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Democracy in Nepal : नेपाल में लोकतंत्र की फिर अग्निपरीक्षा

Democracy in Nepal: Another fire test of democracy in Nepal

Democracy in Nepal

प्रो. श्याम सुंदर भाटिया। Democracy in Nepal : पड़ोसी मुल्क नेपाल में सर्द मौसम में सियासी पारा एकदम गर्म है। इन दिनों लोकतांत्रिक महोत्सव मनाने में पूरा यह हिमालय राष्ट्र मशगूल है। भारतीय तिथि के मुताबिक 20 नवंबर रविवार को वोटिंग की तैयारियां मुकम्मल हो गई हैं। हालांकि नेपाली कैलेंडर के हिसाब से यह तिथि 04 नवंबर है। भारतीय तिथि नेपाल की कैलेंडर की तुलना में 16 दिन आगे चलती है। नतीजे 08 दिसंबर तक आने की उम्मीद है। 240 बरसों की राजशाही की विदाई के बाद 2008 में डेमोक्रोसी के द्वार खोल दिए गए थे। इस हिमालय राष्ट्र में डेमोक्रेसी की स्थिति अब तक पेंडुलम सरीखी रही है। नतीजन 14 बरसों में 10 सरकारों का गठन हो चुका है।

इस बार भी किसी गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलने के आसार (Democracy in Nepal) नहीं दिख रहे हैं,लेकिन चुनावी दंगल में युवाओं से मिल रही कड़ी चुनौती के चलते ऊंट किस करवट बैठेगा, यह साफ – साफ नहीं कहा जा सकता है। संसदीय और विधानसभाओं के एक साथ हो रहे चुनाव में मुख्य मुकाबला पीएम श्री शेर बहादुर देउबा और पूर्व पीएम श्री केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाले गठबंधनों के बीच में है,लेकिन इन दोनों गठबंधनों को युवाओं और निर्दलियों से कड़ी चुनौती मिल रही है। युवाओं ने शेप अप…और शिप अप हैशटैग की जबर्दस्त कैंपेन चला रखी है। यह बदलाव की बयार कितनी दमदार साबित होगी, यह तो नतीजे ही बताएंगे। चुनाव की निष्पक्षता को देखने भारत,भूटान,बांग्लादेश और मालदीव के मुख्य चुनाव आयुक्त बतौर अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक नेपाल पहुंच चुके हैं। भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त श्री राजीव कुमार की अगुवाई में चुनाव आयोग के अफसरों का यह प्रतिनिधिमंडल 22 नवंबर तक नेपाल में राजकीय मेहमान के रूप में रहेगा।

1.8 करोड़ वोटर्स डालेंगे वोट

नेपाल में दोहरे चुनाव के लिए मतदान एक ही चरण में होगा। संघीय संसद और सात प्रांतों में 1.8 करोड़ वोटर्स अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। संघीय संसद के कुल 275 मेंबर्स में 165 प्रत्यक्ष वोटिंग से चुनेंगे,शेष आनुपातिक पद्धति आधार पर चुने जाएंगे। सात प्रांतीय विधान सभाओं के कुल 550 सदस्यों में से 330 प्रत्यक्ष चुने जाएंगे,जबकि 220 के चुनाव का बेस आनुपातिक पद्धति होगा। 2017 के आम चुनावों में नेपाली कांग्रेस की झोली में 63 ,जबकि माओवादी केंद्र को 53 सीट प्राप्त हुई थीं। दूसरी ओर आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत वोटों ने वामपंथी गठबंधन को संघीय संसद में दो-तिहाई बहुमत हासिल करने से रोक दिया था। किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था।आनुपातिक वोट में एक सीट आवंटित करने के लिए एक पार्टी या चुनावी गठबंधन को कुल वैध वोट के 3: की चुनावी सीमा को पार करना होता है।

