Devarshi Narad : पत्रकारिता के पितामह

Devarshi Narad : पत्रकारिता के पितामह

Devarshi Narad: Father of Journalism

Devarshi Narad

योगेश कुमार गोयल। Devarshi Narad : तीनों लोकों में उन्मुक्त विचरण कर सूचनाओं का आदान-प्रदान करने वाले देवताओं के ऋषि (देवर्षि) और मुनियों के देवता नारद मुनि को ब्रह्मा जी के सात मानस पुत्रों में से एक माना गया है, जिन्हें अमरत्व का वरदान प्राप्त है। शास्त्रों के अनुसार नारद मुनि भगवान विष्णु की अनुकम्पा से प्रत्येक युग तथा तीनों लोकों में कहीं भी किसी भी समय प्रकट हो सकते हैं। उन्हें ब्रह्माण्ड का पहला ऐसा संदेशवाहक अर्थात् पत्रकार माना जाता है, जो एक लोक से दूसरे लोक की परिक्रमा करते हुए सूचनाओं का आदान-प्रदान किया करते थे।

हालांकि नारद मुनि (Devarshi Narad) की छवि को एक चुगलखोर अर्थात् इधर की उधर करने वाले और आपस में भिड़ाकर क्लेश कराने वाले पौराणिक चरित्र के रूप में गढ़ दिया गया है लेकिन वास्तव में उनका प्रमुख उद्देश्य प्रत्येक भक्त की पुकार भगवान तक पहुंचाना ही परिलक्षित होता रहा है। वे एक लोक से दूसरे लोक में भ्रमण करते हुए संवाद-संकलन का कार्य कर एक सक्रिय एवं सार्थक संवाददाता की भूमिका निभाते रहे हैं। संवाद के माध्यम से वे तोडऩे का नहीं बल्कि जोडऩे का कार्य करते हैं और पत्रकारिता के प्रथम पितृ पुरूष हैं।

देवताओं के ऋषि होने के साथ-साथ वे ब्रह्माण्ड के प्रथम दिव्य पत्रकार के रूप में लोकमंडल के संवाददाता हैं। उन्हें देवताओं का दिव्य दूत और संचार का अग्रणी साधक माना गया है। मान्यता है कि देवर्षि नारद का जन्म ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन हुआ था। इसीलिए प्रतिवर्ष इसी दिन नारद जयंती मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु तथा माता लक्ष्मी का पूजन करने के पश्चात् देवर्षि नारद की पूजा की जाती है। अपनी वीणा की मधुर तान से भगवान विष्णु का गुणगान करने और अपने श्रीमुख से सदैव नारायण-नारायण का जप करते हुए विचरण करने वाले नारद को महर्षि व्यास, महर्षि वाल्मीकि तथा महाज्ञानी शुकदेव का गुरू माना जाता है।

कुछ शास्त्रों में नारद मुनि को त्रिकालदर्शी और विष्णु का अवतार भी माना गया है। श्रीमद्भागवद्पुराण के अनुसार सृष्टि में भगवान विष्णु ने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया है। कुछ स्थानों पर उनका वर्णन बृहस्पति के शिष्य के रूप में भी मिलता है। धार्मिक पुराणों के अनुसार अनेक कलाओं तथा विद्याओं में निपुण देवर्षि नारद को संगीत की शिक्षा ब्रह्माजी ने स्वयं दी थी और भगवान विष्णु ने उन्हें माया के विविध रूप समझाए थे। मान्यता है कि देवर्षि नारद ने ही भक्त प्रह्लाद, भक्त अम्बरीष, भक्त ध्रुव इत्यादि भगवान विष्णु के कई परम भक्तों को उपदेश देकर उन्हें भक्ति मार्ग में प्रवृत्त किया था।

उन्होंने ही भृगु कन्या लक्ष्मी का विवाह भगवान विष्णु के साथ कराया। देवराज इन्द्र को समझा-बुझाकर देव नर्तकी उर्वशी का पुरुरवा के साथ परिणय सूत्र कराया। इसके अलावा वे कई अत्याचारी महाराक्षसों द्वारा जनता के उत्पीडऩ का वृत्तांत भगवान तक पहुंचाकर उनके विनाश का माध्यम भी बने। महर्षि वाल्मीकि को रामायण की रचना करने के लिए प्रेरित किया। यही कारण है कि समस्त युगों, कालों, विधाओं और वर्गों में सम्मान के पात्र रहे नारद जी को सभी लोकों के समाचारों की जानकारी रखने वाले कवि, मेधावी नीतिज्ञ तथा एक प्रभावशाली वक्ता के रूप में स्मरण किया जाता है।

