बातों…बातों में… सुकांत राजपूत की कलम से, कोविड पॉलिटिक्स…
कोविड पॉलिटिक्स…
कोरोना (corona) से जंग (war) की बात करने वाले खद्दऱधारी अब जीभ लमाए कोविड पॉलिटिक्स (Kovid Politics) में उतर गए हैं। देश क्या और राज्य क्या, कोविड के खिलाफ किसने कितने तीर मारे यह बताने की बजाए एक-दूसरे की कमियां गिनाते नजर आ रहे हैं।
नेशनल न्यूज चेनल के डिबेट बॉक्स से लेकर खबरों के पन्नों में बयानवीरों की सबसे बड़ी चिंता है कोविड फंड में कितना आया। राज्य पीएम केयर फंड और वल्र्ड बैंक से मिली राशि के लिए लालायित हैं तो वहीं केंद्र रेल, विमान से लेकर परिवहन सुविधा तक का पैसा वसूलकर फंड की बजाए टेस्ट किट का लॉलीपॉप थमा रही है।
हालात पर सियासत…
गरीब और मजदूरों के नाम पर सियासत चमकाने का क्रम पूरे सालभर तक चलेगा। लॉकडाउन, फंसे मजदूरों का मुद्दा और आर्थिक लॉकडाउन के लिए पैसों की दरकार पर ही अब सालभर की सियासत चलानी होगी। इसका नजारा अभी से दिखाई देने लगा है।
सत्तापक्ष या फिर विपक्ष की भूमिका में दिख रहे राजनेताओं को मीलों भूखे-प्यासे नंगे पैर अपने घर पहुंचने की कोशिश में गरीब के पैरों के छालों पर बात करने की बजाए अब केंद्र-राज्य के बीच सिर्फ फंड की बात चल रही है। कोविड-19 से लडऩे के लिए वॉर्ड बनाने से लेकर भोजन के नाम पर केंद्र के बफर स्टॉक से मुफ्त अनाज या फिर कोरोना से जंग के लिए फंड की मांग ही सियासत का नया अंदाज है।
अपनों से यात्रा भत्ता…
वैश्विक महामारी के वक्त भी केंद्र की मोदी सरकार का ऐसा चेहरा सामने आया है जो कई सवाल खड़े करता है। बरबस ही वर्ष 1990 का वक्त याद आता है, जब विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। उस वक्त कुवैत में ईराक ने हमला कर कब्जा किया था। उस वक्त हजारों भारतीय वहां फंसे हुए थे। दिलेर राजा मांडा ने फौरे से पेश्तर आदेश किया और चंद दिनों में ही लगातार 500 उड़ानें कुवैत से भारत के बीच संचालित करवा अपने भारतीयों को सुरक्षित देश ले आए थे।
मजे की बात यह कि भारत से कुवैत के बीच लाने-ले जाने का यह सिलसिला बिलकुल मुफ्त हुआ। किसी भी देशवासी से एक रुपया भई यात्रा भत्ता नहीं लिया गया था। अब आलम यह है कि अमेरिका से भारतीयों को लाने का किराया प्रति व्यक्ति 1 लाख और ब्रिटेन से यह राशि 50 हजार रुपए वसूली जा रही है। विदेश तो छोडि़ए बल्कि भारत के एक से दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों को लाने-लेजाने का भी पूरा शुल्क राज्यों पर थोपा गया है। कौन है वह जो अपनों की हिफाजत के लिए कीमत वसूल रहा है?
कैश-क्रॉप्स का बफर स्टाक
दूसरी पाली में हमें तो यही बताया, सुनाया और पढ़ाया जा रहा है कि हम शेर हैं, पैसा, खाना देश में पर्याप्त है। कुछ हद तक यह सच भी है कि देश में अनाज का बफर स्टॉक है। इतना कि 84 दिनों तक पूरा देश बैठकर खा सकता है। कैश भी खजाने में इतना है और वल्र्ड बैंक से इतना मिला है कि हर की जेब भारी हो सकती है। कहने का मतलब यह कि नुक्सान से उबर सकता है।
यूएई और अमेरिका से भी टेस्ट किट, वेंटिलेटर बल्क में मिला है। इसमें तुर्रा यह कि हर राज्य के मुख्यमंत्रियों और देश के प्रधानमंत्री फंड में देश के लक्ष्मीपुत्रों से लेकर नौनिहालों तक ने अपना गुल्लक फोड़कर न्यौछावर कर दिया है। इतना होने के बाद भी कौन है वह कृपण जो गरीबों को छाले फूटते तक और भूख से पेट मरोड़ते तक मजबूर कर रहा है?