किया गया है। जिसमें ना की सिर्फ़ भारत से बल्कि पूरे विश्व से ओडीसी कलाकारों ने अपनी रूचि और उत्साह दिखाते हुए काफ़ी संख्या में पंजीयन करवाया था। कुल 120 प्रतिभगियों को उनकी नृत्य प्रतिभा के आधार पर स्क्रीनिंग की गई और द्वितीय लेवल के प्रतिस्पर्धा के लिए चुना गया है। इस प्रतिस्पर्धा को 4 चरणों में किया जाना है, जिस पर विस्तृत चर्चा, ओडीसी नृत्य की बारीकियों एवं प्रतिभागियों को उनके सवालों के समाधान के लिए रविवार को ईमंच एवं जयन्तिका द्वारा कार्यशाला का आयोजन किया गया था।
इस कार्यशाला में ओडीसी नृत्य के महान कलाकार पद्मश्री गुरु मायाधर राउत, गुरु मायाधर राउत की पुत्री एवं शिष्या मधुमिता राउत एवं पद्मश्री गुरु कुंकुम मोहंती के शिष्य ओडीसी गुरु लकी मोहंती ने अपने व्याख्यान एवं कलाकारों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से नृत्य की बारीकियों से अवगत कराया।
कार्यशाला में ओडिसी नृत्य के पद्मश्री गुरु मायाधर राउत ने मुख्य वक्ता के रूप में अपने 8 दशकों के ओडिसी नृत्य के अनुभव को साझा किया। ओडिसी नृत्य को संहिताबद्ध करने के लिए 1950 के दशक के अंत में बनाई गई महरी परंपरा और जयन्तिका संस्था पर उन्होंने विस्तार से जानकारी दी,जो सभी कलाकारों के लिए अकल्पनीय रहा। पद्मश्री गुरु मायाधर राउत ओडीसी के मुख्य गुरुओं में से एक हैं जिन्होंने ओडिसी को फिर से जीवंत किया और इसे शास्त्रीय नृत्य का दर्जा दिलाया है।
गुरु मायाधर राउत जी ने महरी प्रथा के मामले में विस्तृत जानकारी साझा करते हुए बताया की युवतियों को (आठ या नौ साल की उम्र के आसपास) आम तौर पर दो तरह से महरी बनाया जाता था। एक मार्ग मंदिर सेवा में शुरू किया गया था। उन्हें या तो उनके परिवारों द्वारा भक्ति के रूप में समर्पित किया जाता था, और दूसरा मार्ग बड़ी महरियों द्वारा उनकी बेटियों के रूप में अपनाया जाता था।
नई महरी को राजगुरु (राजा के दरबार से शिक्षक) के द्वारा शिक्षा दिया जाता था और औपचारिक तौर पर मंदिर सेवा में प्रवेश करने की तैयारी में संगीत और नृत्य में प्रशिक्षित किया जाता था, जहां वह चार प्रकार के महरी सेवाओं में से एक सेवा करती थीं। भीतर गौनी (भीतरी क्वार्टर में गाने वाले) में से एक का प्रदर्शन करेगी, बहारा गौनी (जो बाहर गाते थे), नचुनी (नर्तक,जो गर्भगृह के बाहर प्रदर्शन करते थे) और पथुआरिस (जो धार्मिक त्योहारों और समारोहों में प्रदर्शन करते थे)।
गुरु मधुमिता राउत ने ओडिसी नृत्य (Digital Classical Dance) के इतिहास एवं तकनीकी विषय पर व्याख्यान दिए और बैराग राग में एक छोटी पल्लवी की शिक्षा दी। कार्यशाला में गुरु लकी मोहंती ने अरसा, बेलिस और पारम्परिक हस्त मुद्रा सिखाई, जिसे ओडिसी नृत्य में काफ़ी महत्वपूर्ण माना जाता है ।