जन-जन के हितकारी देवर्षि नारद किस प्रकार धरती पर विभिन्न प्राणियों को दुखी देखकर स्वयं भी दुखी हो जाया करते थे, इसका उल्लेख भी एक पौराणिक कथा में मिलता है। कथानुसार, एक बार देवर्षि नारद ने बैकुंठधाम जाकर भगवान विष्णु से निवेदन किया कि वे पृथ्वी पर लोगों को दुखी देखकर खुद बहुत दुखी हैं क्योंकि वहां धर्म के रास्ते पर चलने वाले लोगों का नहीं बल्कि गलत कार्य करने वालों का ही भला होता है। भगवान विष्णु ने कहा कि हे नारद! ऐसा नहीं है और जो कुछ भी हो रहा है, सब नियति के जरिये ही हो रहा है। उन्होंने पूछा कि आखिर ऐसा आपने क्या देख लिया, जिसके आधार पर आप यह कह रहे हैं? तब देवर्षि ने कहा कि उन्होंने जंगल में दलदली जमीन में फंसी एक गाय देखी।

एक चोर वहां आया और गाय को दलदल में फंसी देखकर भी उसकी कोई मदद करने के बजाय वह उसी पर चढ़कर दलदल लांघकर निकल गया, जिसे आगे जाकर सोने की मोहरों से भरी एक थैली मिली। कुछ पलों बाद वहां एक वृद्ध साधु आए, जिन्होंने काफी प्रयासों के बाद गाय को दलदल से बाहर निकाल दिया लेकिन थोड़ा आगे जाने पर वही साधु एक गहरे गड्ढ़े में गिरकर घायल हो गए। आखिर यह कौनसा न्याय है?

देवर्षि की बातें सुनने के पश्चात् भगवान विष्णु ने कहा कि जो चोर गाय पर चढ़कर भाग गया था, उसकी किस्मत में तो एक बड़ा खजाना था लेकिन उसके इस पाप के कारण उसे केवल कुछ ही मोहरें मिली जबकि साधु को गड्ढ़े में इसलिए गिरना पड़ा क्योंकि उनके भाग्य में मृत्यु लिखी थी लेकिन गाय को बचाने के कारण उनके पुण्य बढ़ गए और उनकी मृत्यु एक छोटी सी चोट में बदल गई। भगवान विष्णु ने उन्हें समझाते हुए कहा कि किसी भी इंसान के कर्म से ही उसका भाग्य तय होता है।

सद्गुणों के अथाह भंडार और समस्त शास्त्रों में प्रवीण देवर्षि नारद को शास्त्रों में मन का ऐसा भगवान कहा गया है, जो किसी भी होनी-अनहोनी को समय रहते पहचान लेते हैं। उन्हें वेदों और उपनिषदों का मर्मज्ञ, न्याय तथा धर्म का तत्वज्ञ, शास्त्रों का प्रकांड विद्वान, इतिहास व पुराण विशेषज्ञ, औषधि ज्ञाता, योगनिष्ठ, ज्योतिष एवं संगीत विशारद, भक्ति रस का प्रमुख तथा अतीत की बातों को जानने वाला माना गया है। वे एक ऐसे पौराणिक चरित्र हैं, जो तत्वज्ञान में परिपूर्ण हैं।

पच्चीस हजार श्लोकों वाला प्रसिद्ध (Devarshi Narad) ‘नारद पुराण’ देवर्षि द्वारा ही रचा गया है, जिसमें उन्होंने भगवान विष्णु की भक्ति महिमा के साथ-साथ मोक्ष, धर्म, संगीत, ब्रह्मज्ञान, प्रायश्चित इत्यादि कई विषयों की मीमांसा प्रस्तुत की है। इसके अलावा संगीत का एक उत्कृष्ट ग्रंथ ‘नारद संहिता’ भी है। उन्हें ज्योतिष के साथ-साथ भक्ति का भी आचार्य माना गया है। मान्यता है कि पवित्र बद्रीनाथ धाम में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित नारदकुंड में स्नान करने मात्र से ही मनुष्य पवित्र जीवन की ओर उन्मुख होता है। ब्रह्माण्ड के प्रथम पत्रकार देवर्षि नारद सदियां बीत जाने के बाद भी आज के मीडिया क्रांति के युग में तो पत्रकारों के सबसे बड़े प्रेरणास्रोत और प्रकाश स्तंभ के रूप में याद किए जाते हैं।

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