इतिहास के झरोखे में नेपाल

1960 में नेपाल के राजा महेंद्र ने संसद को भंग कर दिया था। इसके साथ ही लोकतांत्रिक व्यवस्था खत्म हो गई थी और राजशाही का फिर से कब्जा हो गया। दरअसल नेपाल में पहली बार 1951 में लोकतंत्र की स्थापना हुई। 1955 में महाराजा त्रिभुवन के निधन के बाद राजा महेंद्र सत्ता में आए। वह देश में लोकतंत्र नहीं चाहते थे।1959 में आम चुनाव में नेपाली कांग्रेस को दो-तिहाई बहुमत हासिल हुआ और बीपी कोईराला प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए। राजा महेंद्र ने दिसंबर, 1960 में संसद को भंग कर लोकतांत्रिक व्यवस्था को खत्म कर दिया। राजा महेंद्र की मृत्यु के बाद उनके बड़े पुत्र विरेंद्र वीर विक्रम शाहदेव नए राजा बने। अंतत: 2015 में नेपाल में नया संविधान लागू हुआ है, लेकिन मधेशी अब तक इसका विरोध कर रहे हैं।

स्थिरता ही सबका मुख्य चुनावी मुद्दा

इस बार राजनीतिक स्थिरता मुख्य चुनावी मुद्दा बना है। नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन ने लोगों को स्थिर सरकार देने का भरोसा दिया है। परंतु, लोगों को उसके वादे पर यकीन नहीं हो रहा है। इसका कारण नेपाली कांग्रेस नहीं, बल्कि गठबंधन में शामिल प्रमुख वाममंथी पार्टी सीपीएन (माओइस्ट सेंटर) है। सीपीएन (एमसी) के प्रमुख पूर्व प्रधानमंत्री पुष्क कमल दहल उर्फ प्रचंड हैं, जो खुलेआम दावा करते रहे हैं कि उन्होंने सरकार बनाने और गिराने में अहम भूमिका निभाई है। हालांकि, इस बार सीपीएन-एमसी ने भी राजनीतिक स्थिरता को प्राथमिकता देने का वादा किया है।वैसे तो चुनाव में मैदान में छोटे बड़े कई दल हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन और पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की पार्टी सीपीएन- यूएमएल के बीच ही होने का अनुमान है। नेपाली कांग्रेस और वामपंथी नेता ओली को ही मौजूदा राजनीतिक स्थिरता के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं, जिन्होंने अल्पमत में आने के बाद सदन को भंग कर दिया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर संसद बहाल हुई थी। नेपाल के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त श्री अयोधी प्रसाद यादव कहते हैं, हम जिस तरह की चुनाव प्रणाली में है, वह हमें त्रिशंकु संसद की तरफ ले जाती है।

चुनाव डेमोक्रेसी की आत्मारू देउबा

चुनावों को लोकतांत्रिक प्रणाली की आत्मा बताते हुए नेपाल के 76 वर्षीय प्रधानमंत्री श्री शेर बहादुर देउबा ने प्रसारित एक वीडियो संदेश में जनता को संबोधित करते हुए कहा, नेपाली कांग्रेस देश में अतीत में हुए सभी सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन में अग्रणी रही है। ऐसे में अब देश को समृद्धि की ओर ले जाने की जिम्मेदारी नेपाली कांग्रेस की है। नेपाल में पांचवीं बार प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल रहे श्री देउबा ने वायदा करते हुए कहा कि उनकी सरकार युवाओं के लिए काम करेगी।उन्होंने कहा, चूंकि हमारे युवा प्रौद्योगिकी और वैज्ञानिक ज्ञान में उत्कृष्टता प्राप्त कर रहे हैं, हम उनके ज्ञान का सम्मान करते हुए नई सोच के साथ आगे बढ़ेंगे। सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल सीपीएन-माओवादी सेंटर के नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड ने 20 नवंबर के चुनाव को प्रगतिशील और दमनकारी ताकतों (Democracy in Nepal) के बीच जनमत संग्रह बताया।

(लेखक रिसर्च स्कॉलर और सीनियर जर्नलिस्ट हैं )

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