CORONA DEATH: कोरोना से मरने वालों के परिजनों को मिलेगी 4 लाख की सहायता? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से….

CORONA DEATH: कोरोना से मरने वालों के परिजनों को मिलेगी 4 लाख की सहायता? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से….

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CORONA DEATH

नई दिल्ली। CORONA DEATH: कोरोना संकट ने भारत में लगभग 3.07 लाख लोगों की जान ले ली है। लाखों परिवारों की रोजी-रोटी छिन गई है। किसी ने खोया है मां, पिता, बेटा, बेटी। कई बच्चे अनाथ हो गए हैं। यह इन परिवारों के लिए भविष्य का संकट है।

सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दाखिल कर कोरोना संक्रमण से मरने (CORONA DEATH) वालों के परिवारों को चार-चार लाख रुपये की सहायता की मांग की गई है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। साथ ही कहा गया है कि इसी तरह की नीति कोरोना से मारे गए व्यक्तियों के मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने के लिए अपनाई जाए।

इससे यह सवाल उठता है कि अगर लोग कोरोना से मरते हैं तो क्या सरकार उनके परिवारों की मदद करेगी। आपदा प्रबंधन नियम 2005 के अनुसार आपदा में मारे गए लोगों के परिवारों को 4 लाख रुपये की सहायता और मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए एक समान नीति की मांग करने वाली दो याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है।

केंद्र सरकार ने 8 अप्रैल 2015 को एक्ट 12(3) के तहत आदेश जारी किया था। इसमें आपदा में मरने वाले व्यक्ति के परिजनों को 4 लाख रुपये के मुआवजे का प्रावधान है। यह सहायता राज्य या राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष द्वारा प्रदान की जाती है।

यह आपको मुआवजा पाने से रोकता है

मौत का कारण फेफड़ों में संक्रमण, हृदय रोग या अन्य बीमारियों के कारण होना दिखाया गया है। भले ही मौत का कारण कोरोना ही क्यों न हो। इससे मृतक का परिवार इस सहायता के लिए अपात्र हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने आईसीएमआर से जारी गाइडलाइंस को जमा करने को कहा है। जिसमें कोरोना से मृत्यु होने पर मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने का प्रावधान है। कोर्ट ने कहा कि इसके लिए एक समान नीति होनी चाहिए।

क्या है आईसीएमआर की गाइडलाइंस…

आईसीएमआर और नेशनल सेंटर फॉर डिजीज इंफॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च ने पिछले साल कोरोना डेथ पर दिशानिर्देश जारी किए थे। इसके मुताबिक, जब कोई कोरोना संक्रमित होता है, तो मरीज को सांस और दिल के दौरे जैसी कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। इन परिस्थितियों में इन मौतों को कोरोना के कारण नहीं माना जाता है।

आईसीएमआर के अनुसार, यह सिर्फ सलाह का एक टुकड़ा है, समान नियमों का पालन करना आवश्यक नहीं है। इसका मतलब है कि इसे लागू करना राज्यों पर निर्भर है। अगली सुनवाई 11 जून को निर्धारित की गई है।

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