Country’s Record Heat : गर्म हवा के थपेड़ों की मार झेलते देशवासी
डॉ. ओ.पी. त्रिपाठी। Country’s Record Heat : इस साल देश में रिकार्ड गर्मी पड़ रही है। तापमान का पारा सारे रिकार्ड ध्वस्त कर रहा है। लेकिन साल दर साल बढ़ता जा रहा तापमान जरूर चिंता और उससे भी ज्यादा चिंतन का विषय है। बीते दो-तीन दिनों से देश भर में ग्रीष्म लहर चल रही है। दर्जनों शहरों में तापमान 45 डिग्री से. तक जा पहुंचा है और कहीं- कहीं तो उससे भी ऊपर। मौसम विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि गर्मी का प्रकोप और तेज होगा। ज्यादातर राज्यों में हर बार की तरह इस साल जलसंकट की स्थिति भी बनी हुई है।
तेजी से विकसित होते शहर और पेड़ों की कटाई तापमान में वृद्धि (Country’s Record Heat) के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। भारत में जहां पहले सर्दी के बाद वसंत आता था। वसंत के मौसम में तापमान हलका-हलका बढ़ता था। वसंत के बाद ही गर्मी आती थी. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से देखा जा रहा है कि मौसम का जो परंपरागत बंटवारा था, वह खत्म हो रहा है और सर्दी के तुरंत बाद गर्मी आ रही है। इसी कारण भारत के कई शहर मार्च के महीने में लू के थपेड़ों का अनुभव कर रहे हैं।
वैश्विक परिस्थितियों ने कोयले की कमी पैदा हुई, नतीजतन बिजली का उत्पादन घटने से देश में बिजली की कटौती बनी हुई है। इस साल मार्च के महीने से ही तापमान बढने लगा था जिसकी वजह से गर्मियों में आने वाली सब्जियों और फलों की पैदावार पर भी विपरीत असर पड़ा। मौसम विज्ञानियों और पर्यावरणविदें के मुताबिक ये हालात अनुकूल नहीं कही जा सकते।
तपती धूप और भीषण गर्मी से आम जनजीवन पूरी तरह अस्तव्यस्त है।
इंसान ही नहीं पशु पक्षी गर्मी से बिलबिला उठे हैं। सुबह से ही कड़ी धूप होने के साथ लू चलने से लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो रहा है। आसमान में सूरज तप रहा है तो सड़के गर्म तवे की तरह पैरों को झुलसा रही हैं। गर्म हवा के थपेड़ों से शरीर झुलस रहा है। मार्च अप्रैल में ही गर्मी ने प्रचंड रूप धारण कर लिया था। आने वाले दिनों में और गर्मी बढऩे की आशंका है।आम तौर से मई-जून में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर होता है, लेकिन इस बार मार्च-अप्रैल में पुराने रिकार्ड टूट गये।
वैसे इसमें कुछ नया नहीं है क्योंकि तापमान में वृद्धि का सिलसिला साल दर साल इसी तरह चला आ रहा है। दुनिया भर में इसे लेकर चिंता व्याप्त है। पृथ्वी को गर्म होने से बचाने के लिए तरह-तरह के उपाय भी हो रहे हैं। कोयले के साथ ही पेट्रोल-डीजल के उपयोग को कम करने की दिशा में जोरदार प्रयास भी जारी हैं। लेकिन मैदानी इलाकों में पडने वाली गर्मी तो फिर भी समझ में आती हैं परन्तु अब तो पहाड़ी स्थलों पर भी पंखे और कूलर नजर आने लगे हैं। शिमला में जल संकट की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। पहाड़ी क्षेत्रों का वातावरण तेजी से बदल रहा है।
विशेषज्ञों के मुताबिक ग्लेशियर पिघलने की वजह से पहाड़ों से निकलने वाली सदा नीरा नदियों के अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। छोटी नदियों में तो ग्रीष्म ऋतु के दौरान कीचड़ तक नहीं रहता। भूजल स्तर गिरते जाने से मानव निर्मित तालाबों और कुओं आदि में भी जल की उपलब्धता घटते-घटते उनके सूखने तक की नौबत आने लगी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार गर्मी बढ़ते ही देशभर में जल संकट भी पैदा हो चुका है। शहर-शहर से ऐसी खबरें लगातार आ रही हैं जिनसे पता चलता है कि जीवन के लिए सबसे आवश्यक तत्व पानी की कमी से देश कैसे जूझ रहा है।
हमारे देश में ऋतुओं का जो संतुलित रूप था उसकी वजह से हर मौसम का अपना आनंद था। लेकिन प्रकृति पर किये गये अत्याचारों ने उस चक्र की गति को बिगाड़ दिया। जिसका दुष्परिणाम कहीं सूखा तो कहीं अति वृष्टि के रूप में सामने आने लगा है। इस साल अप्रैल खत्म होते तक गर्मी ने विकराल रूप धारण कर लिया है। बिजली और पानी दोनों की किल्लत के साथ ही आसमान से बरसने वाली आग लोगों के तन और मन दोनों को झुलसाती रहेगी।
हर साल इस तरह के हालात पैदा होने पर हम सब प्रकृति और पर्यावरण के साथ हुए खिलवाड़ की चर्चा करते हुए ये स्वीकार करने की ईमानदारी तो दिखाते हैं कि इस सबके लिए हमारे अपने कर्म ही जिम्मेदार हैं। लेकिन गर्मियां बीतते ही ये चिंता और चिन्तन दोनों अदालत की पेशियों की तरह आगे बढ़ जायेंगे।
कहने को पूरी दुनिया पृथ्वी को बचाने के लिए प्रयासरत है। कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए समझौते और संधियां हो रही हैं। ऊर्जा के ऐसे वैकल्पिक स्रोत तलाशे जा रहे हैं जिनसे तापमान को बढने से रोका जा सके। वृक्षारोपण के सरकारी और गैर सरकारी अभियान भी निरंतर चलते रहते हैं। जल संरक्षण और संवर्धन के लिए भी हरसंभव कोशिश हो रही है। नदियों के साथ ही तालाबों आदि के जीर्णोद्धार की पहल भी सुनाई और दिखाई देती है।
इस सबसे लगता है कि प्रकृति और पर्यावरण को उसका मूल स्वरूप (Country’s Record Heat) देने के लिए मानव जाति संकल्पित हो उठी है परन्तु निष्पक्ष आकलन करें एक कदम आगे दो कदम पीछे की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में सवाल ये है कि हम अपनी भावी पीढ़ी के लिए स्वच्छ हवा और पानी का प्रबंध कैसे करें? इसका उत्तर भी बीते दो सालों में हमें मिला जब कोरोना के कारण लगे लॉक डाउन के दौरान अचानक ऐसा लगा कि प्रकृति अपने नैसर्गिक स्वरूप में लौट आई है। हम सभी उस दौर को याद करते हुए बेहिचक स्वीकार करते हैं कि यदि वैसा किया जावे तो पर्यावरण को बचाया जा सकता है। लेकिन व्यवहारिक तौर पर आगे-पीछे होने लगते हैं।