संपादकीय: सहयोगी दलों के निशाने पर कांग्रेस
Congress on target of allies: हरियाणा और जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन को लेकर अब कांग्रेस पार्टी अपने ही सहयोगी दलों के निशाने पर आ गई है। खासतौर पर हरियाणा में तो कांग्रेस ने अपनी गलतियों के कारण जीती हुई बाजी गंवा दी है।
जहां तक जम्मू कश्मीर का प्रश्न है तो वहां भी कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टी नेशनल कांफ्रेन्स की पिछलग्गू होकर ही सत्ता में आ सकी है। कांग्रेस ने वहां नेशनल कांफ्रेन्स के साथगठबंधन किया था और कांग्रेस ने 42 सीटों पर चुनाव लड़ा था।
लेकिन वह इनमें से नौ सीटें ही जीतने में सफल हो पाई। कांग्रेस के इस प्रदर्शन पर टिप्पणी करते हुए नेशनल कांफ्रेन्स के नेता और भावी मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बयान दिया है कि कांग्रेस को इस बात पर चिंतन करना चाहिए कि वह क्यों हार रही है।
इधर हरियाणा में भी कांग्रेस को सिर्फ 37 सीटों पर सिमट कर रह जाना पड़ा। जबकि हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर के चलते कांग्रेस की जीत सुनिश्चित मानी जा रही थी। यहां तक की सभी खबरिया चैनलों ने अपने अपने एग्जिट पोल में हरियाणा में प्रचंड़ बहुमत के साथ कांग्रेस की सरकार बनने का पूर्वानुमान लगाया था।
हालांकि एग्जिट पोल के पूर्वानुमान गलत साबित हुए लेकिन वे सत्यता के बेहद निकट थे। हरियाणा में पांच विधानसभा सीटें तो ऐसी थी जो कांग्रेस की झोली में जा सकती थी।
वहां बहुत ही कम वोटों के अंतर से कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा और इन पांचों सीटों पर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों के कारण ही कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा।
यदि कांग्रेस पार्टी अतिआत्मविश्वास का शिकार नहीं होती और आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन कर लेती तो हरियाणा में कांग्रेस की सरकार होती।
कांग्रेस पार्टी ने आम आदमी पार्टी के साथ सीटों का समझौता करने का प्रयास भी किया था लेकिन हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा ने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन की कोशिशों पर पलीता लगा दिया था।
उन्हें यह भरोसा था कि हरियाणा में चल रही सत्ता विरोधी लहर पर सवार होकर कांग्रेस की नाव चुनावी वैतरणी पार करने में सफल हो जाएगी। किन्तु ऐसा नहीं हो पाया।
यही वजह है कि अब आईएनडीआईए में शामिल कांग्रेस के अन्य सहयोगी दल हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद कांगे्रस पर जमकर निशाना साध रहे हंै। आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह का कहना है कि हमने कांगे्रस से बहुत ही कम सीटें मांगी थी लेकिन कांगे्रस ने इनकार कर दिया।
अब कांग्रेस को ही जवाब देना चाहिए कि उसने हमारी बात क्यों नहीं मानी और गठबंधन करने से क्यों इनकार कर दिया। इसी तरह समाजवादी पार्टी ने भी हरियाणा में दो सीटें मांगी थी लेकिन कांग्रेस ने इससे भी इनकार कर दिया था और एकला चलो रेे की नीति पर अमल किया था।
नतीजतन उसे हरियाणा में हार का सामना करना पड़ा। यही नहीं बल्कि हरियाणा में कांग्रेस के भीतर मची अंतर्कलह भी उसकी पराजय का बड़ा कारण रही। अब तो हरियाणा के कांग्रेस नेता ही इस हार के लिए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। ऐसी स्थिति में यदि कांग्रेस के सहयोगी दल भी कांगे्रस को आईना दिखा रहे हैं
तो इसमें आश्चर्र्य वाली कोई बात नहीं है। हरियाणा में हार के कारण अब कांग्रेस को महाराष्ट्र में भी अपने सहयोगी दलों के सामने झुकना पड़ेगा। महाराष्ट्र के उद्धव गुट वाली शिवसेना के नेता संजय राउत ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा है कि कांग्रेस को अपने सहयोगी दलों को महत्व देना चाहिए।
इसका मतलब साफ है कि आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पर शिव सेना उद्धव गुट और शरद पवार का दबाव बढ़ेगा। कुल मिलाकर अब कांग्रेस को अपने सहयोगी दलों के दबाव के आगे झुकना पड़ेगा अन्यथा उसे आगे भी इसी तरह की हार का सामना करना होगा।