CG: धान का किसान मारा-मारा, एजेंसियों का वारा-न्यारा, एफसीआई, मार्कफेड और राइस मिलर्स के गठजोड़ से करोड़ों का भ्रष्टाचार

CG: धान का किसान मारा-मारा, एजेंसियों का वारा-न्यारा, एफसीआई, मार्कफेड और राइस मिलर्स के गठजोड़ से करोड़ों का भ्रष्टाचार

Corruption worth crores due to the nexus of FCI, Markfed and Rice Millers,

FCI Markfed and Rice Millers

FCI Markfed and Rice Millers : राज्य शासन की मजबूरी और केन्द्र का दबाव भारतीय खाद्य निगम के लिए आपदा में अवसर बन गया

प्रमोद अग्रवाल
रायपुर। FCI Markfed and Rice Millers: छत्तीसगढ़ राज्य में धान और चांवल को लेकर केन्द्र और राज्य सरकार की एजेंसियां गंभीर अनियमितताएं बरत रही है। प्रतिवर्ष धान के निपटान की समस्या से जूझ रहे राज्य में केन्द्रीय एजेंंसी भारतीय खाद्य निगम द्वारा अपने ही मानकों का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है और जिसका लाभ सीधे तौर पर छत्तीसगढ़ राज्य में कार्यरत् राईस मिलर्स को प्रदान किया जा रहा है।

इस कार्य में लिप्त भारतीय खाद्य निगम द्वारा सांठ-गांठ कर अपने ही बनाएं नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है। साथ ही अपने एक मात्र क्रेता होने की स्थिति का लाभ भी उठाया जा रहा है। चूंकि भारतीय खाद्य निगम के द्वारा किए जाने वाले क्वालिटी कंट्रोल पर किसी और का कंट्रोल नहीं है उस बात का भय तथा मिलर्स को ब्लैक लिस्टेड किए जाने की धमकी का फायदा उठाकर मनमानी भ्रष्टाचार किया जा रहा है।
राज्य में इस वित्तीय वर्ष में लगभग 94 लाख मीट्रिक टन धान की रिकार्ड खरीदी की गई थी।

केन्द्र और राज्य के बिगड़े हुए संबंधों के कारण इस धान का निपटान में पहले केन्द्र ने बहुत सारे अड़ंगे लगाए थे और धान खरीदने से मना कर दिया था। काफी विवादों के बाद केन्द्र ने सेंंट्रल पूल में 24 लाख टन और राज्य की आपूर्ति हेतु 16 लाख टन चांवल लेने पर रजामंदी दी थी। जिसके तहत लगभग 60 लाख मीट्रिक टन धान का निपटान सुनिश्चित हुआ था लेकिन इसके बावजूद भी राज्य के पास 34 लाख मीट्रिन टन धान अतिरिक्त बच जाना था।

नियमानुसार 31 अगस्त तक राज्य द्वारा क्रय किया गया 94 लाख टन धान का निपटान किया जाना आवश्यक है लेकिन अभी तक केन्द्र द्वारा अनुबंधित 60 लाख मीट्रिक टन धान का भी निपटान पूर्ण नहीं हो पाया है। संग्रहण केन्द्रों में खुले में पड़ा धान पूरी बरसात का सीजन देख चुका है और उसकी स्थिति सडऩे जैसी है जिसका फायदा राज्य शासन की एजेंसी मार्कफेड के अधिकारी उठा रहे है और यह निश्चित है कि शासन द्वारा खरीदे गए 94 लाख टन धान में से इस वर्ष कम से कम 10 लाख टन धान की शुद्ध हानि होगी।

राज्य शासन की मजबूरी और केन्द्र का दबाव भारतीय खाद्य निगम के लिए आपदा में अवसर बन गया है। राज्य द्वारा सभी मिलर्स पर दबाव बनाया हुआ है कि वह जल्दी से जल्दी शासन के धान की मीलिंग कर एफसीआई को पहुंचाएं और इस बात का लाभ उठाते हुए एफसीआई के अधिकारी चांवल की गुणवत्ता में कमी निकाल कर अपना उल्लू सीधा कर रहे है।

हालांकि वे खुद भी अपने बनाएं नियमों का भरपूर उल्लंघन कर रहे है, इसका एक छोटा सा उदाहरण यह है कि केन्द्र सरकार ने राज्य में ज्यादा धान की मात्रा को दृष्टिगत रखते हुए जनवरी 2021 में यह निर्देश दिया था कि वे राज्य शासन द्वारा बनाए गए धान संग्रहण केन्द्रों का निरीक्षण करें और संग्रहण केन्द्रों में रखें हुए धान का भौतिक परीक्षण कर अच्छे धान से बनने वाले चांवल का ही संग्रहण करें। इस बाबत् भारतीय खाद्य निगम और राज्य शासन की एजेंसियों ने मिलकर राज्य के 22 जिलों में बनाएं गए 69 संग्रहण केन्द्रों का दौरा किया था।

