संपादकीय: दलबदलू नेताओं की बल्ले बल्ले
Defeated leaders are in trouble: जब भी कोई चुनाव नजदीक आता है दलबदलू नेताओं की बल्ले बल्ले हो जाती है। कुछ लोग तो हवा का रूख देखकर पाला बदलते हैं। तो कुछ लोग अपनी पार्टी में हाशिए पर पड़े रहने के कारण दूसरी पार्टी का दामन थाम लेते हैं। भारतीय राजनीति में आया राम गया राम की परंपरा बहुत पुरानी है।
दलबदल कानून बनने के बाद भी दलबदलू कोई न कोई रास्ता निकाल लेते हैं और कपड़ों की तरह दल बदलते रहते हंै। ऐसे दलबदलुओं के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां पलक पावड़े बिछाकर बैठी रहती हैं।
नई दिल्ली विधानसभा के चुनाव दो माह बाद होने जा रहे हैं। इसलिए वहां दल बदलने का सिलसिला शुरू हो गया है। भाजपा के एक पूर्व विधायक ब्रम्ह तंवर ने हाल ही में भाजपा छोड़कर आम आदमी पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी। इसके बाद अब भाजपा के ही एक और पूर्व विधायक अनिल झा ने आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया है।
कांग्रेस के भी एक पूर्व विधायक सोमेश ने भी कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी का दामन थामा है। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और नई दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इन दलबदलुओं का स्वागत करते हुए कहा कि ये नेता आम आदमी पार्टी की नीतियों से प्रभावित होकर उनके साथ आ रहे हैं। और इससे आम आदमी पार्टी को और ज्यादा मजबूती मिलेगी।
इस बीच आम आदमी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता और नई दिल्ली सरकार में मंत्री कैलाश गहलोत ने आम आदमी पार्टी को टाटा बाय बाय कहकर भाजपा का रूख कर लिया है। कैलाश गहलोत को केन्द्रीय मंंत्री मनोहर खट्टर ने भाजपा की सदस्यता दिलाई है।
कैलाश गहलोत के भाजपा में शामिल होने संबंधी प्रश्न के उत्तर में अरविंद केजरीवाल ने कहा कि वे स्वतंत्र हैं कहीं भी जा सकते हैं। इधर कैलाश गहलोत के भाजपा में शामिल होने को लेकर एक बार फिर भाजपा सवालों के घेरे में आ गई है।
आम आदमी पार्टी के नेता और आईएनडीआईए में शामिल अन्य पार्टियों के नेता भाजपा पर हमला कर रहे हैं और यह आरोप लगा रहे हैं कि वह आम आदमी पार्टी को तोडऩे का काम कर रही है।
जिस कैलाश गहलोत पर भाजपा के नेता 112 करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगाते रहे हैं। और उनके खिलाफ ईडी और सीबीआई की जांच कराते रहे हंै। तथा इनकम टैक्स के छापे पड़वाते रहे हैं। उसी कैलाश गहलोत को भाजपा ने अपनी गोद में बिठा लिया है।
गौरतलब है कि इसके पूर्व भी भाजपा ने महाराष्ट्र के कई ऐसे दागी नेताओं को भाजपा में शमिल कर लिया था और अजित पवार जैसे नेता को तो बाकायदा उपमुख्यमंत्री भी बना दिया था। नतीजतन लोकसभा चुनाव में भाजपा को महाराष्ट्र में तगड़ा झटका लगा था।
अब नई दिल्ली विधानसभा चुनाव के ठीक पहले कैलाश गहलोत को भाजपा ने अपने साथ मिला लिया है इसलिए उसे विधानसभा चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। वैसे भी दलबदलू नेता जो अपनी पैतृक पार्टी के सगे नहीं बन सकते वे दूसरी पार्टी में शामिल होकर उस पार्टी का फायदा कम और नुकसान ज्यादा करते हैं।
इस सच से परिचित होने के बावजूद सभी राजनीतिक पार्टियां दलबदलुओं को प्राश्रय देती है। यही नहीं बल्कि पद से नवाज कर उन्हें पुरस्कृत भी करती है।
नई दिल्ली विधानसभा चुनाव में अभी लगभग ढाई माह का समय शेष है। ऐसे में वहां अभी और कई अवसरवादी नेता दल बदल सकते हैं। ये दलबदलू चुनावी गणित को भी गड़बड़ा सकते हैं। और इनके कारण दलबदलुओं को गले लगाने वाली पार्टियों को फायदा होगा या नुकसान यह तो चुनाव के बाद उसके नतीजे ही बेहतर बताएंगे।