संपादकीय: ईवीएम को लेकर कांग्रेस में मतभेद
Differences in Congress regarding EVMs: पहले हरियाणा और फिर महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में पीराजित होने के बाद एक बार फिर कांग्रेस ने अपनी हार का ठिकरा ईवीएम के सिर पर फोडऩे की कोशिश शुरू की है और कांग्रेस सहित आईएनडीआईए में शामिल अन्य दलों के नेताओं ने ईवीएम को लेकर विधवा विलाप करना शुरू कर दिया।
कांग्रेस ने तो ईवीएम पर सवालिया निशान लगाते हुए बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग उठानी शुरू कर दी है। किन्तु इसे लेकर कांग्रेस के बड़े नेताओं के बीच ही मतभेद उजागर होने लगे है। एक ओर तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े बैलेट पेपर से चुनाव की मांग को लेकर राष्ट्रीय अभियान चलाने की वकालत कर रहे है।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री पी चितंबरम ने बयान दिया है कि ईवीएम से चुनाव कराने में उन्हें कभी कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई। जबकि बैलेट पेपर से चुनाव कराने के दौरान कई बार परेशानी हुई थ। जाहिर है ईवीएम के विरोध और बेलैट पेपर के समर्थन में कांग्रेस के बीच भी एक मत नहीं हो पा रहा है।
यही हाल अन्य विपक्षी पार्टियों का है जो ईवीएम के खिलाफ बयानबाजी तक ही सीमित है। जिन विपक्षी पार्टियों को विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव में जीत मिली हुई है। वे ईवीएम के मामले में मौन धारण किये हुए है। इन पार्टियों को करारी हार का सामना करना पड़ा है। वे ही ईवीएम को लेकर हल्ला मचा रहे है।
महाराष्ट्र विधानेसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी गठबंधन को करारा झड़का लगा है। वहां यह गठबंधन जो सत्ता में वापसी करने के बड़े बड़े दावे कर रहा था और मुख्यमंत्री पद के लिए एक दूसरे की टांग खीच रहा था। वह मात्र 46 सीटों पर ही सीमट कर रह गया।
यही वजह है कि कांग्रेस तथा उद्धव ठाकरे और शरद पवार अपनी इस करारी हार को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं है। और लगातार ईवीएम के माथे पर दोस मढ़ रहे है। उद्धव ठाकरे ने तो वीवीपैट की गिनती कराने की भी मांग उठा दी है। इधर कांग्रेस ने जब यह देखा कि ईवीएम के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दे दिया है कि ईवीएम के बदले बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग उचित नहीं है।
इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को धीरे से ही खारिज करते हुए यह टिप्पणी की है कि जब आप चुनाव में विजय हासिल करते है तो ईवीएम ठीक रहत है और चुनाव में करारी हार मिलने पर ईवीएम खराब हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद कांग्रेस को आभास हो गया है कि ईवीएम का मुद्दा चलने वाला नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट में भी उसे मात खानी पडग़ी। इसीलिए अब कांग्रेस ने ईवीएम की जगह पूरी चुनावी प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगाना शुरू कर दिया है। उसका कहना है कि चुनाव आयोग और सरकार के मिली भगत के कारण विपक्षी पार्टियों के समर्थेकों के नाम वोटर लिस्ट से काटे जा रहे हैं। जाहिर है कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियां अपनी हार को पचा नहीं पा रही है। और अपनी हार के लिए बली का बकरा ढूंढ रहीं हैेंं। जबकि उन्हें जनादेश का सम्मान करना चाहिए। और इसे स्वीकार करना चाहिए।
कांग्रेस को तो यह बात याद रखनी चाहिए कि 2014 के लोकसभा चुनाव पूर्व प्रधानमंत्री डॉ.मनहोहन सिंह की कार्यकाल में हुए थे। उनके नेतृत्व में दस सालों तक यूपीए की सरकार चली थी। और 2014 के लोकसभा चुनाव का संचालन उनकी ही सरकार द्वारा नियुक्त चुनाव आयुक्त के निर्देशन में हुआ था।
जिसके बाद भी कांग्रेस पाट्र्री सिर्फ 46 सीटों पर सीमट गई थी। तो क्या यह माना जाये कि कांग्रेस पाट्री ने चुनाव में गड़बड़ी कराकर कितनी कम सीटें पाई थी। जाहिर है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियां ईवीएम और बैलेट पेपर को लेकर व्यर्थ का बवाल खड़ा कर रही है।
बेहतर होगा कि वे अपनी पार्टी के पराजय के कारणों की गहन समीक्षा करे और उन कमियों को दूर करने का प्रयास करे। जिसके कारण उनकी पार्टियों से जनता का विश्वास टूटता जा रहा है और उन्हें चुनाव दर चुनाव हार का मुंह देखना पड़ रहा है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि कांग्रेस और आईएनडीआईए में शामिल अन्य पार्टियां ईवीएम को लेकर शोर मचाना बंद करेंगी और अपनी पराजय से सबक लेकर आगे की रणनीति तय करेंगी। यदि वे इसी तरह अपनी हार का दोष ईवीएम पर लगाती रही तो इससे उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होगा। उल्टे आगे भी उन्हें इसी तरह पराजय का कड़वा घुंट पीना पड़ेगा।