संपादकीय: लोकतंत्र के इतिहास का काला दिन

संपादकीय: लोकतंत्र के इतिहास का काला दिन

Dark day in the history of democracy

Dark day in the history of democracy


Dark day in the history of democracy: 25 जून 1975 भारतीय लोकतंत्र के इतिहास के काले दिन के रूप में याद किया जाता है। तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने 49 साल पहले आज के ही दिन देश में आपातकाल लागू करने की सिफारिश की थी। जिसे मंजूर करते हुए तात्कालीन राष्ट्र्पति फखरूद्दीन अली अहमद ने इमरजेंसी लागू करने का ऐलान किया था। नतीजतन लोगों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए।

मीडिया पर भी सेंसरशिप लागू कर दी गई। अर्थात अभिव्यक्ति की आज़ादी छीन ली गई। अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जय प्रकाश नारायण और जार्ज फर्नांडीज सहित सभी प्रमुख विपक्षी नेताओं को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया। उस समय विपक्ष बंटा हुआ था। जनसंघ भी प्रभावी भूमिका में नहीं था। अलबत्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक शक्तिशाली संगठन था इसलिए आपातकाल के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही तानाशाह सरकार के कोप का भाजन ज्यादा बना। आरएसएस के नेताओं के साथ -साथ उसके कार्यकर्ताओं को भी पकड़कर जेल में भेड़ बकरियों की तरह ठूंस दिया गया। मीसाबंदियों से जेल की बैरकें भर गई।

जेल में भी उन पर अमानुषिक अत्याचार किया गया। इस अति के अंत की बुनियाद भी जेल में ही रखी गई। बंटा हुआ विपक्ष एकजुट हो गया। 21 माह बाद जब लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई तो आपातकाल हटाना पड़ा। जेल से रिहा हुए सभी विपक्षी नेताओं ने जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के आव्हान पर जनता पार्टी बनाई। इसमें जनसंघ और सोशलिस्ट पार्टी सहित सभी राजनीतिक पार्टियों का विलय हो गया था। 1977 के लोकसभा चुनाव में इस जनता पार्टी को अभूतपूर्व समर्थन मिला और कांग्रेस पार्टी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा।

यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी रायबरेली लोकसभा सीट से चुनाव हार गई। उन्हें जनता पार्टी के राजनारायण ने पराजित कर दिया। गौरतलब है कि 1971 के लोकसभा चुनाव में राजनारायण को इंदिरा गांधी ने हराया था। तब राजनारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इंदिरा गांधी पर सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर चुनाव जीतने का आरोप लगाया था। इस पर 1975 में हाई कोर्ट का फैसला आया और कोर्ट ने इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला सुनाकर उनकी जीत को अवैध घोषित कर दिया था। इसी के बाद इंदिरा गांधी ने देश पर इमरजेंसी थोप दी थी। आपातकाल के दौरान बेलगाम नौकरशाही ने जनता पर जमकर जुल्म किए थे।

पीडि़त जनता ने भी 1977 के लोकसभा चुनाव में इसका बदला लिया और कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया। यह बात अलग है कि कांग्रेस की जगह सत्तारूढ़ हुई जनता पार्टी की सरकार टूट का शिकार हो गई। मोरारजी भाई देसाई ढाई साल ही प्रधानमंत्री बने रह सके। बहरहाल आपातकाल जिन लोगों ने देखा है उनके जख्म अभी भी भरे नहीं है।

मौजूदा सरकार पर आज उसी पार्टी के नेता तानाशाही करने और अघोषित आपातकाल लगाने का आरोप लगा रहे हैं। जिन्होंने खुद अपनी सरकार के रहते देश में सिर्फ अपनी सत्ता बचाने के लिए इमरजेंसी लगाई थी। वो दिन अब गए। आज की जनता अब जागरूक हो गई है। अब देश में इमरजेंसी लगाने का या तानाशाह बनने का दु:साहस कोई नहीं कर सकता?

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