इस टीम ने इन 69 संग्रहण केन्द्रों से 60 लाख टन धान का चयन किया था। जून 2021 तक तो मामला ज्यादा नहीं बिगड़ा था लेकिन बरसात प्रारंभ होने के साथ ही दोनों एजेंसियों को जैसे भ्रष्टाचार करने की छूट मिल गई। एफसीआई ने जिन 69 संग्रहण केन्द्रों में धान का परीक्षण कर उससे बने चांवल को खरीदने का निर्णय लिया था उन 69 केन्द्रों में से अधिकांश में अगस्त 2021 तक लगभग उतनी ही धान की मात्रा मौजूद है जितनी निरीक्षण के दौरान मौजूद थी।

इसका मतलब साफ है कि भारतीय खाद्य निगम ने राज्य की एजेंंसी से सांठ-गांठ कर अपने ही चयन किए गए धान का चांवल नहीं लिया है बल्कि जिस धान का परीक्षण उन्होने नहीं किया था ज्यादातर उस धान का चांवल लिया गया है। इसके ऐवज में इन दोनों एजेंसियों ने राज्य के राईस मिलर्स को उपकृत किया है और शासन के निर्देशों की अव्हेलना कर खुद भी भ्रष्टाचार किया है।

उदाहरण के लिए कवर्धा जिले के डाबराभाट और बाजार चारभाठा नामक दो केन्द्रों में जनवरी 2021 की स्थिति में 65 लाख टन धान का संग्रहण किया गया था जिसमें से एफसीआई को 41,000 टन धान के चांवल का संग्रहण करना था लेकिन वहां आज की स्थिति में भी 70 लाख टन धान मौजूद है। इसका मतलब साफ है कि इस संग्रहण केन्द्र से एक क्विटल चांवल भी एफसीआई ने नहीं लिया।

इस परीक्षण के बावजूद धान के चांवल का संग्रहण नहीं किए जाने बाबत् जब भारतीय खाद्य निगम से बात की गई तो छत्तीसगढ़ राज्य में एफसीआई के सबसे बड़े अफसर महाप्रबंधक अनुपम दुबे ने कहा कि भौतिक परीक्षण में पास किए गए धान का चांवल न लेने से भारतीय खाद्य निगम को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हम जो चांवल लेते है उसे अपने मानकों पर खरा उतरने के बाद ही लेते है चाहे वो किसी भी धान से बनाया गया हो। जब उनसे यह पूछा गया कि फिर से भौतिक परीक्षण क्यों किया जाता है तो वे गोलमोल जवाब देने लगे और यह बताने लगे कि यह उन राज्यों पर ज्यादा महत्वपूर्ण है जहां से चांवल ज्यादा लिया जाता है और धान कम होता है।

भारतीय खाद्य निगम के भ्रष्टाचार की कहानी यहीं से प्रारंभ होती है। भारतीय खाद्य निगम राज्य शासन के संग्रहित धान से बने चांवल का अपने परीक्षण के आधार पर संग्रहण करता है। राज्य में सभी एफसीआई के गोदामों में निगम ने चांवल के परीक्षण के लिए लैब स्थापित किए गए है और जांचने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति भी की गई है। एक ही संग्रहण केन्द्र से अनेक मिलरों द्वारा मीलिंग किए गए धान में से कुछ मीलों का चांवल परीक्षण पर खरा उतरता है और कुछ मीलों का चांवल परीक्षण में फेल हो जाता है और इसी पास फेल के खेल में राज्य में भारतीय खाद्य निगम के पौबारह होते है।

चूंकि भारतीय खाद्य निगम द्वारा परीक्षण में फेल किए गए धान को कोई चुनौती नहीं दी जा सकती इसलिए राईस मिलर्स को इनके भ्रष्टाचार का समर्थन करना होता है। जिसके दुष्परिणाम यह है कि मानकों पर खरा न होने के बावजूद जो मिलर खाद्य निगम के अधिकारियों से सांठ-गांठ रखता है उसका कैसा भी चांवल स्वीकृत हो जाता है। खाद्य निगम द्वारा हर जिलों में दो या तीन ऐसे अधिकारी बिठाकर रखे गए है जिनका काम इस भ्रष्टाचार में मिलने वाली धन राशि का संग्रहण करना और उसका निर्धारित हिस्सा सब तक पहुंचाना है। मिलर्स की मजबूरी यह है कि जो धान राज्य सरकार उन्हे दे रहा है उसकी मीलिंग करना उनके लिए अनिवार्य है और मीलिंग कर के खाद्य निगम में पहुंचाने और पास कराने की जिम्मेदारी उसकी है।

यदि किन्ही कारणों से उसका बनाया चांवल परीक्षण में पास नहीं हो पाता है तो उसे उस चांवल के ट्रंासपोटिंग, लदाई-उतराई और पूंजी पर ब्याज की अतिरिक्त मार पड़ती है जो कि उसे मिलने वाले मीलिंग राशि से कहीं ज्यादा होती है। इस हानि से बचने के लिए राज्य के सभी मिलर्स भारतीय खाद्य निगम के बुने हुए जाल में फंसे हुए है। केन्द्र और राज्य सरकारें अपने राजनैतिक मतभेद में लिप्त है और उनके मतभेदों का फायदा उठाते हुए उन दोनों की एजेंसियां भ्रष्टाचार में लिप्त है। राज्य में 94 लाख टन किसान की फसल पर जितना पैसा किसान नहीं कमा रहा है उससे कहीं ज्यादा राज्य के राईस मिलर और उनसे सांठ-गंाठ कर राज्य और केन्द्र की एजेंसियां कमा रही है।

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