Congress Contemplation Camp : चिंतन शिविर से कितनी मजबूत होगी कांग्रेस |

Congress Contemplation Camp : चिंतन शिविर से कितनी मजबूत होगी कांग्रेस

Congress Contemplation Camp: How strong will Congress be from Chintan Shivir

Congress Contemplation Camp

रमेश सर्राफ। पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस में ग्रुप-23 के असंतुष्ट नेताओं द्वारा उठे विरोध के स्वर को दबाने के लिए कांग्रेस पार्टी अगले माह राजस्थान के उदयपुर में तीन दिवसीय चिंतन शिविर लगाने जा रही है। जिसमें देश भर से पार्टी के 400 बड़े नेता एक जगह बैठ कर पार्टी के गिरते जनाधार को रोकने व आगे होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत की संभावना को लेकर चिंतन मनन करेंगे। इस चिंतन शिविर के माध्यम से कांग्रेस पार्टी भविष्य के लिए एक रोडमैप भी तय करेगी। जिसके सहारे आगे बढ़कर पार्टी अपना जनाधार एक बार फिर से बढ़ा सकें।

राजनीतिक दलों को सलाह देने वाले पेशेवर सलाहकार प्रशांत किशोर ने हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक कार्य योजना सुझायी है। जिसके माध्यम से कांग्रेस का जनाधार मजबूत हो सकता है। सोनिया गांधी से प्रशांत किशोर की चर्चा के दौरान पार्टी के बड़े नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी सहित अन्य कई पदाधिकारी मौजूद थे। चिंतन शिविर के माध्यम से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी प्रशांत किशोर के प्लान पर भी चर्चा करवा कर उसको पारित करवाएगी।

ताकि भविष्य में प्रशांत किशोर का प्लान यदि फेल हो जाता है तो भी पार्टी अध्यक्ष पर अंगुली नहीं उठ पाए। इससे पूर्व प्रशांत किशोर 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में राहुल गांधी के साथ काम कर चुके हैं। उस दौरान उनकी सलाह पर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी द्वारा जगह-जगह खाट सभाओं का आयोजन करवाया गया था। जिस पर पार्टी का करोड़ों रुपया खर्च हो गया था। मगर परिणाम में पार्टी 403 में से मात्र 7 सीटों पर ही जीत पाई थी। उसके बाद प्रशांत किशोर राहुल गांधी से अलग हो गए थे।

आज कांग्रेस पार्टी (Congress Contemplation Camp) के समक्ष सबसे बड़ी समस्या अपने गिरते जनाधार को रोकने की है। 2014 में जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने थे। उस समय कांग्रेस पार्टी की देश के एक दर्जन से अधिक प्रदेशों में सरकार चल रही थी। मगर धीरे-धीरे करके प्रदेशों में चुनाव हारने के चलते आज कांग्रेस पार्टी की सिर्फ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही सरकार बची है। महाराष्ट्र व झारखंड में कांग्रेस पार्टी एक सहयोगी के रुप में सरकार में शामिल है।

पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी कुछ विशेष नहीं कर पाई। पंजाब जहां चुनाव से पहले कांग्रेस की सरकार चल रही थी। वहां भी पार्टी चुनाव हार कर एक चौथाई सीटों पर ही सिमट गई। पंजाब में पार्टी अपने ही बड़े नेताओं की कलह की शिकार हो गई। चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को पद से हटाना पार्टी को भारी पड़ गया। कैप्टन के स्थान पर मुख्यमंत्री बनाए गए चरणजीत सिंह चन्नी दोनो विधानसभा सीटों से व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू अमृतसर पूर्व विधानसभा सीट से चुनाव हार गए। पार्टी के अधिकांश बड़े नेता चुनाव नहीं जीत पाए थे। चुनाव के बाद पार्टी ने विधायक दल का नेता व प्रदेश अध्यक्ष पद पर नए लोगों को बैठा दिय। उसके उपरांत भी पार्टी में खींचतान वैसे ही चल रही है।

उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के दावेदार हरीश रावत इस बार फिर चुनाव हार गए। वहां कांग्रेस मात्र 19 सीटें ही जीत सकी है। पार्टी में नए प्रदेश अध्यक्ष व विधायक दल के नेता के मनोनयन के बाद तो आपसी कलह खुलकर सड़कों पर आ गई है। कई विधायकों ने पार्टी छोडऩे तक की धमकी दे दी है। पंजाब में कांग्रेस की लुटिया डुबोने में सबसे बड़ा हाथ हरीश रावत का रहा था। उन्होंने ही उत्तराखंड में भी कांग्रेस का सफाया करवा दिया।

उत्तराखंड में भाजपा ने लगातार दूसरी बार सरकार बनाकर एक इतिहास रचा है। जबकि कांग्रेस को सबसे अधिक आस उत्तराखंड में ही सरकार बनाने की थी। मगर पार्टी नेताओं की आपसी कलह के चलते कांग्रेस ने अवसर गवां दिया था। गोवा और मणिपुर में भी कांग्रेस कुछ खास नहीं कर पाई। गोवा में कांग्रेस को 11 सीटें मिली वही मणिपुर में तो कांग्रेस की सीटों की संख्या 28 से घटकर 5 रह गई।

उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे बड़े प्रांत में कांग्रेस महज 2 सीटें ही जीत पाई। कांग्रेस पार्टी में तीसरे नंबर की बड़ी नेता व महासचिव प्रियंका गांधी राजनीति में सक्रिय होने के बाद अपना पूरा फोकस उत्तर प्रदेश पर ही लगा रखा था। पहले उनके साथ महासचिव के रूप में ज्योतिरादित्य सिंधिया आधे उत्तर प्रदेश के प्रभारी थे। मगर सिंधिया के पार्टी छोडऩे के बाद उत्तर प्रदेश का पूरा प्रभार प्रियंका गांधी के पास ही था। उनके साथ सचिवों व बड़े नेताओं की बड़ी टीम काम कर रही थी। पिछले 3 साल से प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश के गांव-गांव में जाकर लोगों से मिल रही थी। प्रियंका गांधी की सक्रियता के चलते पार्टी को उम्मीद बंधी थी कि इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बेहतर स्थिति में रहेगी। मगर चुनावी नतीजों ने पार्टी की आशाओं को धराशाई कर दिया।

2017 में जहां कांग्रेस के पास 7 विधानसभा सीटें थी। उसकी तुलना में इस बार कांग्रेस महज 2 सीटों पर ही सिमट कर रह गई। 397 सीटों पर सीटों पर चुनाव लड़ कर महज 2 सीटें जीतना पार्टी के लिए किसी सदमे से कम नहीं था। इतना ही नहीं पार्टी के वोट प्रतिशत भी घटकर 2.33 प्रतिशत रह गया है। प्रियंका गांधी के नेतृत्व में ही कांग्रेस ने 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। जिसमें कांग्रेस के बड़े नेता राहुल गांधी अपनी परंपरागत अमेठी सीट से भाजपा की नेता स्मृति ईरानी से चुनाव हार गए थे। अब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास एक रायबरेली की लोकसभा सीट व दो विधानसभा सीटें रह गई है।

कांग्रेस पार्टी (Congress Contemplation Camp) अगले महीने चिंतन शिविर का आयोजन कर रही है। उसमें पार्टी को धरातल के मुद्दों पर जरूर चर्चा करनी चाहिए। पांच राज्यों में चुनावी हार के बाद वहां के प्रदेश अध्यक्ष व विधायक दल के नेता को तो बदल दिया गया है।

मगर चुनाव के दौरान वहां प्रदेश प्रभारी रहे महासचिव, सचिव, स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन आज भी अपने पदों पर पूर्ववत बरकरार है। उनको क्यों नहीं बदला गया यह विचार करने का विषय है। पार्टी के महासचिव व प्रदेश प्रभारी पद पर ज्यादातर ऐसे नेताओं को नियुक्त किया गया है जिनका अपना कोई जनाधार नहीं रहा है। जो लगातार बड़े अंतर से कई चुनाव हार चुके हैं। जनता में उनकी नकारात्मक छवि है।

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