Contempt of Court : कानून की गरिमा किसी को दंडित करने में नहीं, क्षमा करने में है : सुप्रीम कोर्ट
Contempt of Court
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस “बढ़ती और परेशान करने वाली प्रवृत्ति” पर असंतोष व्यक्त किया, जिसमें वादी और वकील अपने पक्ष में अदालती फैसला न आने की स्थिति में जजों के खिलाफ अपमानजनक और घिनौने आरोप लगाते हैं। कोर्ट ने एक मामले में (Contempt of Court) अवमानना की कार्यवाही को रद करते हुए कहा कि “कानून की गरिमा किसी को दंडित करने में नहीं, बल्कि अपनी गलती स्वीकार करने वाले को क्षमा करने में निहित है।”
चीफ जस्टिस बी.आर. गवई (BR Gavai Judgment) और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने वादी एन. पेड्डी राजू और दो वकीलों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही को रद करते हुए यह टिप्पणी की। वकीलों को चेतावनी दी गई कि इस तरह का आचरण न्यायिक प्रणाली की अखंडता को कमजोर करता है और इसकी “कड़ी निंदा” की जानी चाहिए। पीठ ने मामले को समाप्त करने का निर्णय लिया क्योंकि तेलंगाना हाईकोर्ट के जज ने दोषी वादी और वकीलों द्वारा मांगी गई क्षमा याचना स्वीकार कर ली।
चीफ जस्टिस गवई (Contempt of Court) ने अपने आदेश में इस बात पर चिंता जताते हुए कहा, “हाल के दिनों में हमने देखा है कि जब जज अनुकूल आदेश पारित नहीं करते हैं, तो उनके खिलाफ अपमानजनक और निंदनीय आरोप लगाने का चलन बढ़ रहा है।” इस तरह की प्रथा की कड़ी निंदा की जानी चाहिए।
पीठ (Contempt of Court) ने कहा कि कोर्ट के अधिकारी होने के नाते वकीलों का कर्तव्य है कि वे (Judicial Dignity) न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता बनाए रखें। उन्हें इस कोर्ट या किसी भी हाईकोर्ट के जजों के खिलाफ अपमानजनक और निंदनीय आरोपों वाली याचिकाओं पर अपने हस्ताक्षर करने से पहले सावधानी बरतनी चाहिए। “कानून की गरिमा किसी को दंडित करने में नहीं, बल्कि अपनी गलती स्वीकार करने वाले को क्षमा करने में निहित है। चूंकि हाईकोर्ट के जज, जिनके खिलाफ आरोप लगाए गए थे, ने माफी स्वीकार कर ली है, अतएव इस पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट ने आगे कोई कार्यवाही न करने का निर्णय लिया।
जानिए क्या है मामला (Contempt of Court)
गौरतलब है कि अवमानना का मामला तब शुरू किया गया जब सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि एन. पेड्डी राजू और उनके वकीलों ने एक मामले को दूसरे हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग करते हुए तेलंगाना हाईकोर्ट की जज जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य के खिलाफ निराधार और अपमानजनक आरोप लगाए थे।
यह मामला राजू द्वारा दायर एक स्थानांतरण याचिका से संबंधित है, जिसमें तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी के खिलाफ एससी/एसटी अधिनियम के तहत एक आपराधिक मामले को खारिज करने वाले हाईकोर्ट की जज के खिलाफ पक्षपात और अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया गया था। पीठ ने कहा कि इस तरह की टिप्पणियों से न केवल न्यायपालिका में जनता का विश्वास कम होता है, बल्कि अदालतों की गरिमा भी धूमिल होती है। इस प्रथा की कड़ी निंदा की जानी चाहिए।
